अधूरे ख्वाब


"सुनी जो मैंने आने की आहट गरीबखाना सजाया हमने "


डायरी के फाड़ दिए गए पन्नो में भी सांस ले रही होती है अधबनी कृतियाँ, फड़फडाते है कई शब्द और उपमाएं

विस्मृत नहीं हो पाती सारी स्मृतियाँ, "डायरी के फटे पन्नों पर" प्रतीक्षारत अधूरी कृतियाँ जिन्हें ब्लॉग के मध्यम से पूर्ण करने कि एक लघु चेष्टा ....

Thursday, July 4, 2019

"मैं वीरांगना बोल रही हूँ "

वीरांगना का मतलब बहादुर महिला होता है। बांग्लादेश सरकार ने उन महिलाओं को वीरांगना की संज्ञा दी है जिनसे 1971 में मुक्ति युद्ध के दौरान पाकिस्तानी सैनिकों ने बलात्कार किया। बांग्लादेश की आजादी के लिए लड़ने वाले लोगों का कहना है कि पाकिस्तान सेना ने दो लाख से ज्यादा महिलाओं से बलात्कार किया। बलात्कार की शिकार कई महिलाएं भारत चली गईं तो बहुत-सी महिलाएं ऐसी थीं जिन्हें उनके परिवार ने स्वीकार नहीं किया और उन्होंने आत्महत्या कर ली।
बांग्लादेश की सुप्रसिद्ध साहित्यकार शिक्षाविद समाजसेवी डॉ नीलिमा इब्राहीम ने ऐसी कई महिलाओं की भोगी गयी त्रासद को एकत्रित कर "आमी वीरांगना बोल्छी (As a War heroine, I Speak),"किताब के रूप में बंगला में प्रकाशित करवाया ! इसी किताब की एक कहानी का हिंदी अनुवाद मैंने किया है ...ताकि आमजन भी इसे पढ़कर समझ सकें कि उन वीरांगनाओं ने क्या भोगा है ?
मैं वीरांगना बोल रही हूँ कहानी संख्या -6
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मेरा परिचय ?नही देने जैसा परिचय आज और कोई बचा नहीं I मोहल्ले के लड़के लड़कियां आदर से "खोती पागली" बोलते हैं I सच बोलू तो मैं बिलकुल पागल नहीं I जो मुझे पागल बोलते हैं असल में वही पागल है I ये सच्चाई वो जानते नहीं हैं I
बाबा-माँ ने नाम रखा था फातिमा I मैं अपने जन्मदाता की पहली कन्या संतान थी I दादी ने बड़े आदर से कहा था "देखना ये लड़की हमारे वशं का मुख उज्जवल करेगी, हजरत की तो कन्या है बीबी फातिमा I" कुछ बड़े होने पर अपने नाम का महत्व सीखा था I इस बात का गर्व भी था I हमारा घर था खुरना शहर के मुहाने पर वर्तमान शिल्प शर खालिसपुर के पास सोनाडंगा I पक्का दालान नहीं था ईट गारे और टिन का चाल था I कई आम, एक कटहल एक चालता और एक आमड़ा का पेड़ था I वो सब जगह मैं अभी भी दिखा सकती हूँ अरे देखिये, ये मैं क्या बोल रही हूँ वहां तो अब कई तल्लों की इमारत है जो भी हो घर में लाइ, कुमडा, शिम ,पोई शाक सब होता I बाबा किसान थे पर दुसरो के खेतों में काम नहीं करते अपने जमीन के धान से ही परिवार का बसर हो जाता I जमीन था शहर से 5/6 मील दूर I बाबा खूब परिश्रमी थे I 
हमलोग पांच भाई बहन थे मैं सबसे बड़ी उसके बाद तीन भाई फिर सबसे छोटी एक बहन I सब उसे बुलाते आदुरी क्यूंकि भाई लोग के गोदी में वो बड़ी हुई, और सबके सर के ऊपर दादी I दादा को मैंने नहीं देखा वो मेरे जन्म के पूर्व ही चल बसे थे I बाबा एकलौती संतान थे उनके कोई भाई-बहन नहीं था I एक छोटा मोटा सुखी परिवार था I अदुरी को छोड़कर हम सभी स्कूल जाते I स्कूल से लौटकर हम सभी दूध-भात खाते I उसके बाद खेलने चले जाते I मोहल्ले की लड़कियां मिलकर दौड़-भाग करती I छुट्टी के दिन सब शर्त लगा कर तालाब के इस पार उस पार करते I उह मेरी आँख में पानी , वो सब बातें याद कर के वास्तव में आँख में पानी खुद ही आ जाता है,रोकने पर भी नहीं रुकता बीच-बीच में बाबा हम सभी को सिनेमा दिखाने शहर ले जाते I
इस तरह ही जीवन चल रहा था I मैं जिस वर्ष मेट्रिक परीक्षा देती उसी वर्ष शुरू हुआ गोलमाल I हम मिट गए I "पाकिस्तानी गुलामी अब और नहीं करेंगे, हमारे देश से दस्यु सब कुछ लिए जा रहे हैं, हमारा हिस्सा बेचकर वो सब इस्लामाबाद में स्वर्गपुरी बना रहे हैं ,और हम सब दिन ब दिन गरीब होते जा रहे हैं" I ये सब बात बोलने के लिए ही शेख मुजीब को जेल में डाल दिया गया I बोला गया शेख मुजीब पकिस्तान ध्वंश करना चाहता था I मामले का नाम हुआ "आगोरतोला षड्यंत्र मामला" , बाब्बा !!! कितना मीटिंग जुलुस ,पत्रिका ,स्लोगन सब भूल गयी I बाबा तक भी बीच-बीच में खेत नहीं जाते और बोलते "फातिमा की माँ यदि शेख मुजीब को फांसी हुई तो हम लोग के बचे रहने से लाभ क्या I" ढाका के छात्र सब कुछ उल्टा-पलटा कर चुके थे, उसके बाद एक दिन.. ओह क्या आनंद.. क्या आनंद शेख मुजीब छुट चुके हैं, सभी ने उन्हें गले में फूलो की माला पहनाई है I खुरना शहर में क्या आनंद का उत्सव है I पुलिस दूर से खड़ी देखती रही है नजदीक नहीं आई लगा जैसे उन्हें भी ख़ुशी हुई है I मोहल्ले के दो चार लोग बोलते "फातिमा जरा संभल के चलो लड़की जात को इतना उच्श्रखल होना उचित नहीं जिस दिन पुलीस,मिलेटरी पकड़ेगी उस दिन पता चलेगा I "दोनों हाथो के अंगूठे को दिखाते हुए मैं बोलती "बीबी फातिमा को पकड़ना इतना आसान नहीं आपलोग ठीक से रहें तभी होगा " I 
मेरे बाद वाले भाई की उम्र१४ वर्ष है उसका नाम सोना उसके बाद मोना और अंत में पोना सभी में दो वर्षों का अंतर हैI वो सब भी हम लोग की तरह क्लास नहीं गए I सोना और मोना बड़े-बड़े लडको के पीछे दौड़ते I उसके बाद आस्ते-आस्ते सब शांत हुआ ,उसके बाद हमने पढ़ाई शुरू की I हमलोग हर वक़्त कुछ सशंकित रहते I पास में ही खालिसपुर में बिहारी भरती थे जो सब समय दाम्भिक व्यवहार करते इसलिए हमलोगों को जरा सावधान रहना होता I फिर आया निर्वाचन.. वह खुशी का समय था I अब वो मात्र शेख मुजीब नहीं रहे थे बंगबोंधू शेख मुजीब-ओ-रहमान थे I मीटिंग करने के लिए खुरना आये हुए थे I उनको एक नज़र देखने के लिए हम सब निकल पड़े थे गाँधी पार्क के दिवार के ऊपर चढ़ के, एक नज़र देखा था उन्हें I उफ़ वो मैं भूल नहीं सकती I चारो तरफ से चिल्लाने वाली लड़कियां, गुंडा लड़कियां चिल्ला रहे हैं लोग I सुन रही हूँ पर बंगबोंधू को बिना देखे उतर नहीं रही हूँ I कूदने पर किसी न किसी के गर्दन पर ही गिरूंगी I ओह कितनी उत्तेजना है ? याद है मुझे माँ ने कहा था "क्या हुआ आज भात खायी नहीं ?" हँसते हुए मैंने कहा "माँ आज ख़ुशी से पेट भर गया है,तुम्हारे लिए दुःख हो रहा है माँ तुमने बोंगबोंधू को नाही देखा I" रहने दो बस हो गया उठो अब I हो चूका निरवाचन बंगबोंधू होंगे इस बार समग्र पाकिस्तान के प्रधान मंत्री... उंह देखूंगी फिर इन बिहारियों को ..वो नासिर अली बात-बात में बोलता है "बंगाली कुत्ता" देखती हूँ इस बार "कौन किसका कुत्ता "किन्तु अब सब्र नहीं हो रहा कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा I परीक्षा भी अब सामने है I मैं जानती हूँ बंगबंधू के प्रधान मंत्री होते ही आनंद ही आनंद है I किन्तु पार्लियामेंट बैठ नहीं रहा परिस्थिथि भी अनुकूल नहीं है I कई जगह गोली चली है I बंगबोंधू ने असयोग आन्दोलन घोषणा कर दिया है I सब बंद अस्पताल, पानी, बिजली. बैंक सब बंद I बंगबोंधू बोले है उनलोगों को हम भात से मारेंगे पानी से मारेंगे I
२५ मार्च पाकिस्तान के सब बन्दुक कमान टैंक सब गरज उठे बंगालियों की हत्या के लिए I जबतक ढाका से टेलीफोन का संपर्क रहा सब जानकारी मिलती रही उसके बाद केवल अफवाह और अफवाह I बाद में पता चला जो घटित हुआ है ..अफवाह उसके आगे तुच्छ है I बंगबोंधू बंदी हुए उन्हें पश्चिम पकिस्तान ले गए उनपर विचार होगा I
दांत किड-मिड करके याहिया खान ने बेतार भाषण दिया, बिहारी सब चिल्ला उठे "मिलेटरी आ रहा ए मिलेटरी आ रहा है "हम सब घर छोड़ के भागने की तयारी में जुट गए I हाटात एक दिन सुना बिहारी सब स्लोगन दे रहे हैं "नाराय तकबीर अल्लाह हो अकबर "सामने जो मिला उसे ही लेकर ग्राममुखी हुई I किन्तु नासिर अली के हाथ से मुक्त नहीं हो पाई, मैं और पोना ..पोना को गोदी में लेकर दौड़ रही थी इसलिए सबसे पीछे थी I पकड़ लिया मुझे मेरे शरीर में भी जोर कम नहीं था उसके साथ धक्का-धुक्की करते देख हटात उसने पोना को उठाकर नीचे पटक दिया I उसका माथा फटा और मगज बाहर आगया I मैं चीखते हुए रो पड़ी I नासिर दो तीन लोगों के साथ मुझे घसीटते हुए अपने घर की ओर ले गया I सब वहां खड़े-खड़े तमाशा देख रहे हैं I कोई कोई शाबाशी दे रहा है I मैं बस नम आँखों से सब देख रही हूँ फातिमा उसी दिन मर गयी उसी दिन उस बिहारी बस्ती में I बाप बेटा एक ही लड़की के साथ बलात्कार किये सुना है आपलोगों ने ?उन पिसाचों ने वही सब किया I मैं अकेली नहीं हूँ सोनाडंगा ग्राम से माँ बेटी को साथ लाये हैं एक साथ दोनों जनो के साथ एक दुसरे के परस्पर बलात्कार किये सब I "हाय रे पाकिस्तानी सेना" उन सभी से मिलने के बाद हम सब अवशिष्ट हो चुके थे I "चार पांच दिन बाद हमलोगों को एक खुले ट्रक में जशोर ले आये I हम सब दोनों हाथों से मुख ढक् के बैठे थे I जनता हर्ष ध्वनि दे रही थी I आँखों से देखा नहीं किन्तु औरतों के गले की भी आवाज भी सुनाई दे रही थी I जानती हूँ आपलोग विश्वास नहीं करेंगे और क्यूँ करे भी आपके अपने तो इस विपत्ति में पड़े नहीं है I सारा दिन-रात अल्लाह को पुकारा है, क्या लाभ हुआ उससे ?आज मेरा खिताब है खोती पागली I जशोर में हमलोग नाममात्र मूल्य में बिक्री हो गए I हम दैहिक उत्पीडन सह कर आये थे I पाकिस्तानी सेना देखते ही भय होता था 
बाद में सुना गया की सोनार दा और उसके मुक्ति योद्धाओं ने नासिर अली को टुकड़े-टुकड़े कर दिए किन्तु उनका दुःख कि वो कुत्ते पकड़ कर ले याये मगर कुत्तों ने भी उनका गोश्त नहीं खाया आखिर कुत्तों का भी तो कोई जात विचार होता है ? 
यहाँ खाना देते दाल-रोटी, जो देते खाती I माँ का दिया दूध-भात छोड़ दिया था किन्तु शत्रु का दिया हुआ जघन्य खाना पेट भर कर खाया था कारण मैंने निश्चय किया था कि मैं बचूंगी , मुझे बचना ही होगा और पोना के हत्या का प्रतिशोध लेना होगा मेरा तो सब कुछ ही चला गया है तो बस एक जान इसे ही मैं पोना के लिए बचा के रखूंगी I यदि कभी मैं छुट पाई तो मैं उस नासिर को देख लुंगी I मुझे पता नहीं क्यों ये यकीन था कि बांग्लादेश एक दिन आज़ाद होगा, बंग बोंधू एक दिन लौट आयेंगे ,किन्तु जब सोचती हूँ मैं और उनके बीच नहीं जा पाउंगी ,विजयी बंगबोंधू को देख नहीं पाउंगी तब आँख से पानी गिरता, दिल टूट जाता I
जशोर में हमलोगों को बैरकनुमा लम्बे घर में रखा गया I अनेक लड़कियाँ लगभर २०/२५ से कम उम्र थी I सब किन्तु खुरना से नहीं थी परिशाल, फरीदपुर ,इन सब जगहों से थीं I ज्यादातर मुझसे बड़ी थी I एक बच्ची जैसी लड़की थी १४ /५१ वर्ष की जो मुझसे छोटी थी I फिश-फिश करके बोलती I दोनो दरवाजे के पास पहरेदार थे और शकुनी जैसे जमादारनी तो थीं ही पर मैं सोचती हूँ ये सब नासिरअली से तो बेहतर थे I नासिर अली के लोगों ने लगातार जो मुझे पीटा है देखकर दांत बाहर निकाल कर हंसा है पानी-पानी चिल्लाने पर मुह में पेशाब कर दिया है मैं कभी ये सोच भी नहीं सकती कि मनुष्य नाम का जीव इतना जघन्य भी हो सकता है I बाद में जरुर समझ पाई कि आग से तपते कड़ाही में पड़ गयी हूँ I एक साथ इतनी औरतों के साथ इतने वीभत्स तरीके से उनका विकृत उपभोग हो सकता है ये मनोवैज्ञानिक भी नहीं बता सकते I ऐसा प्रतीत होता जैसे हमने लज्जा, घृणा, भय पर विजय पा लिया हो I एक दिन ऐसी कुतिस्त घटना घटी जिसे मैं आप सभी से किस तरह बोलू सोच भी नहीं पा रही I तब भी बोलना होगा I कारण इंसान नहीं जान पायेगा की ये पगली ने उनके देश के लिए कितना उत्पीडन सहा है I एक होंसक सिपाही था सभी के साथ ख़राब व्यवहार करता और मेरे साथ कुछ ज्यादा ही ख़राब व्यवहार करता इसका कारण मुझे भी नहीं पता हो सकता है मेरी आँखों उसके प्रति गघृणा थी या और कुछ I पास में जाते ही एक लाठी मारता या माथे पर एक चांटी मारता फिर भी सहन कर चुप कर के सोना होता क्यूंकि इस का कोई प्रतिकार नहीं था !
एक दिन उस आदमी को देखकर लगा कि खूब नशा कर के आया है !इस्लाम मे तो मद्द्य पान निषिद्ध है? ये सब क़ानून मेहरा बंगाली मुसलामानों के लिए ही उपयुक्त है I उनमे से अनेक को मैंने माताल अवस्था में देखा है I
एक दिन नशे में धुत्त होकर वो मेरे ऊपर कूद पड़ा और मुझे पकड़ कर नग्न करते हुए काटते हुए भी उसकी भूख नहीं मिटी तो उसने अपना पुरुषांग जबर्दस्ती मेरे मुहं के भीतर डाल दिया मैं निरुपाय सी अपना सारा दांत उसके लिंग पर गड़ा दिया I यंत्रणा में वो आदमी पशु की भाँती वीभत्स चीखता हुआ मुझे धक्का देते हुए धकेल दिया मैं जानती हूँ ,आज ही मेरा शेष दिन है I वो मुझको खीचते हुए मेरी पहनी हुई लुंगी खोलकर उससे मेरे बालों को बाँध कर कुर्सी के ऊपर खड़ा कर पंखे से लटका कर स्विथ्च ओन कर दिया I कितना चीखी चिल्लाइ थी मैं उसके बाद मुझे कुछ मालूम नहीं अन्य लड़कियों ने बताया कि, पहले ये जानवर सब हंसने लगे फिर जब लडकियां डर से चीखने चिल्लाने लगी तो बाहर से एक सूबेदार आकर पंखा बंद किया I वो मुझे अस्पताल लेकर गया I यह खबर हर तरफ फ़ैल गयी उसका कोर्टमार्शल हो गया उसके बाद मैंने उसे देखा नहीं I 7/8 दिन अस्पताल में रही I सर में असह्य यंत्रणा, ज्वर .. 
बाहर की कोई खबर हमलोगों को नहीं मिलती किचेन से एक लड़का हमलोगों के लिए खाना दे जाता I बीस साल का रहा होगा I बोलता आपामोनी आपलोग कुछ दिन और ठीक से रहिये ये जिस माँ का खा रहे हैं ये ज्यादा दिन नहीं टिकने वाले हम सब उम्मीद पर ही रहते खूब उम्मीद से रहते किन्तु हमलोग पर अत्याचार थोड़ा भी कम नहीं हो रहा था I वे हमपे हमला करते पैशाचिक तांडव लीला होती हमलोगों के साथ I उसके बाद अधमरा छोड़ कर फिर चले जाते I यहाँ एक छोटी सी लड़की थी पोरिसल की ,नाम था चांपा... संभवत हिन्दू लड़की थी दीवार में कान लगाकर उनकी बाते सुनती और मुझे बताती I वो प्राय सब समय खिड़की के नीचे चुप कर के खड़ी रहती एक दिन उसने बोला हमारे यहाँ खूब लोग आ रहे हैं शीघ्र ही मुक्ति वाहिनी जशोर हमला बोलेंगे I जशोर के पास जितना अष्त्र है उससे मुकाबला करना संभव नहीं है ,जोशोर के आक्रांत होने से ही वो आत्मसमर्पण करेंगे ,मुझे अंत में यही समझ आता कि ये सब बाते चांपा ने सुना नहीं है कारण इतनी मोटी दीवार से कुछ भी सुन पाना कठिन काम है और उसके ऊपर ये सब बाते वो सब इतनी जोर से क्यूँ बोलेंगे ?मन में यही लगा कि दिन रात यही सब बाते सोचने से मन में उसके ये सिधांत आया है I अंत में मुझे भय सा होने लगा ,ओह पागल हो जाउंगी लगता है एक तो सर की यंत्रणा और चांपा की अजिबोगरिब कहानी मुझे अस्थिर बना दिया मैंने चांपा से पूछा तुम इतना सब कैसे जानती हो ??हसते हुए चांपा ने कहा " जाना कैसे ?"फिर कुछ देर चुप रहने के बाद उसने बोला " 
भाषा आन्दोलन से लेकर इस युद्ध पर्यंत तक मेरे बाबा 8/9 साल जेल में थे " अभी कहाँ है ?मैंने प्रश्न किया 
चांपा मुह उठा कर उपर देखा और बोली "बाबा स्वर्ग गए है दीदी जिसको बोला जाता है शहीद हुए हैं" बाबा-माँ मेरे छोटे भाई को मार कर मुझे खीच कर यहाँ ले आये और भी तीन भाई है पता नहीं वे मुक्ति वाहिनी में है या वो भी शहीद हुए हैं ?'जल्दी से उसके मुह पर हाथ रख कर मैंने कहा "ना ना वो सब है तुम्हारे जाने पर तुम उम्हे पाओगी "उत्तर में चांपा ने कहा "झूठी सांत्वना न दो फातिमा दीदी मैं हिन्दू घर की लड़की हूँ मुझे जब स्पर्श किया है वो भी पाकिस्तानी सेना ने ,मैं फिर किस तरह घर लौट सकती हूँ "तब ..तुम क्या करोगी ?"
"करुँगी तो जरुर कुछ ही मगर मरूंगी नहीं ,मैं नहीं खोउंगी स्वाधीन बांग्लादेश में मैं स्वाधीन होकर बचूंगी I एक दिन चांपा उत्तेजित होकर आकर बोली फातिमा दी फातिमा दी अनेक सोलजर आये हैं ,मैं कई ट्रक की आवाज सुन पा रही हूँ कान लगाकर सुना तो मुझे भी सुनाई दिया I कुछ देर बाद अनेक लोगों का चलना फिरना सुनाइ दिया I धुब-धाब शब्द सुन पा रही थी I ऐसा लगा की दूर बहुत दूर से "जय बांगला" ध्वनि सुनाइ दे रहा है I युद्ध के कमान बोंधू की आवाज आ रही है मैं भी चांपा की तरह व्याधिग्रस्त हो गयी हूँ?किन्तु चांपा ने भी वो आवाजें सुनी I सच में गाडी आई मुक्तियोद्धा भारतीय वाहिनी की I इन सभी ने आत्म समर्पण किया I हमलोगों को एक ट्रक में बैठाया गया I मैं और चांपा आस-पास बैठ गए I "चांपा मेरे साथ मेरे घर चलोगी ?मगर हमलोग मुसलमान हैं" चांपा बोली "मेरा कोई जात नहीं रहा फातिमा दी "मैं तो मृत हूँ, मैं चांपा की लाश हूँ ,जो मुझे जगह देगा मैं उसी के पास जाउंगी "नारी पुनर्वासन से मैं और चांपा बाहर आये I मुझे देखकर बाबा हाउ-माऊ हो कर रो पडे .मैंने बोला "बाबा ओ बाबा मैं पोना को तो बचा नहीं पाई मगर उसके बदले आपके लिए और एक लड़की लाइ हूँ I बाबा से मैं सब सच बता नहीं पाई मैंने कहा " बाबा बिहारी नासिर अली के चंगुल से छूटकर मैं दूर एक गाँव में चली गयी थी I वही तो थी देखो अच्छी ही हूँ "बाबा मेरे सर पर प्यार से हाथ फिराया, मैं जान गयी थी कि उन्होंने मेरे किसी बात पर विश्वास नहीं किया I मां को देख कर मैं अवाक हो उन्हें देखती रह गयी ,माँ के शरीर का रंग एकदम काला हो गया था मात्र हड्डी के ऊपर चमड़े से ढकी देह रह गयी थी I मुझे ह्रदय से लगा कर रोते हुए आकुल हो गयीं "पेट की जलन बड़ी भयंकर"माँ उठी ...जो हो दाल भात आलू पका कर सबको खिलाई खुद भी लगबग 10 महीने बाद भात मुह में डाला तथा I कुछ भात बगल में सरका के रख दिया लगा जैसे पोना का भात रखा हो .असल में ये सर्वनाश जिन परिवार का हुआ है वही इसकी वेदना की गंभीरता को समझ सकता है औरों की ये क्षमता नहीं है इस दुस्साहस यंत्रणा की उपलब्धि सहे I हमलोग धीरे-धीरे स्वाभाविक होना शुरू किये I चांपा की एक व्यवस्था हुई I वो ढाका चली गयी नर्सिंग की ट्रेनिंग करने I मैंने प्राइवेट परीक्षा देकर बी ए पास किया किन्तु कई जगह गयी नौकरी की आशा में मगर वीरांगना को जगह देकर कोई झंझट मोल लेने को राजी नहीं I स्कूल में नौकरी नहीं मिलेगी लड़कियों के सामने एक चरित्रहीन नष्ट लड़की को आदर्श नहीं बना सकते न I मैं पागल होने की अवस्था में आ गयी .अंत में बाबा ने ठीक कहा मेरी शादी करेंगे I मेरी शादी हुई है मैं सुखी हु,ई I ताहीर खूब ऊँचे विचारों वाले आदमी थे 
मैंने उनसे कुछ छिपाया नहीं सब सुनकर भी उन्होंने कहा "फातिमा हम तुम्हारी रक्षा नहीं कर पाए, अपना कर्तव्य नहीं निभा पाए, और उसके लिए सजा देंगे तुम्हे ?" ऐसा नहीं होगा हमलोग तुम्हे सर पर बिठा के रखेंगे I मैं गाँव के स्कूल में नौकरी करती हूँ किन्तु आजकल प्राय वही सर में यंत्रणा होती है इतना कि मैं रोते चीखते अस्थिर हो जाती हूँ I अच्छे डॉक्टर को दिखाया सर का एक्सरे हुआ मगर इस रोग का तो पुराना इतिहास है ? जो मैं किसी से बोल नहीं पाई डॉक्टर बड़े चिंतित हुए बोले में बड़े डॉक्टर को दिखाओ I चांपा एक दिन मुझे ढाका में बड़े डॉक्टर के पास ले गयी I सब देख सुनकर डॉक्टर ने कहा सर का एक ओपरेशन करना होगा I जो बात ताहिर भी नहीं जाते वो बात मैंने डॉक्टर को बताई उन्होंने झुक कर मुझे प्रणाम किया "दीदी आप सराहनीय रहेंगी ,आश्चर्य है इतना त्याग स्वीकार करके बंगालियों ने देश स्वाधीन किया और माँ-बहन के किये त्याग का मूल्य भी नहीं चूका पाए दुर्भाग्य है इस देश का I"

मुझे बीच-बीच में कुछ याद भी नहीं रहता मैं पागलों की तरह इधर-उधर भटकती रहती I पोना को खोजती लोग मुझे पगली बुलाने लगे कभी ताहिर कभी सोना मुझे घर ले आते बीच में कई बरस बीत गए ओप्रेशन के बाद सर की यंत्रणा फिर नहीं हुई I मेरी लड़की उसका नाम भी चांपा है वो आई एस सी में पढ़ती है वो अपनी मौसी माँ अथार्त चांपा की तरह बनना चाहती है और बेटा होना चाहता है साम्यवादी मैं भी अनेक सामाजिक मूल्यों वाले कार्य करती हूँ I अब मुझे अपने लिए भान होता है कि मैं सच में महिमामाय गरिमामय फातिमा हूँ और बोंग्बोंधू बांगला की वीरांगना हूँ

मूल लेखन -नीलिमा इब्राहीम 
अनुवाद -सरोज सिंह

  

2 comments:

  1. प्रशंसनीय प्रस्तुति

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  2. जीवंत और रचनात्मक अनुवाद । बँग्लाद देश का मुक्ति युद्ध मेरी यादों का हिस्सा है । अभी अभी मूँछे आ रही थीं । में पढ़कर जोय बांगला के स्वर पुनः स्मृतियों से निकल ध्वनित हुये ।
    बहुत बढ़िया अनुवाद ।

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