मेरा व्याकुल मन गाता है,राग बिहाग इस जीवन का
तट पर बैठी देख रही हूँ,झाग-झाग सच जीवन का !!
क्या खोया क्या पाया है? मैंने मन को बस बिसराया है
स्वयं में अब सीख रही हूँ गुणा-भाग इस जीवन का !!
अब तक जो जाना अहम् ,स्वार्थ को सर्वोपरि जाना
घर पर बैठी मांज रही हूँ द्वेष-राग निज जीवन का !!
लक्ष्य यहाँ मरीचिका सा, नहीं स्थिर कोई भी यहाँ
घबराई सी देख रही हूँ,भागम-भाग इस जीवन का !!
नाँव तो एक दिन डूबनी हैं, फिर भी मोह पतवार से
कैसे होगा ? सोच रही हूँ भँवर पार इस जीवन का !!
~s-roz~
तट पर बैठी देख रही हूँ,झाग-झाग सच जीवन का !!
क्या खोया क्या पाया है? मैंने मन को बस बिसराया है
स्वयं में अब सीख रही हूँ गुणा-भाग इस जीवन का !!
अब तक जो जाना अहम् ,स्वार्थ को सर्वोपरि जाना
घर पर बैठी मांज रही हूँ द्वेष-राग निज जीवन का !!
लक्ष्य यहाँ मरीचिका सा, नहीं स्थिर कोई भी यहाँ
घबराई सी देख रही हूँ,भागम-भाग इस जीवन का !!
नाँव तो एक दिन डूबनी हैं, फिर भी मोह पतवार से
कैसे होगा ? सोच रही हूँ भँवर पार इस जीवन का !!
~s-roz~
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