तुम्हारे होने का एहसासभट्टी में ईधन लगाता रहाबारहा, दर्द का धुंआआँखों में नमी लाता रहा
हसीं तब्बसुम नज़्मों में कलछी घुमाता रहा
बंद खिड़कियों पर थपकियाँ
बारिश की आमद बताती रही
आंच भभकती रही, ख्वाब ख़दक़ते रहे
देग से उठती हुई इश्क़ की खुशबुओं से
आलम सारा सराबोर था
मेरे बेक़रार सफ़हों को, बेनजीर नज़्मों का इंतज़ार था
मेरी नींद जो अरसों से
पसे-पर्दा थी , ख्वाबे परीशां थी
जाने किस पहर वो भूख से बेज़ार ,नमूदार हुई
शबदेग देख उसके लबों पर तल्ख़ हँसी फिसलती रही
वो ज़ालिम , मेरी नज़्मों का लुकमा निगलती रही
सुबह की पहली किरन ने नींद के जाने की इत्तला दी
उठकर देखा तो ......भट्टी में बची थी राख
और गुमसुम पड़े शबदेग के कोरों में
नज़्मों के कुछ लफ्ज़ चिपके पड़े थे !!
....................................,
आज की रात मैं नींद पर पहरा दूंगी !!!!!
~s-roz~
तस्सवुर =याद
शबदेग =वह हांड़ी जो रातभर पकाई जाती है
बारहा=बहुदा /बार बार
तब्बसुम=मुस्कराहट
बेनजीर =अद्वितीय
पसे-पर्दा=परदे के पीछे /आड़ में
ख्वाबे परीशां =उचटती हुई नींद
नमूदार =आविर्भूत/ प्रकट
लुक़मा =कौर/ निवाला
अधूरे ख्वाब
"सुनी जो मैंने आने की आहट गरीबखाना सजाया हमने "
विस्मृत नहीं हो पाती सारी स्मृतियाँ, "डायरी के फटे पन्नों पर" प्रतीक्षारत अधूरी कृतियाँ जिन्हें ब्लॉग के मध्यम से पूर्ण करने कि एक लघु चेष्टा ....
Monday, September 2, 2013
"शबदेग".../नज़्म
कल सारी रात, तेरे तस्सवुर की भट्टी पर
मेरे नज़्मों की, शबदेग पकती रही
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बहुत बहुत शुक्रिया आपका यशोदा जी !
ReplyDeleteआज की रात मैं नीद पर पहरा दूंगी...
ReplyDeleteखूब सुन्दर नज्म दी ..