बरसा तो खूब जम कर शब भर पानी
फिर भी तिश्नगी लब पर छोड़ गया है
गुल पत्ते बूटे शाख शजर हैरां हैरां से
ये कौन हमें बे मौसम झिंझोड़ गया है
बिछड़े पत्ते फिर न बैठ पायेंगे शाखों पे
ठीकरा इसका गैरों के सर फोड़ गया है
दिल के गर्द-ओ-गुबार यूँ उड़ते नहीं देखे
गोया कारवां भी रुख अपना मोड़ गया है
s-roz