मेरी खिड़की पे
सर को पटकती हुई
चल रही है जो तीखी हवा
घिर के उमड़ी चली आ रही है
पच्छिम से जो काली घटा
घोर अँधेरे में सीने में गूंजी है
जो बूंदों की सदा .....
फिर भी .......
प्यास हल्क़ूम में है
जिस्म में है जाँ में है
जैसे के हम
झुलसते रेगिस्तां में हैं
~s-roz ~
हल्क़ूम=कंठ
सर को पटकती हुई
चल रही है जो तीखी हवा
घिर के उमड़ी चली आ रही है
पच्छिम से जो काली घटा
घोर अँधेरे में सीने में गूंजी है
जो बूंदों की सदा .....
फिर भी .......
प्यास हल्क़ूम में है
जिस्म में है जाँ में है
जैसे के हम
झुलसते रेगिस्तां में हैं
~s-roz ~
हल्क़ूम=कंठ
बहुत ही अच्छी.... जबरदस्त अभिवयक्ति.....
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका सुषमा जी
Delete