अधूरे ख्वाब


"सुनी जो मैंने आने की आहट गरीबखाना सजाया हमने "


डायरी के फाड़ दिए गए पन्नो में भी सांस ले रही होती है अधबनी कृतियाँ, फड़फडाते है कई शब्द और उपमाएं

विस्मृत नहीं हो पाती सारी स्मृतियाँ, "डायरी के फटे पन्नों पर" प्रतीक्षारत अधूरी कृतियाँ जिन्हें ब्लॉग के मध्यम से पूर्ण करने कि एक लघु चेष्टा ....

Sunday, May 27, 2012

"सूरज दद्दा '

सूरज दद्दा तनिक मान जाओ
इत्ता काहें तपाय रहे हो
गुस्से में सर खपाय रहे हो
बदरा भईया कहाँ छिपे बैठे हो
तनिक छींटा ही मार देओ
जो इत्ता गर्माय रहे हैं
तनिक नरमाए जाएँ
दद्दा ! बदरा से तोहार कभी ना पटी है
पर एसे तोहार महत्ता थोड़े ना घटी है
अब तो दोनों मिलके सदी-बदी कर लेओ
अउर हमहन के तनिक जिए देओ
हम जानित  है ....
पाहिले पेड़ की डार तुमका लुभाय रहती थी
मुख पर तुम्हरे बेना झलती थी
एहिलिये ,हम मान लिहे अपनी गलती
अब ना कबहूँ काटेंगे कवनो पेड़
माना की हुई गवा है कछु देर
कसम लै लेओ अबकी बरसात हम खूब पेड़ रोपेंगे
जे काम हम खुद करेंगे अउरो पे ना थोपेंगे
पर दद्दा!! अबही तनिक मान जाओ पलीज़ !`
~s-roz~
 
 

Friday, May 18, 2012

"मेरा वजूद, "

गर मेरा वजूद,
वो पत्थर है !
जो आधी ऊपर पड़ी,
आधी जमीन में गड़ी हो!
जिससे हर रहगुज़र ठोकर खाए
और ठोकर मार जाय !
तो ऐसे में "मैं "......
या तो गड़ ही जाउंगी
या उखड़ ही जाउंगी
पर इतना तय है ...
.ना ठोकर खाऊँगी
और ना ठोकर लगाउंगी !!
~s-roz ~

Sunday, May 13, 2012

"माँ की कोई परिभाषा नहीं होती "

माँ की कोई परिभाषा नहीं होती
माँ तो बस माँ होती है ..

कहते हैं माँ अपनी संतानों के लिए ही जीती है
जबसे वो माँ बनती है ,बच्चे का जीवन ही उसका जीवन होता है
वो स्वयं को भूल उनके सुख सपने संजोती है
... माँ की कोई परिभाषा नहीं होती
माँ तो बस माँ होती है ..

कहते हैं माँ से बढ़कर पालनहार कोई नहीं
अपनी आँचल की छावं में हर सुख वो देती है
रातों को हमें सूखे में सुलाकर खुद गीले में सोती है
माँ की कोई परिभाषा नहीं होती
माँ तो बस माँ होती है ..

कहते हैं माँ ईश्वर होती है
किसने देखा है हमें कठिनाइयों में देख ईश्वर रोता है
मैंने देखा है हमें कष्ट में देख, अकेले में माँ रोती है
माँ की कोई परिभाषा नहीं होती
माँ तो बस माँ होती है ..

कहते हैं माँ की पदवी पिता से ऊँची होती है
किसी एक दिन कमर में कोई बोझ बांध सारे दिन काम कर के देखो
बदन किस क़दर टूटता है ,इक माँ है जो हमें नौ महीने ढोती है !
माँ की कोई परिभाषा नहीं होती
माँ तो बस माँ होती है ..

कहते हैं माँ से बढ़कर दाता कोई नहीं
अपने बेटे की इच्छा पूरी करने की खातिर
अपना कलेजा तक भी काढ कर देती है
माँ की कोई परिभाषा नहीं होती
माँ तो बस माँ होती है !
~s-roz ~जगत की सभी माताओं को नमन !!

Tuesday, May 8, 2012

"लफ्ज़ और नाखून "

आज! अपने बढ़े हुए नाखूनों को देख
यक बा यक,जेहन में ,
यह ख्याल उभरा के......
'लफ्ज़' भी नाखून ही होते हैं
बेहतर है इन्हें तराश कर रखना
वरना,ये औरों को तो चुभते ही हैं
अलबत्ते, खाने के साथ
खुद की गन्दगी ...........
जबां के भीतर ही जाती है !
~s-roz ~