अधूरे ख्वाब


"सुनी जो मैंने आने की आहट गरीबखाना सजाया हमने "


डायरी के फाड़ दिए गए पन्नो में भी सांस ले रही होती है अधबनी कृतियाँ, फड़फडाते है कई शब्द और उपमाएं

विस्मृत नहीं हो पाती सारी स्मृतियाँ, "डायरी के फटे पन्नों पर" प्रतीक्षारत अधूरी कृतियाँ जिन्हें ब्लॉग के मध्यम से पूर्ण करने कि एक लघु चेष्टा ....

Wednesday, February 1, 2012

मेरी मुक्ति का दिवस

तुम्हारी प्रेमपूरित पृथ्वी से
प्रेम की आकांक्षा में
प्रेमहीन.!.......जब मेरी
विदा लेने की घडी आएगी
तब मै निशब्द,निःसंकोच
चिर विदा लुंगी
बाद मेरे ............
कही कुछ नहीं बदलेगा
रह जायेगा तो
कुछ विशेषण!
निर्बाध गति से ......
चलने वाळी
इस जीवन धारा में
एक क्षण ऐसा आएगा
जब, तुम्हे मेरा स्मरण होगा
तब तुम,मेरे संजोये
किसी एक स्वप्न को,
याद कर लेना !
और तुम्हारे प्रांगण से,
कभी कोई फूल झर कर
तुम्हारे चरणों में आ गिरे
उसे तुम चूमकर,
दृदय से लगा लेना
और कहना...............,
प्रिय,मैंने तुम्हे पा लिया!
वह मेरा श्राद्ध होगा
मेरी मुक्ति का दिवस !
~~~~S -ROZ ~~~

6 comments:

  1. सुंदर रचना...
    हार्दिक बधाई.

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  2. गहन अभिवयक्ति.......

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  3. संजय जी, सुषमा जी, आप की सराहना का हार्दिक आभार !!

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  4. बहुत सुन्दर...काश सबको ऐसा श्राद्ध नसीब हो!!

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  5. बहुत बहुत शुक्रिया निधि !

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