अधूरे ख्वाब


"सुनी जो मैंने आने की आहट गरीबखाना सजाया हमने "


डायरी के फाड़ दिए गए पन्नो में भी सांस ले रही होती है अधबनी कृतियाँ, फड़फडाते है कई शब्द और उपमाएं

विस्मृत नहीं हो पाती सारी स्मृतियाँ, "डायरी के फटे पन्नों पर" प्रतीक्षारत अधूरी कृतियाँ जिन्हें ब्लॉग के मध्यम से पूर्ण करने कि एक लघु चेष्टा ....

Friday, January 31, 2014

"सरहद "

आँखों ने ज़मीं के कैनवास पर 
सागर का नीलापन देखा 
परबत का 
सब्ज़,कत्थई,भूरा होना देखा 
नदियों की पारदर्शिता देखी 
मैदानों में हरियाली दिखी 
खुशरंग फूलों की घाटियाँ देखीं 

मगर सरहद की कंटीली बाड़ों से 
हवा के बदन पर 
मुसलसल उभरती ख़राशों से 
लहू टपकते देखा है 
तभी तो ........
वहां की सुनहरी ज़मीं
लाल दिखाई पड़ती है
!
~s-roz~

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