अधूरे ख्वाब


"सुनी जो मैंने आने की आहट गरीबखाना सजाया हमने "


डायरी के फाड़ दिए गए पन्नो में भी सांस ले रही होती है अधबनी कृतियाँ, फड़फडाते है कई शब्द और उपमाएं

विस्मृत नहीं हो पाती सारी स्मृतियाँ, "डायरी के फटे पन्नों पर" प्रतीक्षारत अधूरी कृतियाँ जिन्हें ब्लॉग के मध्यम से पूर्ण करने कि एक लघु चेष्टा ....

Monday, November 26, 2012

"वक़्त का कबाड़ी "

वक़्त का कबाड़ी !
सन्नाटों से भरी खाली बोतलें,
खरीदता भी है और बेकता भी !
बेचने वाले जिंदगी जी चुके होते हैं,शायद !
और खरीदने वाले ........
उसमे जिंदगी भरने की जद्दोजहद में
मशगूल रहते हैं !
कुछ....
जो हुनरमंद है,
उसमे जिंदगी, भर पाते हैं !
...
और कुछ ,हम जैसों की,
जिंदगी !
कुछ बोतल में
कुछ बोतल के मुहाने और कुछ बोतल के आसपास
छिटकी पड़ी रहती है !
ये जिंदगी भी है न बड़ी सख्त जान है !
बोतल के संकरे मुहाने
उसे भरना
सबके बस की बात नहीं ............!
~s-roz ~

3 comments:

  1. ्बडी गहरी बात कह दी।

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  2. आभार वंदना जी !

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  3. आप ने फलसफे को कविता का बहुत खूबसूरत जामा पहना दिया है।

    आशु

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