अधूरे ख्वाब


"सुनी जो मैंने आने की आहट गरीबखाना सजाया हमने "


डायरी के फाड़ दिए गए पन्नो में भी सांस ले रही होती है अधबनी कृतियाँ, फड़फडाते है कई शब्द और उपमाएं

विस्मृत नहीं हो पाती सारी स्मृतियाँ, "डायरी के फटे पन्नों पर" प्रतीक्षारत अधूरी कृतियाँ जिन्हें ब्लॉग के मध्यम से पूर्ण करने कि एक लघु चेष्टा ....

Wednesday, March 20, 2013

"झाग-झाग सच जीवन का"

मेरा व्याकुल मन गाता है,राग बिहाग इस जीवन का
तट पर बैठी देख रही हूँ,झाग-झाग सच जीवन का !!

क्या खोया क्या पाया है? मैंने मन को बस बिसराया है
स्वयं में अब सीख रही हूँ गुणा-भाग इस जीवन का !!

अब तक जो जाना अहम् ,स्वार्थ को सर्वोपरि जाना
घर पर बैठी मांज रही हूँ द्वेष-राग निज जीवन का !!

लक्ष्य यहाँ मरीचिका सा, नहीं स्थिर कोई भी यहाँ
घबराई सी देख रही हूँ,भागम-भाग इस जीवन का !!

नाँव तो एक दिन डूबनी हैं, फिर भी मोह पतवार से
कैसे होगा ? सोच रही हूँ भँवर पार इस जीवन का !!
~s-roz~

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