आज क्यारी में स्वयं उग आए
अकवन के पौध को देख
सहसा यह विचार उमड़ा कि
अकवन" के बीज को बिजता नहीं कोई
इसके रुई से हर गोले के मध्य एक बीज होता है
मानों उसे ईश्वर ने पंख दिए हों
जहाँ जाकर गिरता है वहीँ उग आता है
अपने अस्तित्व को मिटने नहीं देता
इन्हें खाद पानी की भी आवश्यकता नहीं
बिलकुल उस "सत्य" की भांति
जिसे किसी तर्क की आवश्यकता नहीं
किन्तु कड़वा होता है उसके दूध की भांति
वरना हमने इस धरती पर
झूठ बोने और उगाने में
कोई कसर नहीं छोड़ी है !!
~S-roz~
अकवन=आक/मदार/अर्क /अक्क
अतार्किक सत्य सा रूप
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका रश्मि प्रभा जी !
ReplyDeleteसूचनाः
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