अधूरे ख्वाब


"सुनी जो मैंने आने की आहट गरीबखाना सजाया हमने "


डायरी के फाड़ दिए गए पन्नो में भी सांस ले रही होती है अधबनी कृतियाँ, फड़फडाते है कई शब्द और उपमाएं

विस्मृत नहीं हो पाती सारी स्मृतियाँ, "डायरी के फटे पन्नों पर" प्रतीक्षारत अधूरी कृतियाँ जिन्हें ब्लॉग के मध्यम से पूर्ण करने कि एक लघु चेष्टा ....

Thursday, November 8, 2012

"तसव्वुर तेरा "

"मौसम ए बारिश" गुज़र चुकी है
सर्द रातों की आमद है
कभी फुर्सत से
मुसलसल ...
बरसते थे जो लरजते लम्हें
जमींदोज हैं !
मगर ज़ेहन के
किसी तंग सी गर्त से
रूह की सतह पर
टप.. टप.. टप ,
रिसता रहता है
अब भी
तसव्वुर तेरा !
~s-roz~
(बिटिया को "Under ground water"पढ़ाते हुए :)

1 comment: