डायरी के फाड़ दिए गए पन्नो में भी सांस ले रही होती है अधबनी कृतियाँ, फड़फडाते है कई शब्द और उपमाएं
विस्मृत नहीं हो पाती सारी स्मृतियाँ, "डायरी के फटे पन्नों पर" प्रतीक्षारत अधूरी कृतियाँ जिन्हें ब्लॉग के मध्यम से पूर्ण करने कि एक लघु चेष्टा ....
Monday, August 13, 2012
"तलाश"
हम दोनों ! ये बेहतर जानते हैं जमीं ही सफ़र है, जमीं ही जिंदगी फिर भी... हमारे ... चाहत के आईने में वो आसमान झलकता है जो हमारी दस्तरस से बाहर है तुम तलाशते हो मुझमे जो मैं नहीं मैं तलाशती हूँ तुममे जो तुम नहीं ! ~S-roz~
गहरी बात ... सच है जो नहीं होता उसे ढूंढते हैं हम ...
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका दिगंबर जी
Deleteबहुत खुबसूरत रचना अभिवयक्ति.........
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका सुषमा जी
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