अधूरे ख्वाब


"सुनी जो मैंने आने की आहट गरीबखाना सजाया हमने "


डायरी के फाड़ दिए गए पन्नो में भी सांस ले रही होती है अधबनी कृतियाँ, फड़फडाते है कई शब्द और उपमाएं

विस्मृत नहीं हो पाती सारी स्मृतियाँ, "डायरी के फटे पन्नों पर" प्रतीक्षारत अधूरी कृतियाँ जिन्हें ब्लॉग के मध्यम से पूर्ण करने कि एक लघु चेष्टा ....

Friday, January 24, 2014

नज़्म

तुम्हे धूप-धूप समेट लूं 
तुम्हे छांव-छांव गुमेट लूँ 
तुम्हे रंग-रंग निखार दूं 
तुम्हे हर्फ़-हर्फ संवार दूँ 
फ़िलवक्त आई मौत भी तो 
कह दूंगी उसे इस रुआब से 
जा मुल्तवी हो इस दयार से 
अभी करने है मुझे काम कई 

4 comments:


  1. भावो का सुन्दर समायोजन......

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  2. बहुत बहुत शुक्रिया सुषमा जी

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  3. बहुत बहुत शुक्रिया सुषमा जी

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