गए लम्हात के सोये तूफानों में
ख़ामोशी ............
माँ, की तरह एकटक चेहरा देखती रही
वो ,खुश्क आँखों में नहीं
नम आस्तीनों को निहारती रही
उसके सवालात सरकारी वकील थे
और जवाब ..............
जवाब थे ......किसी मुजरिम की मानिंद
उनसे गुरेजां .....!
इन सब से बे-ख़बर
वक़्त तसल्ली का कांधा आगे बढाता है
और राजदाँ हवाओं के मार्फ़त
"रूमी "के बेनजीर लफ़्ज़ों को
मेरे कानों की सीपियों में
गुहर की मानिंद डालता है
"हमचू सब्ज़ा बारहा रोईदा-ईम"
(हम दूब की तरह बार-बार उगे हैं )
के तभी लॉन में खिले
सभी गुलों के रुखसारों पर
तुम्हारी हसीं तब्बसुम तैर गई है
गेराज की खिड़की पर
जो नीले खुबसूरत से अंडे चिड़िया ने सहेजे हैं
एक एक कर के चूजे बाहर आ रहे हैं
जो तुम्हारे लौट आने का संदेशा है
नज़्मों में जो बिम्ब क़ैद किये थे तुमने
अब सब आज़ाद से हवाओं में घुल गए हैं
सारी कायनात एक नज़्म बन गई है
साइंस कहता है के ..................
"वादी में घुली हुई चीज़ जिंदा रहती है अज़ल तक "
~s-roz~
__________________
हमचू सब्ज़ा बारहा रोईदा-ईम---"रूमी "
बेनजीर =अनुपम
गुहर =मोती
गुरेजां=भागता हुआ
तब्बसुम=मुस्कराहट
राजदाँ=मर्मज्ञ,भेद जानने वाला
अज़ल =अनादि काल
ख़ामोशी ............
माँ, की तरह एकटक चेहरा देखती रही
वो ,खुश्क आँखों में नहीं
नम आस्तीनों को निहारती रही
उसके सवालात सरकारी वकील थे
और जवाब ..............
जवाब थे ......किसी मुजरिम की मानिंद
उनसे गुरेजां .....!
इन सब से बे-ख़बर
वक़्त तसल्ली का कांधा आगे बढाता है
और राजदाँ हवाओं के मार्फ़त
"रूमी "के बेनजीर लफ़्ज़ों को
मेरे कानों की सीपियों में
गुहर की मानिंद डालता है
"हमचू सब्ज़ा बारहा रोईदा-ईम"
(हम दूब की तरह बार-बार उगे हैं )
के तभी लॉन में खिले
सभी गुलों के रुखसारों पर
तुम्हारी हसीं तब्बसुम तैर गई है
गेराज की खिड़की पर
जो नीले खुबसूरत से अंडे चिड़िया ने सहेजे हैं
एक एक कर के चूजे बाहर आ रहे हैं
जो तुम्हारे लौट आने का संदेशा है
नज़्मों में जो बिम्ब क़ैद किये थे तुमने
अब सब आज़ाद से हवाओं में घुल गए हैं
सारी कायनात एक नज़्म बन गई है
साइंस कहता है के ..................
"वादी में घुली हुई चीज़ जिंदा रहती है अज़ल तक "
~s-roz~
__________________
हमचू सब्ज़ा बारहा रोईदा-ईम---"रूमी "
बेनजीर =अनुपम
गुहर =मोती
गुरेजां=भागता हुआ
तब्बसुम=मुस्कराहट
राजदाँ=मर्मज्ञ,भेद जानने वाला
अज़ल =अनादि काल
अब सब आज़ाद से हवाओं में घुल गए हैं
ReplyDeleteसारी कायनात एक नज़्म बन गई है,------------------- बहुत ही सुन्दर।
हार्दिक आभार नीरज
Deleteअब सब आज़ाद से हवाओं में घुल गए हैं
ReplyDeleteसारी कायनात एक नज़्म बन गई है,------------------- बहुत ही सुन्दर।
सच!!!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर नज़्म......
अनु
हार्दिक आभार अनु जी
ReplyDeleteखुबसूरत भाव लिए हुए सुन्दर नज्म :)
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ReplyDeleteदीदी आपकी यह कविता मैंने आज हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल(http://hindibloggerscaupala.blogspot.in/) की बुधवारीय चर्चा में शामिल की है। आपके आशीर्वाद का आकांक्षी।
बुधवारीय नहीं सोमवारीय
ReplyDeleteबहुत सुन्दर...
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