अधूरे ख्वाब


"सुनी जो मैंने आने की आहट गरीबखाना सजाया हमने "


डायरी के फाड़ दिए गए पन्नो में भी सांस ले रही होती है अधबनी कृतियाँ, फड़फडाते है कई शब्द और उपमाएं

विस्मृत नहीं हो पाती सारी स्मृतियाँ, "डायरी के फटे पन्नों पर" प्रतीक्षारत अधूरी कृतियाँ जिन्हें ब्लॉग के मध्यम से पूर्ण करने कि एक लघु चेष्टा ....

Tuesday, January 8, 2013

"मर्ज़"

बे-वक्त डाल से
फूलों के मुरझाकर
गिर जाने का इलज़ाम
बेशक मौसम की  तल्खियों पर  हो
मगर मेरा ख्याल यह भी है के
जरा उनकी जड़ों को भी खंगाला जाए
दरअसल,
दीमकों का असर देर से नज़र आता है !
~s-roz~

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