अधूरे ख्वाब
"सुनी जो मैंने आने की आहट गरीबखाना सजाया हमने "
डायरी के फाड़ दिए गए पन्नो में भी सांस ले रही होती है अधबनी कृतियाँ, फड़फडाते है कई शब्द और उपमाएं
विस्मृत नहीं हो पाती सारी स्मृतियाँ, "डायरी के फटे पन्नों पर" प्रतीक्षारत अधूरी कृतियाँ जिन्हें ब्लॉग के मध्यम से पूर्ण करने कि एक लघु चेष्टा ....
Wednesday, October 8, 2014
तेरी कहानी
रेज़ा-रेज़ा सारे हर्फ़
मेरे लफ़्ज़ों में .....
लफ्ज़ मानी में
और मानी ...
तेरी कहानी में
तब्दील हो जाते हैं
मेरा ....फिर कुछ
मेरा नहीं रह जाता !!
Saturday, October 4, 2014
ग़ज़ल
अपनी बेरुख़ी से खुद ही खफा हूँ मैं
न मिल मुझसे ज़माने की हवा हूँ मैं
तुझसे न मिलने का क्यूँ हो मलाल
तस्सव्वुर में मिलती कई दफ़ा हूँ मैं
खरीद न पाओगे बाज़ार से अब तुम
क़ीमत नहीं जिसकी वो वफ़ा हूँ मैं
गर करते हो कारोबार रिश्तों में भी
क्या हासिल न नुकसान न नफ़ा हूँ मैं
राह-ए-कुफ़्र से न डरा मुझको 'रोज़'
ज़िन्दगी की ज़ानिब बेपरवा हूँ मैं
s-roz
Sent from Samsung Mobile
Newer Posts
Older Posts
Home
Subscribe to:
Posts (Atom)