अधूरे ख्वाब


"सुनी जो मैंने आने की आहट गरीबखाना सजाया हमने "


डायरी के फाड़ दिए गए पन्नो में भी सांस ले रही होती है अधबनी कृतियाँ, फड़फडाते है कई शब्द और उपमाएं

विस्मृत नहीं हो पाती सारी स्मृतियाँ, "डायरी के फटे पन्नों पर" प्रतीक्षारत अधूरी कृतियाँ जिन्हें ब्लॉग के मध्यम से पूर्ण करने कि एक लघु चेष्टा ....

Wednesday, October 8, 2014

तेरी कहानी


रेज़ा-रेज़ा सारे हर्फ़ 
मेरे लफ़्ज़ों में .....
लफ्ज़ मानी में 
और मानी ...
तेरी कहानी में 
तब्दील हो जाते हैं
मेरा ....फिर कुछ
मेरा नहीं रह जाता !!

3 comments:

  1. बहुत ही सुंदर प्रस्तुति ।मेरे पोस्ट पर आप आमंश्रित हैं।!

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  2. पहली सीढ़ी अपने और उस परम पिता के बीच की

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  3. रेज़ा-रेज़ा सारे हर्फ़
    मेरे लफ़्ज़ों में .....
    लफ्ज़ मानी में
    और मानी ...
    तेरी कहानी में
    तब्दील हो जाते हैं
    मेरा ....फिर कुछ
    मेरा नहीं रह जाता !!

    ===
    मेरे ही लफ्ज़ कहाँ थे वो,
    हर्फों में तेरा ही तो नाम था,
    और उस कहानी में,
    ज़िक्र सिर्फ मेरा था,
    जिसकी गुमशुदगी में मैं आज भी जीता हूँ, तेरी कहानी,
    और फिर सब कुछ तब्दील हो जाता है,
    पालक झपकते ही, तुममे… सिर्फ तुममे ,
    और जल उठता है अमलताश मेरे अंदर।

    अचानक ही हर्फ़ लब्ज़ों में और लब्ज़ कीपैड पर उँगलियों को ठोकते गए, और कुछ यह निकला, निशब्द हूँ.

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