कई रूपों में,कई रंगों में
कई रिश्तों,कई भावों में
सभी कर्मों से
अन्तरंग हूँ !
कई रिश्तों,कई भावों में
सभी कर्मों से
अन्तरंग हूँ !
कहीं बंधती हूँ,कहीं कटती हूँ
कहीं उड़ती हूँ,कही गिरती हूँ
पीड़ा डोर से बंधी
पतंग हूँ !
~~~S-ROZ~~~
कहीं उड़ती हूँ,कही गिरती हूँ
पीड़ा डोर से बंधी
पतंग हूँ !
~~~S-ROZ~~~
बहुत खूब ... सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteसुंदर अभिव्यक्ति ...
ReplyDeleteसंगीता जी एवं सुनील कुमार जी आपकी सुन्दर प्रतिक्रियाओं का ह्रदय से आभार !!
ReplyDeleteडोर से बंधने से मुझे गुरेज़ नहीं ...पर दूसरे के हाँथ में डोर हो यह मुझे मन्जूर नहीं
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