सूरज दद्दा तनिक मान जाओ
इत्ता काहें तपाय रहे हो
गुस्से में सर खपाय रहे हो
बदरा भईया कहाँ छिपे बैठे हो
तनिक छींटा ही मार देओ
जो इत्ता गर्माय रहे हैं
तनिक नरमाए जाएँ
दद्दा ! बदरा से तोहार कभी ना पटी है
पर एसे तोहार महत्ता थोड़े ना घटी है
अब तो दोनों मिलके सदी-बदी कर लेओ
अउर हमहन के तनिक जिए देओ
हम जानित है ....
पाहिले पेड़ की डार तुमका लुभाय रहती थी
मुख पर तुम्हरे बेना झलती थी
एहिलिये ,हम मान लिहे अपनी गलती
अब ना कबहूँ काटेंगे कवनो पेड़
माना की हुई गवा है कछु देर
कसम लै लेओ अबकी बरसात हम खूब पेड़ रोपेंगे
जे काम हम खुद करेंगे अउरो पे ना थोपेंगे
पर दद्दा!! अबही तनिक मान जाओ पलीज़ !`
~s-roz~