अधूरे ख्वाब


"सुनी जो मैंने आने की आहट गरीबखाना सजाया हमने "


डायरी के फाड़ दिए गए पन्नो में भी सांस ले रही होती है अधबनी कृतियाँ, फड़फडाते है कई शब्द और उपमाएं

विस्मृत नहीं हो पाती सारी स्मृतियाँ, "डायरी के फटे पन्नों पर" प्रतीक्षारत अधूरी कृतियाँ जिन्हें ब्लॉग के मध्यम से पूर्ण करने कि एक लघु चेष्टा ....

Tuesday, November 26, 2013

"इज्ज़त का पैमाना "


कल हवस के भूखों ने
जिस्म छलनी किया 
कपड़े तार-तार किये 
आज के अख़बार में 
ख़बर ये थी 
"इक मासूम की इज्ज़त-ओ-आबरू तार-तार हुई" 
लानत है ख़बर वालो पर 
जिन्हें ये इल्म ही नहीं कि 

इज्ज़त वज़ूद की होती है 
जिस्म की नहीं ...!!!!


हमारी ज़ात की औक़ात पर इस तरह की सोच बदनुमा धब्बा है 
जिसे मिटाना हरहाल जरुरी है .......! सबसे बड़ा सवाल ये है "कि हमारे समाज में इज्ज़त के पैमाने अलग-अलग क्यूँ ??? किसी मर्द के जिस्मानी अंगों पर चोट हो या शोषण हो तो उसे घायल या पीड़ित कहेंगे ..फिर किसी औरत के साथ यही हो तो उसकी इज्ज़त कैसे चली जाती है ??? ये कोई समझाए मुझे ..! इसके लिए सबसे बड़े दोषी मीडिया वाले तो हैं ही जो चीख चीख कर यही डायलाग दुहराते रहते हैं !! साथ हमारी संकीर्ण सोच भी दोषी है ....
जिस दिन यह सोच हमारे ज़ेहन से चली जायेगी उस दिन पीड़िता समाज से मुहं नहीं छिपाएगी और ढके छिपे अपराध भी खुलकर बाहर आ सकेंगे ....! 
वगरना तो ................


सी कर होठों को
कानों पे बिठा के पहरे 
खुद को.....
किसी आहनी ताबूत में रख दें
कि हमें ..............
इज्ज़त से ज़िंदगी करने की 
क़ीमत भी चुकानी है यहाँ............!

~s-roz~

3 comments:

  1. यत्र नार्य पूज्यन्ते...वाले देश में ये क्या हो रहा है...दूसरी संस्कृतियों के अंधानुकरण का परिणाम...

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  2. जी वाण भट्ट जी .सही कहा आपने
    आभार !

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