अधूरे ख्वाब


"सुनी जो मैंने आने की आहट गरीबखाना सजाया हमने "


डायरी के फाड़ दिए गए पन्नो में भी सांस ले रही होती है अधबनी कृतियाँ, फड़फडाते है कई शब्द और उपमाएं

विस्मृत नहीं हो पाती सारी स्मृतियाँ, "डायरी के फटे पन्नों पर" प्रतीक्षारत अधूरी कृतियाँ जिन्हें ब्लॉग के मध्यम से पूर्ण करने कि एक लघु चेष्टा ....

Sunday, April 29, 2012

Re: "मुद्दत हुई "


On Wed, Oct 5, 2011 at 1:25 PM, saroj singh <sarojdeva28@gmail.com> wrote:
बहुत मशरूफ सा रहने लगा है या के कोई रंज है
मुद्दत हुई कायदे से कोई हिचकी आए!
ना आफताब निकला,ना शमा जली ना ही चाँद है
मुद्दत हुई कायदे से घर में रौशनी आए !
ना ही दिलखुश मंजर है,ना ही तेरी गुलज़ार बातें हैं
मुद्दत हुई कायदे से लब पे कोई हँसी आए!
रुसवा जो हुई ख़ुशी मेरे दर से और रातें भी ग़मगीन है
मुद्दत हुई कायदे से मेरी जिंदगी में जिंदगी आए !
~~~S-ROZ~~~


Tuesday, April 24, 2012

"पाँव नंगे चप्पल है सरपर"

कमाऊ बेटे से
माँ की फटी एडियाँ,रुखी दरारें
शायद देखी ना गयीं होंगी ...........
सो ले आया उसके लिए
एक जोड़ी गुलाबी चप्पल
पर जिसने ता-जिंदगी नंगे पाँव बोझा ढोते काट दी हो
अपना सुख- श्रृंगार अपने परिवार में बाँट दी हो
भला वो चप्पल उसका दुःख कैसे बाँट सकता है
वो तो बस उसके पैरों को काट सकता है
फिर भी बेटे के सकून को वो .....
रोज घर से निकलती है चप्पल पहन कर
कुछ दूर चल कर चप्पलों को धर लेती है सर पर
वो चप्पल उसके बोझ में इक इजाफा सा है
पर बेटे की ख़ुशी के आगे वो बिलकुल जरा सा है
~s-roz ~