अधूरे ख्वाब


"सुनी जो मैंने आने की आहट गरीबखाना सजाया हमने "


डायरी के फाड़ दिए गए पन्नो में भी सांस ले रही होती है अधबनी कृतियाँ, फड़फडाते है कई शब्द और उपमाएं

विस्मृत नहीं हो पाती सारी स्मृतियाँ, "डायरी के फटे पन्नों पर" प्रतीक्षारत अधूरी कृतियाँ जिन्हें ब्लॉग के मध्यम से पूर्ण करने कि एक लघु चेष्टा ....

Friday, November 11, 2011

ख्वाहिश को चलते देखा"

 मुद्दतों से 
अपाहिज सी
इक ख्वाहिश
जो पड़ी थी
दिल में कहीं
... जाने कैसे तो
कल ख्वाब में
उसे चलते देखा
पा लेने को उसे
मचलते देखा !
~~~S-ROZ~~~

3 comments:

  1. बहुत बहुत खूब..... क्या कह दिया आपने.... लाजवाब.....

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  2. संगीता जी /सुषमा जी आपकी प्रोत्साहित करती पंक्तियों का ह्रदय से आभार !!

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