अधूरे ख्वाब


"सुनी जो मैंने आने की आहट गरीबखाना सजाया हमने "


डायरी के फाड़ दिए गए पन्नो में भी सांस ले रही होती है अधबनी कृतियाँ, फड़फडाते है कई शब्द और उपमाएं

विस्मृत नहीं हो पाती सारी स्मृतियाँ, "डायरी के फटे पन्नों पर" प्रतीक्षारत अधूरी कृतियाँ जिन्हें ब्लॉग के मध्यम से पूर्ण करने कि एक लघु चेष्टा ....

Monday, September 12, 2011

अर्थ अपने अस्तित्व का

"महाभारत" के....
उस अंधे युग सा
आज के .....
इस अंधे युग का
तंत्र भी "संजय" सदृश है
दिव्य दृष्टि से पूर्ण ....
पर निष्क्रीय !निरपेक्ष !
न मार पाने में सक्षम!
न बचा पाने में सक्षम!
कर्म से पृथक !
क्रमश खोता जा रहा.
अर्थ अपने अस्तित्व का !
~~~S-ROZ ~~~



4 comments:

  1. आपकी हर कविता पढ़ते ही बनती है ............बहुत सुन्दर लिखा है आपने

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  2. गूढ़ अर्थ समेटे हुए रचना ........

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  3. सही कहा आज का तंत्र भी संजय सदृश है ...

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  4. संजय भास्कर जी//निधि जी/ सुनील जी आप सभी की उत्साहित करती अनमोल टिप्पणियां मेरे लिए महत्वपूर्ण हैं ....आप सभी का ह्रदय से आभार !!!!

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