अधूरे ख्वाब


"सुनी जो मैंने आने की आहट गरीबखाना सजाया हमने "


डायरी के फाड़ दिए गए पन्नो में भी सांस ले रही होती है अधबनी कृतियाँ, फड़फडाते है कई शब्द और उपमाएं

विस्मृत नहीं हो पाती सारी स्मृतियाँ, "डायरी के फटे पन्नों पर" प्रतीक्षारत अधूरी कृतियाँ जिन्हें ब्लॉग के मध्यम से पूर्ण करने कि एक लघु चेष्टा ....

Tuesday, April 26, 2011

"हार गयी मैं.. "

तुमसे मिले

उस माधुर्य को एकत्र कर..

मोतियों जैसा उज्ज्वल..

सौम्य निर्मल..

ना रख पाई..

मन के किसी कोने में

अहं अभी शेष है ..

तभी उन स्मृतियों को

अंतर्मन में..

परिरक्षित ना कर पाई..

सच!आज..हार गयी मैं.. ..!!!

.

नकारात्मकता को

सकारात्मकता में

परिणत करने का

मेरा हर संभव प्रयास

असफल रहा ............

उस गगन सदृश

व्याप्त प्रतिभाओं को..

तुम्हारे शौर्य अनुसार

आंक नहीं पाई..

सच !!आज,हार गयी मैं.. ..!!!

~~~S-ROZ ~~~


5 comments:

  1. सरोज जी......बहुत गहन पोस्ट है.....पर नकरात्मकता तो मात्र एक सोच है जिसे आज नहीं तो कल बदलना ही होगा.......और ऐसा सिर्फ आप खुद ही कर सकती हैं......शुभकामनायें|

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  2. बहुत कोमल सी भावनाओं को प्रेषित किया है ....सुन्दर रचना

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  3. इमरान जी /संजय जी /आप लोगो का हार्दिक आभार इस कविता कि भावना को समझने व सराहने के लिए

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  4. जय हो !
    सुन्दर ब्लोग !
    अच्छी रचनाएं !
    बधाई हो !
    www.omkagad.blogspot.com

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  5. ओम पुरोहित जी, आपके स्नेह व प्रोत्साहन का बहुत बहुत धन्यवाद !!

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