अधूरे ख्वाब


"सुनी जो मैंने आने की आहट गरीबखाना सजाया हमने "


डायरी के फाड़ दिए गए पन्नो में भी सांस ले रही होती है अधबनी कृतियाँ, फड़फडाते है कई शब्द और उपमाएं

विस्मृत नहीं हो पाती सारी स्मृतियाँ, "डायरी के फटे पन्नों पर" प्रतीक्षारत अधूरी कृतियाँ जिन्हें ब्लॉग के मध्यम से पूर्ण करने कि एक लघु चेष्टा ....

Monday, October 21, 2013

"ग़ज़ल"

ख्वाब जो हक़ीक़त हो गया है
पर कुछ तो है जो खो गया है

भिगो के अश्क़ों से मेरा दामन
दाग अपने सारे वो धो गया है

देख के मेरे दिल की ज़रखेज़ी
फ़सल दर्द की वो बो गया है

आया था मेरे ख़्वाब सजाने 

पलकों पे मोती पिरो गया है

दिल के गाँव में आबाद था जो
शहर जाकर वो शहर हो गया है

हर आहट पे जो जाग़ उठता था
इंतज़ार roz का अब सो गया है

~s-roz~
ज़रखेजी=उपजाऊपन

1 comment:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति..
    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आप की इस प्रविष्टि की चर्चा शनिवार 26/10/2013 को बच्चों को अपना हक़ छोड़ना सिखाना चाहिए..( हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल : 035 )
    - पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया पधारें, सादर ....

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