अधूरे ख्वाब


"सुनी जो मैंने आने की आहट गरीबखाना सजाया हमने "


डायरी के फाड़ दिए गए पन्नो में भी सांस ले रही होती है अधबनी कृतियाँ, फड़फडाते है कई शब्द और उपमाएं

विस्मृत नहीं हो पाती सारी स्मृतियाँ, "डायरी के फटे पन्नों पर" प्रतीक्षारत अधूरी कृतियाँ जिन्हें ब्लॉग के मध्यम से पूर्ण करने कि एक लघु चेष्टा ....

Wednesday, April 17, 2013

"मानव सभ्यता चूहों की कब्र पर खड़ी है ,


अभी कल के अखबार में ही तो पढ़ा था ..अब इंसान की ख़राब किडनी को फिर से ठीक कर प्रत्यारोपित किया जा सकेगा ......इस सफल प्रयोग का पूरा श्रेय चाहें डॉक्टर्स लें पर मेरी नजर में तो वो निरीह: चूहें हैं जिन्होंने जाने कितने ही ज़ुल्म जलालतों को सह कर और शायद कितनी ही शहदातें देकर इस अज़ीम काम को अंजाम दिया होगा ......... !...
कभी कभी सोचती हूँ, कि गर ये चूहें न रहे होते तो हमारी तादाद और उम्र कितनी कम होती .....जानलेवा बीमारियों से निजात ,खुबसूरत और जवां दिखने के तरीके ,मन के विज्ञानं और व्यवहार को समझने ,और न जाने कितनी असम्भव चीजों को सम्भव बनाया है ......इन चूहों ने !
और ये बताने की जरुरत नहीं कि इसके एवज चूहों ने जने क्या क्या नहीं झेला होगा ...सच है ना ,
ज़िंदा रहने की होड मे मरते लोग
खुद को बचाने के एवज़
औरों का क़त्ल करते लोग .................! एक तरह से यह कहना बेजां न होगी कि .......

"मानव सभ्यता चूहों की कब्र पर खड़ी है ,
खैर जो है सो है ............. !
इससे एक बात और ज़ेहन में उभरी कि देश की ७०% जनता वो चूहे ही तो हैं ................
जिनपर प्रयोग पर प्रयोग किये जाते हैं ....और गर प्रयोग करने वाले जीत गये तो क्या कहने
हारे भी तो बाज़ी मात नहीं .................!
तभी तो विश्व के धनाढ्य लोगों में हमारे देश के लोगों का भी नाम आ ही जाता है ..ये कोई मामूली बात नहीं ...चाहें गरीबी की रेखा जमीन से चिपकी चल रही हो ..................वो कहते हैं न ..........
बड़े लोगों को
बड़ा बनाने के लिये
होना होता है
छोटे लोगों को
और .....
और भी छोटा !!!
~s-roz~

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