अधूरे ख्वाब


"सुनी जो मैंने आने की आहट गरीबखाना सजाया हमने "


डायरी के फाड़ दिए गए पन्नो में भी सांस ले रही होती है अधबनी कृतियाँ, फड़फडाते है कई शब्द और उपमाएं

विस्मृत नहीं हो पाती सारी स्मृतियाँ, "डायरी के फटे पन्नों पर" प्रतीक्षारत अधूरी कृतियाँ जिन्हें ब्लॉग के मध्यम से पूर्ण करने कि एक लघु चेष्टा ....

Sunday, December 30, 2012

माँ !! उसका जीवित बचना उचित था या मर जाना ?(कुछ अनछुए पहलु कुछ सवाल )

 
 दामिनी की दारुण मृत्यु की खबर मिलते ही" विचार शून्य "थी !बस शोक ,शर्मिंदगी,बेबसी और लाचारी के भाव ही उभरे .....कुछ सत्ताधारियों ने उसे शहीद और बलिदानी कहकर इस समस्या से पल्ला झाड़ने की चेष्टा में थे उन्हें कौन समझाए कि ये बलिदान नहीं नृसंस बलि" है !उसका जिस्म जरुर ख़त्म हुआ है पर उसकी रूह हम सभी के जेहन में तबतक भटकेगी,झकझोरती रहेगी जबतक इन्साफ नहीं होता !
मेरी 13 साल की बेटी "शुभी" जो टी वी पर कार्टून शो देखना पसंद करती थी पिछले तेरह दिनों से केवल न्यूज़ चेनल ही देखती रही ......उसके जाने की खबर सुनते ही ....मुझसे कहने लगी मम्मी अच्छा ही हुआ न दामिनी मर गयी अगर जिन्दा रहती भी तो फीजिकाली और मेंटली सोसाइटी को कैसे फेस करती ? उसकी बात बड़ी क्रूर लगी मुझे, कैसे सपाट उसने कह दिया ......पर बात में सत्यता तो थी ही .....शारीरिक तकलीफ से ज्यादा वो लोगों की दया दृष्टि उसके लिए कष्टकर होता .....!एक सफल वैवाहिक जीवन क्या वो जी पाती ?
हमारे समाज में एक नहीं ऐसी कई दामिनियाँ है ,जिसके बारे में हम नहीं जानते और वो किस गर्त में गई यह भी ज्ञात नहीं .....इस घटना के बाद लोगो के हुजूम और जन जाग्रति को देखकर कुछ उम्मीद तो बंधी है ...शायद अब वो समय आ गया है जब समाज एक वैचारिक क्रांति चाहता है ....जहाँ सेक्स शब्द को अपराध से न जोड़ा जाये ......पीड़ितों को समाज में वही स्थान और सम्मान मिले .....महिलाएं खुलेआम वक़्त बेवक्त बेख़ौफ़ बहार निकल सकें ! समानता व स्वतंत्रता हो !
इस दुर्घटना ने जेहन में कुछ प्रश्न है उजागर किये हैं जिनका हल ढूँढना और समझना चाहती हूँ ...
  • हमारे समाज में चर्चा का विशेष मुद्दा क्योँ महिलाओं का पहनावा बनता है ?जबकि मुद्दा बलात्कार का होता है !
  • ऐसे माहौल में क्या हम बेहिचक अपने बच्चों को बड़े शहर पढने या नौकरी करने भेज सकते हैं ?
  • .हमारे समाज में क्योँ "प्यार" शब्द "रेप" शब्द से भी अधिक अप्रतिष्ठीत है ?
  • हमारे कानून व्यवस्था में अभी भी पुरातन व अप्रासंगिक नियमों का अनुपालन क्योँ हो रहा है ?
  • हमारे समाज के कुछ "कल्चर ब्रीड "पुरुष अब भी ये क्योँ समझते हैं की महिलाओं का देर रात निकलना उचित नहीं है ?
  • क्योँ बाज़ार में एसिड कहीं भी आसानी से ख़रीदा जा सकता है जबकि अल्कोहल खरीदने के लिए परमिट की जरुरत होती है ?
  • यदि बलात्कार पीड़ित बच भी जाए तो क्या समाज उसे पुरवत उसी सम्मान के साथ अपनाता है?
  • हम सेक्स की सही परिभाषा अपने बच्चो के समक्ष रखने में क्योँ झिझकते हैं ...नतीजा यह होता है की वो इधर उधर से और सस्ती पत्रिकाओं से गलत जानकारी हासिल करते हैं जिसका नतीजा आज हम भुगत रहे हैं !
  • गर्भ से लेकर गृह तक समाज से लेकर संसार तक महिलायें क्योँ सुरक्षित नहीं है?
  • किसी महिला द्वरा शारीरिक सम्बन्ध के मनाही पर पुरुष के अहम् को क्योँ ठेस लगती है और जबरदस्ती कर वो आपनी मर्दानगी दिखाता है ?
  • सारी रस्मे रिवाज और सदआचरण महिलाओं के जिम्मे क्योँ है ?ऐसी अपेक्षा पुरुषों से क्योँ नहीं की जाती ?
  • हम सब सोये हुए क्योँ रहते है जब कोई अनहोनी हो जाती है तब हमारी नींद खुलती है और हम जाग कर फिर सो जाते हैं ..समाज में आई जड़ता के लिए क्या हम उत्तरदायी नहीं हैं ?
  • प्रचार कम्पनियाँ और सिनेमा जगत महिलाओं को उपभोग की वस्तु समझ कर ही क्योँ पेश करता है ?
  • हम चैतन्य होना कब सीखेंगे ?
  • क्या सारा दोष व्यवस्था पर मढ़ देना उचित है ?व्यवस्था "कदाचार" मिटा सकता है "सदाचार" सिखा नहीं सकता !

सवाल तो ऐसे और कई हैं पर इनके जवाब और हल मिलने बड़े मुश्किल हैं ......इनमे से अधिकाँश बिन्दुओं पर अच्छी खासी चर्चा हो चुकी है और होती रहेगी और निरंतर होती रहनी चाहिए ....मैं कुछ अनछुए पहलु पर चर्चा करना चाहूंगी जो इस समस्या का मूल है .....!

इस समस्या का मूल क्या है ?
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इस समस्या के मूल में जाए तो हम पाते हैं कि हमारे समाज ने काफी पहले से या यूँ कहे कि प्रारंभ से ही स्त्री और पुरुष में असमानता पैदा करती आई है ....प्रकृति ने केवल बायोलोजिकल लिंग(सेक्स) में भेद किये किन्तु समाज ने सामाजिक लिंग (जेंडर ) दोनों में समानताओं को उभारने की जगह उनके अंतर पर ज्यादा जोर दिया ...
जबकि .....सच तो यह है कि हर इंसान में स्त्री और पुरुष दोनों होते हैं !पर अक्सर समाज लड़की के अन्दर छुपे पुरुषत्व को और लड़के के अन्दर छुपे स्त्रीत्व को उभरने नहीं देता बल्कि अंतर पर ज्यादा जोर देता है !यही वजह है दोनों के दरमयान फर्क बढ़ने का !!
सामाजिक लिंग इंसानों का बनाया हुआ है हम सब अगर चाहें तो उसे बदल सकते हैं ,लड़का -लड़की स्त्री पुरुष की नवीन परिभाषा गढ़ सकते हैं !
हम एक ऐसा समाज बना सकते हैं जहाँ लड़की होने का मतलब ---कमतर ,कमज़ोर होना नहीं है ,और लड़का होने का अर्थ क्रूर ,मजबूत और हिंसात्मक होना नहीं है ....
क्या समाज निर्मित करना कुछ लोगों की जागीर है ?
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यूँ देखा जाए तो जीने के दो तरीके हैं !
एक है बिना सवाल उठाये हम रिवाजों ,परम्पराओं ,कानूनों को मानते चले जाएँ !जो है उसे अपनाएँ ,दोहराए जाएँ .बिना यह पूछे कि "हम ऐसा क्यूँ कर रहे हैं .ऐसा करने से फायदा क्या है नुक्सान क्या है?
दूसरा तरीका है कि हम जो भी करें चेतन मन से करें ,यह समझ कर करें कि हम ऐसा क्यूँ कर रहे हैं !सिर्फ इसलिए कि ऐसा रिवाज बना दिया गया है और हम किसी की खींची लकीर पर चले जा रहें हैं ?या इसलिए कि वो रिवाज अच्छा है सब के लिए फायदेमंद है !
हमें लगता है की चेतन होकर जीना बेहतर है ,उस में एक मजा है उस से हम में और चारो तरफ जड़ता नहीं आती ,बदलते हालात के साथ हम भी बदलते रहते हैं !यदि सब चैतन्य हों और सवाल उठाने की हिम्मत करे तो फिर समाज पर सोचने ,उसे बनाने या बिगाड़ने का ठेका कुछ लोगों के हाथ में नहीं रहेगा !
हम चाहें तो ऐसा समाज निर्मित तो कर ही सकते हैं व्यवहार और हुनर किसी लिंग,जाति /वर्ग के आधार पर न थोपें जाएँ सब अपनी मर्जी और स्वभाव के मुताबिक काम कर सकें और व्यवहार कर सकें !
और अंत में तसलीमा नसरीन की एक कविता "यु गो गर्ल "समाज में लड़कियों को बोल्ड बनाने को प्रेरित करती है ..उसे अनुवाद करने का एक प्रयास कर रही हूँ .....कृपया इसे साहित्यिक दृष्टि से नहीं अपितु अर्थ और भाव की दृष्टि से ग्रहण करें !!!
"लड़की तुम्हे आगे ही बढ़ना है "(तसलीमा नसरीन की कविता "यु गो गर्ल" का अनुवाद)
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वे कहते - आसानी से स्वीकार करो
कहते -बकवास बंद करो
कहते -चुप रहो
वे कहते -बैठ जाओ
कहते -सर को झुकाओ
कहते -रोते रहो आंसुओं को बहने दो
जवाब में तुम्हे क्या करना चाहिए ?
तुम्हे खड़े हो जाना चाहिए
सीधे खड़े हो जाना चाहिए
पीठ सीधी कर
सर को ऊँचा कर
तुम्हे बोलना चाहिए
तुम्हारा मन बोले
जोर से बोले
चिल्ला कर बोले
तुम्हे इतना जोर से चीखना चाहिए की वो दौड़ पड़े
फिर वो कहेंगे -तुम बेशर्म हो
जब तुम यह सुनो बस हंस दो
वो कहेंगे -तुम चरित्रहीन हो
जब तुम यह सुनो ,और जोर से हंसो
वो कहेंगे -तुम सड़-गल चुकी हो
तो जोर से हंसो और जोर से।।
तुम्हारी बेख़ौफ़ हंसी सुनकर
वो चीख कर कहेंगे -तुम वैश्या हो !
जब वे ऐसा कहें
अपने हाथों को कूल्हों पर रखकर
दृढ़tता से खड़े होकर कहो
हाँ, हाँ, मैं एक वेश्या हूँ!"
वे हैरान हो जायेंगे
अविश्वास से तुम्हे घूरेंगे
वो तुम्हारे और कुछ कहने का इंतजार करेंगे
उनमे से जो मर्द हैं
वो शर्म से पसीने पसीने हो जायेंगे
और उनमे से जो औरतें हैं वो
तुम्हारे जैसे "वैश्या" होने का सपना देखेंगी ....

4 comments:

  1. Replies
    1. हार्दिक आभार श्री राजेश्वर जी ..

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  2. बहुत सुंदर लिखा है आपने ..
    आभार और बधाई...

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  3. हार्दिक आभार जी ..गीता जी !!

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