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मशालें थामी थी हमने भी कुछ कर गुजरने को
"पर घर के बुझते चूल्हे को जलाना दरपेश आया"
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"पर घर के बुझते चूल्हे को जलाना दरपेश आया"
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खुद को खोकर" तुम्हे" पाया था
"खुद को पा कर"तुम्हे" खो दिया
"खुद को पा कर"तुम्हे" खो दिया
~~~S-ROZ~~~
आज 19- 09 - 2011 को आपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है .....
ReplyDelete...आज के कुछ खास चिट्ठे ...आपकी नज़र .तेताला पर
बहुत गहरी बात कह दी है।
ReplyDeleteक्या बात है..............!!
ReplyDeleteबहुत पसन्द आया
ReplyDeleteहमें भी पढवाने के लिये हार्दिक धन्यवाद
सही बात कहते यह एहसास
ReplyDeleteआदरणीय मित्रों आपकी सराहना /प्रतिक्रियाओं /एवं सुझाओं का सदा स्वागत है ..हार्दिक आभार आप सभी गुणीजनों का !!!
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