अधूरे ख्वाब


"सुनी जो मैंने आने की आहट गरीबखाना सजाया हमने "


डायरी के फाड़ दिए गए पन्नो में भी सांस ले रही होती है अधबनी कृतियाँ, फड़फडाते है कई शब्द और उपमाएं

विस्मृत नहीं हो पाती सारी स्मृतियाँ, "डायरी के फटे पन्नों पर" प्रतीक्षारत अधूरी कृतियाँ जिन्हें ब्लॉग के मध्यम से पूर्ण करने कि एक लघु चेष्टा ....

Sunday, April 7, 2013

"एकै चाक के माटी हम सब "


सखी री ....,
एकै चाक के माटी हम सब
कुछ गढ़ी कुछ टूट गईं
कुछ बची कुछ फूट गईं
कुछ संभली कुछ छूट गईं
कुछ कच्ची कुछ सूख गईं 
कुछ पलीं कुछ मारी गईं
कुछ बिगड़ीं कुछ संवारी गईं 
कुछ हलके कुछ भारी  गईं 
कुछ जीतीं कुछ हारी गईं  
कुछ सच्ची कुछ झूठी गई
कुछ छुटीं कुछ लूटीं गईं 
 कुछ कुंवारी कुछ ब्याही गईं
कुछ सादे कुछ शाही गईं 
कुछ भरी कुछ  रीत गईं
 सबही की जिनगी बीत गई
सखी री ....,
एकै चाक के माटी हम सब
कुछ गढ़ी कुछ टूट गईं !!!!!
~s-roz~

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