अधूरे ख्वाब


"सुनी जो मैंने आने की आहट गरीबखाना सजाया हमने "


डायरी के फाड़ दिए गए पन्नो में भी सांस ले रही होती है अधबनी कृतियाँ, फड़फडाते है कई शब्द और उपमाएं

विस्मृत नहीं हो पाती सारी स्मृतियाँ, "डायरी के फटे पन्नों पर" प्रतीक्षारत अधूरी कृतियाँ जिन्हें ब्लॉग के मध्यम से पूर्ण करने कि एक लघु चेष्टा ....

Sunday, January 18, 2015

मौन

जब-जब मैं तुम्हे 
बंद आखों से निहारती हूँ 
हमारे बीच का व्याप्त मौन 
शांत प्रकृति की ध्वनियों की तरह 
तरंगित हो उठता है 
जो विचलित नहीं करता 
बल्कि उस मौन को और भी गहरा देता हैं 
फिर मौन से भरा सारा आकाश 
मुझे घेर लेता है 
जो तुम्हारे होने की अनुभूति है 
क्यूंकि ...............
तुम तो आकाश हो न ?

~s-roz~