अधूरे ख्वाब


"सुनी जो मैंने आने की आहट गरीबखाना सजाया हमने "


डायरी के फाड़ दिए गए पन्नो में भी सांस ले रही होती है अधबनी कृतियाँ, फड़फडाते है कई शब्द और उपमाएं

विस्मृत नहीं हो पाती सारी स्मृतियाँ, "डायरी के फटे पन्नों पर" प्रतीक्षारत अधूरी कृतियाँ जिन्हें ब्लॉग के मध्यम से पूर्ण करने कि एक लघु चेष्टा ....

Wednesday, August 10, 2011

"ए भारतीय युवक निंद्रा त्याग !!

(युवक!' शीर्षक के नाम  से यह  भगत सिंह का  लेख   साप्ताहिक मतवाला (वर्ष  २ अंक सं  .१६ मई १९२५)में बलवंत सिंह के नाम से छपा था ,इसकी चर्चा "मतवाला" के सम्पादकीय कार्य से जुड़े आचार्य शिवपूजन सही कि डायरी में भी मिली है )उसी के कुछ अंश !!
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"ए भारतीय युवक ! तू क्यों गफलत कि नींद में पड़ा बेखबर सो रहा है !उठ ,आँखें खोल ,देख प्राची -दिशा का ललाट सिन्दूर रंजित हो उठा !अब अधिक मत सो !सोना है तो अनंत निंद्रा कि गोद में जाकर सो रह !कापुरुषता के क्रोड़ में क्यों सोता है ?माया -मोह-ममता त्याग कर गरज उठ-!!!.
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Farewell Farewell My true Love
The  army is on move
And if I stayed with You Love
Acoward I shall prove ;
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तेरी माता, .तेरी परम वन्दनीय.तेरी जगदम्बा.तेरी अन्नपूर्णा  ,तेरी त्रिशुलधारिणी,तेरी सिंघ्वासिनी,तेरी शस्य  श्याम्लान्चला आज फूट फूटकर रो रही है ,क्या उसकी विकलता तुझे तनिक भी विचलित नहीं करती ?धिक्कार है तेरी निर्जीवता पर !तेरे पित्तर भी शर्मसार हैं इस  नंपुसत्व  पर !यदि अब भी तेरे किसी अंग में कुछ हया बाकी हो तो उठकर माता कि दूध कि लाज रख ,उसके उद्धार  का बीड़ा उठा ,उसके आँसुओं  कि एक एक बूंद की सौगंध ले!उसका  बेडा पार कर ,और बोल मुक्त कंठ से ....वन्दे मातरम!!!
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भगत सिंह ने ये तब लिखा था जब देश आजाद नहीं था पर ऐसा लगता है की ये आज के सन्दर्भ में भी उतना ही सटीक है ..!!तब दूसरो से अपने देश को आजाद कराना था आज अपनी मानसिकता.भ्रष्टाचार ,आतंकवाद,अनाचार,आदि से अपनी मातृभूमि को आजाद कराना है ...हम अभी आजाद कहा हुए हैं ?.....हर इंसान किसी  ना किसी गुलामी में फ़सा हुआ है !!!.......काश की भगत सिंह के कहे ये शब्द हमें आंदोलित कर पावें ..जय हिंद !!!
 

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