अधूरे ख्वाब


"सुनी जो मैंने आने की आहट गरीबखाना सजाया हमने "


डायरी के फाड़ दिए गए पन्नो में भी सांस ले रही होती है अधबनी कृतियाँ, फड़फडाते है कई शब्द और उपमाएं

विस्मृत नहीं हो पाती सारी स्मृतियाँ, "डायरी के फटे पन्नों पर" प्रतीक्षारत अधूरी कृतियाँ जिन्हें ब्लॉग के मध्यम से पूर्ण करने कि एक लघु चेष्टा ....

Wednesday, June 15, 2011

कल की रात!

कल की रात!
धरा से चन्द्रमा के  प्रणय की रात थी .....
हर रात धरा और चन्द्रमा के बीच 
चाँदनी  आ जाती थी ..
धरा यु हीं  उस चन्द्रमा  
को तकते रह जाती थी ....
चाँदनी भी इस बात   पर 
खूब  इतराती थी .............
पर कल रात चाँदनी कही खो गई
कुछ क्षणों  को 
धरा चन्द्रमा के अंक में सो गयी ...
कल की रात!
धरा से चन्द्रमा के  प्रणय की रात थी .....
~~~S-ROZ ~~~

2 comments:

  1. ओह
    बेहद संजिदा और सार्थक कविता।

    सौभाग्य की आपके ब्लॉग पर आ सका।

    कृप्या कर बर्ड बेरिफिकेशन को अनेवल कर दे तो टिप्पणी देने में असुविधा नहीं होगी।

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  2. आपका हार्दिक आभार !!अरुण साथी जी मेरी छोटी सी कोशिश को सराहने के लिए आप के काहे अनुसार मैंने वर्ड वेरिफिकेसन हटा दिया है ..स्नेह बनाये रखे ..सादर !!

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