दूध की नदी जब
शिराओं में सूखने लगती है
और थन उसके सिकुड़ने लगते हैं
तब वो बेदखल हो जाती है
अपने ही परिवार से
वृद्धाश्रम ...............
अभी बना नहीं है उसके वास्ते
तभी तो ......वो मनहूस सी
गली मोहल्ले भटकते हुए
चर जाती है ....कूड़े में पड़े
बासी अख़बार की
मनहूस ख़बरों को
और फिर ....
जीवन के चौराहे पर
बैठ जुगाली करते
खो जाती है
अपने स्वर्णिम अतीत में
जहाँ उसका गाभिन होना
रम्भाना, बियाना
एक उत्सव था !
याद आती है उसे
वो बूढी मलकाइन
जो अब नहीं रही ....
जिसकी आँखों में
उसकी पूंछ पकड़
वैतरणी पार करने की लालसा थी
याद करती है
अपनी पुरखिनो को
जिसकी पीठ पर बांसुरी बजा
सांवरे ने ब्रम्हांड डुला दिया था
जुगाली के बंद होते ही
वर्तमान उसे ....
देह व्यापार के लिए
कत्लगाह का रास्ता दिखाता है
वो इससे भय खाए
इसके पहले ही
कोई खीजते हुए
उसकी पसलियों में कुहनी मार
"परे हट" कहते हुए
चौराहे से हांक देता है
sunder
ReplyDeleteकोई खीजते हुए
ReplyDeleteउसकी पसलियों में कुहनी मार
"परे हट" कहते हुए
चौराहे से हांक देता है.......
कातर होकर निवेदन भी नहीं कर सकता अब ऊपर वाले से, दोषी मैं भी तो कम नहीं।