अधूरे ख्वाब


"सुनी जो मैंने आने की आहट गरीबखाना सजाया हमने "


डायरी के फाड़ दिए गए पन्नो में भी सांस ले रही होती है अधबनी कृतियाँ, फड़फडाते है कई शब्द और उपमाएं

विस्मृत नहीं हो पाती सारी स्मृतियाँ, "डायरी के फटे पन्नों पर" प्रतीक्षारत अधूरी कृतियाँ जिन्हें ब्लॉग के मध्यम से पूर्ण करने कि एक लघु चेष्टा ....

Saturday, April 23, 2016

"मैं पानी पानी"

मैं पानी पानी
फितरत मेरी बहते रहना
प्यास में सबके तिरते रहना

तू पत्थर है ....
खुद को खुदा कहते रहना
हालात से मेरे न वाफ़िक़ रहना

अज़ल से तू ठहरा है मुझमे
जाने कितना गहरा है मुझमे 
तब से तुझको घोल रही हूँ
ढल जा मुझमे बोल रही हूँ
पर तू पत्थर है 
पत्थर ही ठहरा
परबत मैदां साहिल सहरा
सबसे तेरा मेल है गहरा 
सूरज की किरनों में चमके 
चकमक तेरा रूप सुनहरा

मैं पानी पानी 
फ़ितरत मेरी बहते रहना 
सबकी प्यास में तिरते रहना

पर ये तो तय है 
वक़्त के बहते झरने में 
इक दिन ......
धार से मेरी
तू घुल जाएगा 
पर अफ़सोस..... 
तब मैं सर्द हो जाउंगी
देखना मैं बर्फ हो जाउंगी ।

No comments:

Post a Comment