अधूरे ख्वाब


"सुनी जो मैंने आने की आहट गरीबखाना सजाया हमने "


डायरी के फाड़ दिए गए पन्नो में भी सांस ले रही होती है अधबनी कृतियाँ, फड़फडाते है कई शब्द और उपमाएं

विस्मृत नहीं हो पाती सारी स्मृतियाँ, "डायरी के फटे पन्नों पर" प्रतीक्षारत अधूरी कृतियाँ जिन्हें ब्लॉग के मध्यम से पूर्ण करने कि एक लघु चेष्टा ....

Monday, July 9, 2012

"अश'आर "

सुलझी बाते ही आजकल बहुत उलझी रहती है "रोज़"
इसलिए अब कोई इन बातों में जल्दी उलझता नहीं 
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ये फरेब आइनों का शहर है "रोज़" !
एक चेहरे में कई चेहरे नजर आते हैं
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मेरी नजर तो है पर नजर की परख कहाँ
मैं जानती हूँ, हर जगह है तू, मगर कहाँ ?
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फिजां की नब्ज़ नब्ज़ भांप लेते हैं बड़े एहतियात से
मगर हजरत से दिल की धड़कन पहचानी नहीं जाती
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उनके जुल्म की लाइंतहांइयां अज़ाब हैं
और मेरे सब्र का जौहर बे-हिसाब है !
 (लाइंतहांइयां=असीमिततायें )
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हर दफे सुनाते हो बीते कल की दास्ताँ हमें
है जो रब्त हमसे तो आज की बात सुना मुझे
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चोट खा कर जो अभी गिरे हैं, हमें उठाये ना कोई
गिर कर जो खुद उठता है फिर यूँ गिरता नहीं कभी
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इससे पहले के रुख बदले ये हवा और वो नजर"रोज़"
बेहतर है, उससे पहले अपने घर लौट जाना महफूज़
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जिंदगी तो इन्ही ख्वाबों में वाबस्ता है
वरना "रोज़" यहाँ जीना कौन चाहेता है
~S-roz~

6 comments:

  1. हर दफे सुनाते हो बीते कल की दास्ताँ हमें
    है जो रब्त हमसे तो आज की बात सुना मुझे... waah

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    1. हार्दिक आभार रश्मि प्रभा जी

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  2. बेहतरीन ग़ज़ल....

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    1. हार्दिक आभार सुषमा जी!!

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  3. Replies
    1. हार्दिक आभार संगीता जी!

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