कल की रात!
धरा से चन्द्रमा के प्रणय की रात थी .....
हर रात धरा और चन्द्रमा के बीच
चाँदनी आ जाती थी ..
धरा यु हीं उस चन्द्रमा
को तकते रह जाती थी ....
चाँदनी भी इस बात पर
खूब इतराती थी .............
पर कल रात चाँदनी कही खो गई
कुछ क्षणों को
धरा चन्द्रमा के अंक में सो गयी ...
कल की रात!
धरा से चन्द्रमा के प्रणय की रात थी .....
~~~S-ROZ ~~~
ओह
ReplyDeleteबेहद संजिदा और सार्थक कविता।
सौभाग्य की आपके ब्लॉग पर आ सका।
कृप्या कर बर्ड बेरिफिकेशन को अनेवल कर दे तो टिप्पणी देने में असुविधा नहीं होगी।
आपका हार्दिक आभार !!अरुण साथी जी मेरी छोटी सी कोशिश को सराहने के लिए आप के काहे अनुसार मैंने वर्ड वेरिफिकेसन हटा दिया है ..स्नेह बनाये रखे ..सादर !!
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