"मौसम ए बारिश" गुज़र चुकी है
सर्द रातों की आमद है
कभी फुर्सत से
मुसलसल ...
बरसते थे जो लरजते लम्हें
जमींदोज हैं !
मगर ज़ेहन के
किसी तंग सी गर्त से
रूह की सतह पर
टप.. टप.. टप ,
रिसता रहता है
अब भी
तसव्वुर तेरा !
~s-roz~
(बिटिया को "Under ground water"पढ़ाते हुए :)
बहुत खूब ...
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