अधूरे ख्वाब


"सुनी जो मैंने आने की आहट गरीबखाना सजाया हमने "


डायरी के फाड़ दिए गए पन्नो में भी सांस ले रही होती है अधबनी कृतियाँ, फड़फडाते है कई शब्द और उपमाएं

विस्मृत नहीं हो पाती सारी स्मृतियाँ, "डायरी के फटे पन्नों पर" प्रतीक्षारत अधूरी कृतियाँ जिन्हें ब्लॉग के मध्यम से पूर्ण करने कि एक लघु चेष्टा ....

Friday, January 31, 2014

"सरहद "

आँखों ने ज़मीं के कैनवास पर 
सागर का नीलापन देखा 
परबत का 
सब्ज़,कत्थई,भूरा होना देखा 
नदियों की पारदर्शिता देखी 
मैदानों में हरियाली दिखी 
खुशरंग फूलों की घाटियाँ देखीं 

मगर सरहद की कंटीली बाड़ों से 
हवा के बदन पर 
मुसलसल उभरती ख़राशों से 
लहू टपकते देखा है 
तभी तो ........
वहां की सुनहरी ज़मीं
लाल दिखाई पड़ती है
!
~s-roz~

Saturday, January 25, 2014

"उसे मारो "

चाहते हो गर 
सियासत की सांस 
बदस्तूर चलती रहे
तो उसे मारो 
तल्ख़ अल्फाजों से 
उसे लानत भेजो 
उसपर जुमले कसो 
उसकी कमर तोड़ो 
उसकी रीढ़ तोड़ो 
ताकि वो
सदा के लिए
मुख़ालिफ़ हवाओं में
तनकर खड़ा होना
और सर बुलंद किए
चलते रहना
भूल जाए 
गर वो कुछ दिन और 
तन कर सीधा चला 
तो बरसो का खड़ा किया 
सियासी महल 
नेस्तनाबूद हो सकता है !
!
~s-roz~
गोया हम कोई काम भला तो करते नहीं और जो कोई करने की ठाने भी तो उसकी खैर-ओ ख्वाह में कोई कसर भी नहीं छोड़ते ...है की नहीं ?:)

Friday, January 24, 2014

नज़्म

तुम्हे धूप-धूप समेट लूं 
तुम्हे छांव-छांव गुमेट लूँ 
तुम्हे रंग-रंग निखार दूं 
तुम्हे हर्फ़-हर्फ संवार दूँ 
फ़िलवक्त आई मौत भी तो 
कह दूंगी उसे इस रुआब से 
जा मुल्तवी हो इस दयार से 
अभी करने है मुझे काम कई 

Thursday, January 23, 2014

"तनहाई"(नज्म)

शाम बारिशों में
तो रात बूंदों में
किसी तूल कट ही गयी 
आज फिर सहर ने 
कोहरे की लिहाफ से 
ज़बरन दिन को जगाया है 
गूंगे दिन ने फिर 
भीड़ में ..........
तनहाई दोहराई है !

~s-roz~

Tuesday, January 21, 2014

"रसद ज़िन्दगी की"

चूल्हा .....
रोज़ जलता है 
बुझ जाता है 
भूख बढ़ती है 
घटती है ....
फिर बढ़ जाती है 
रसद ज़िन्दगी की मगर 
चुकती जाती है !

~s-roz~