अपनी बेरुख़ी से खुद ही खफा हूँ मैं न मिल मुझसे ज़माने की हवा हूँ मैं
तुझसे न मिलने का क्यूँ हो मलालतस्सव्वुर में मिलती कई दफ़ा हूँ मैं
खरीद न पाओगे बाज़ार से अब तुमक़ीमत नहीं जिसकी वो वफ़ा हूँ मैं
गर करते हो कारोबार रिश्तों में भीक्या हासिल न नुकसान न नफ़ा हूँ मैं राह-ए-कुफ़्र से न डरा मुझको 'रोज़'ज़िन्दगी की ज़ानिब बेपरवा हूँ मैं s-roz
Sent from Samsung Mobile
बहुत सुंदर...
ReplyDeleteहार्दिक आभार उपासना जी
ReplyDeleteसुन्दर
ReplyDeleteअति सुंदर!
ReplyDeleteअति सुंदर!
ReplyDelete