तुम्हे........ मैं
जो कभी...... न मिलूं
तो गम न करना
माना, तुमको अज़ीयत होगी
तुमसे रुबरु मेरी हकीक़त होगी
ये जिस्म जो फ़ानी है
बे-मुरव्वत ज़िन्दगी की
नामुराद कहानी है
तब .......तुम्हे .........मैं
उन्ही किताबों में मिलूंगी
जहाँ..........
तुमसे लबरेज़ मेरे लफ्ज़
नज्मों की शक्ल में
सांस लेते हैं
लफ़्ज़ों से गुफ्तगू करते-करते
जो तुम्हे नींद आ जाए
तो अपने सीने पर
किताब रख
सो जाना
तुम पाओगे कि,
इससे करीबतर
हम और तुम
कभी और कहीं
रहे ही नहीं !
...............................................बस इत्ती सी है मेरी वसीयत !
जो कभी...... न मिलूं
तो गम न करना
माना, तुमको अज़ीयत होगी
तुमसे रुबरु मेरी हकीक़त होगी
ये जिस्म जो फ़ानी है
बे-मुरव्वत ज़िन्दगी की
नामुराद कहानी है
तब .......तुम्हे .........मैं
उन्ही किताबों में मिलूंगी
जहाँ..........
तुमसे लबरेज़ मेरे लफ्ज़
नज्मों की शक्ल में
सांस लेते हैं
लफ़्ज़ों से गुफ्तगू करते-करते
जो तुम्हे नींद आ जाए
तो अपने सीने पर
किताब रख
सो जाना
तुम पाओगे कि,
इससे करीबतर
हम और तुम
कभी और कहीं
रहे ही नहीं !
...............................................बस इत्ती सी है मेरी वसीयत !
सरोज जी, आपके ब्लाॅग को हमने यहां पर Best Hindi Blogs लिस्टेड किया है।
ReplyDeletebest-hindi-poem-blogs में मेरे ब्लॉग को शामिल करने के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया !
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