बर्तन,सिक्के,मुहरें,
मिट्टी के ढेर में पोशीदा चक्की-चूल्हे
बेनाम ख़ुदाओं के बुत टूटे-फूटे
कुंद औज़ार , ज़ेवर मटमैले
क्या बस,इतना ही विरसा है हमारा ?
सोचती हूँ .....
जाने से पहले
मिटटी में गाड़ जाऊँ ...
सहेजा......संजोया
"प्रेम"......................!
~s-roz~
दीदी इस पोस्ट की चर्चा आज सोमवार, दिनांक : 21/10/2013 को "हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल {चर्चामंच}" चर्चा अंक -31पर.
ReplyDeleteआप भी पधारें, सादर ....नीरज पाल
हार्दिक आभार भाई !
Deleteप्रेम दफ़न नहीं होता वो तो हवाओं में घुल जाता है खुशबू बनकर ।
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