अधूरे ख्वाब


"सुनी जो मैंने आने की आहट गरीबखाना सजाया हमने "


डायरी के फाड़ दिए गए पन्नो में भी सांस ले रही होती है अधबनी कृतियाँ, फड़फडाते है कई शब्द और उपमाएं

विस्मृत नहीं हो पाती सारी स्मृतियाँ, "डायरी के फटे पन्नों पर" प्रतीक्षारत अधूरी कृतियाँ जिन्हें ब्लॉग के मध्यम से पूर्ण करने कि एक लघु चेष्टा ....

Tuesday, March 18, 2014

कुछ देर ठहरूं तो चलूँ

बेनयाज़ लहरें 
मुझको खेंचती है 
दम-बदम 
अपनी जानिब 
कहकर ये 
"हासिल करने है तुम्हे 
अभी मुक़ामात कई 
देखनी है अभी 
और भी दुनिया नई" 
पर बन गया है 
मेरे क़दमों का लंगर 
मेरा ही आशियाँ 
सोचती हूँ .....
कुछ देर ठहरूं तो चलूँ 
सोचती हूँ ....
कुछ देर और ठहरूं तो चलूँ 
~s-roz~

बेनयाज़=स्वछन्द

2 comments:

  1. सच है...हम ही अपने को रोकते हैं...खुद को...नए मुकाम पाने से...

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया वाणभट जी

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