भाव यही है कि शिव अव्यक्त लिंग (बीज) के रूप में इस सृष्टि के पूर्व में स्थित हैं। वही अव्यक्त लिंग पुन: व्यक्त लिंग के रूप में प्रकट होता है। जिस प्रकार ब्रह्म को पूरी तरह न समझ पाने के कारण 'नेति-नेति' कहा जाता है, उसी प्रकार यह शिव व्यक्त भी है और अव्यक्त भी। वस्तुत: अज्ञानी और अशिक्षित व्यक्ति को अव्यक्त ब्रह्म (निर्गुण) की शिक्षा देना जब दुष्कर जान पड़ता है, तब व्यक्त मूर्ति की कल्पना की जाती है। शिवलिंग वही व्यक्त मूर्ति है।
शंकर जी को जगत पिता कहाँ गया है इसलिए पुर्व्काल मे मुर्ति शिश्नरूप मे होती थी , भग (योनी)एव लिंग इन् जनानिन्द्रियों के कारण हि प्राणी सृष्टि उत्पत्ति सम्भव होती है ,यह जन्ते हुए आदिमनाव समाज ne इन्हे पुजत्व प्रदान किया इसिसे योनी के प्रतीक शालुका और लिंग के प्रतिक लिंग के संयोंजन से पिंडी निर्मित हुइ ,भूमि( याने सृजन और शिव याने पवित्रता इस प्रकार शालुका(लिंग्वेदी) मे सृजन और पवित्रता के रह्ते हुए भी ,विश्व कि उत्पत्ति वीर्य द्वारा नही हुइ है ,बल्कि शिव के संकल्प द्वारा हुइ है .आठ शिव वा पार्वती जगत के मत पिता हुए ,
- उनकी जटाएं वेदों की ऋचाएं हैं। शिव त्रिनेत्रधारी हैं अर्थात भूत, भविष्य और वर्तमान तीनों के ज्ञाता हैं।
- बाघंबर उनका आसन है और वे गज चर्म का उत्तरीय धारण करते हैं। हमारी संस्कृति में बाघ क्रूरता और संकटों का प्रतीक है, जबकि हाथी मंगलकारी माना गया है। शिव के इस स्वरूप का अर्थ यह है कि वे दूषित विचारों को दबाकर अपने भक्तों को मंगल प्रदान करते हैं।
- शिव का त्रिशूल उनके भक्तों को त्रिताप से मुक्ति दिलाता है।
- उनके सांपों की माला धारण करने का अर्थ है कि यह संपूर्ण कालचक्र कुंडली मार कर उन्हीं के आश्रित रहता है। चिता की राख के लेपन का आशय दुनिया से वैराग्य का संदेश देना है। भगवान
- शिव के विष पान का अर्थ है कि वे अपनी शरण में आए हुए जनों के संपूर्ण दुखों को पी जाते हैं।
- शिव की सवारी नंदी यानी बैल है। यहां बैल धर्म और पुरुषार्थ का प्रतीक है।