अधूरे ख्वाब


"सुनी जो मैंने आने की आहट गरीबखाना सजाया हमने "


डायरी के फाड़ दिए गए पन्नो में भी सांस ले रही होती है अधबनी कृतियाँ, फड़फडाते है कई शब्द और उपमाएं

विस्मृत नहीं हो पाती सारी स्मृतियाँ, "डायरी के फटे पन्नों पर" प्रतीक्षारत अधूरी कृतियाँ जिन्हें ब्लॉग के मध्यम से पूर्ण करने कि एक लघु चेष्टा ....

Sunday, September 18, 2011

"दिल में उभरे कुछ एहसास "

अभी आया जो "भूकंप" तो थरथरा सी गयीं इमारतें
उनका क्या, जिनके "चॉल"बारिशों से रोज़ ढह जाते हैं 
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जिंदगी में "ख़ुशी"पड़ोसन से मांगे हुए जेवर सी है
हरपल एक धड़का सा लगा रहता है खो जाने का"
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"सुन्दर सुशील सजनी "हिंदी" को दिए गए सब अधिकार
किन्तु सौतन बनी "अंग्रेजी मेम" को ही करते सभी प्यार
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जो" किसान"अपनी जमीं पे सोने सी बालियाँ उगाते थे
वो" जवान" गैरों की जमीं पे गैरों के मकाँ बना रहे हैं
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मशालें थामी थी हमने भी कुछ कर गुजरने को
"पर घर के बुझते चूल्हे को जलाना दरपेश आया"
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खुद को खोकर" तुम्हे" पाया था
"खुद को पा कर"तुम्हे" खो दिया
~~~S-ROZ~~~

"मैं पतंग हूँ"

कई रूपों में,कई रंगों में
कई रिश्तों,कई भावों में
सभी कर्मों से
अन्तरंग हूँ !
कहीं बंधती हूँ,कहीं कटती हूँ
कहीं उड़ती हूँ,कही गिरती हूँ
पीड़ा डोर से बंधी
पतंग हूँ !
~~~S-ROZ~~~

Monday, September 12, 2011

अर्थ अपने अस्तित्व का

"महाभारत" के....
उस अंधे युग सा
आज के .....
इस अंधे युग का
तंत्र भी "संजय" सदृश है
दिव्य दृष्टि से पूर्ण ....
पर निष्क्रीय !निरपेक्ष !
न मार पाने में सक्षम!
न बचा पाने में सक्षम!
कर्म से पृथक !
क्रमश खोता जा रहा.
अर्थ अपने अस्तित्व का !
~~~S-ROZ ~~~