अधूरे ख्वाब


"सुनी जो मैंने आने की आहट गरीबखाना सजाया हमने "


डायरी के फाड़ दिए गए पन्नो में भी सांस ले रही होती है अधबनी कृतियाँ, फड़फडाते है कई शब्द और उपमाएं

विस्मृत नहीं हो पाती सारी स्मृतियाँ, "डायरी के फटे पन्नों पर" प्रतीक्षारत अधूरी कृतियाँ जिन्हें ब्लॉग के मध्यम से पूर्ण करने कि एक लघु चेष्टा ....

Wednesday, April 22, 2020

लुफ्त-उन-निसा

लुफ्त-उन-निसा 

(जो  ताजिंदगी आलीशान  हाथी सवार (सिराजुद्दोला )की सज्जा संगनी रह  चुकी हो वो गधे की पीठ पर सवार होने वाले(मिरजाफ़र )की अंकसायनी कतई नहीं हो सकती)

 

गद्दार मिरजाफ़र के निकाह प्रस्ताव पर ऐसा संदेश भेजने वाली जाँबाज महिला के बारे में शायद ही बहुत लोग जानते हों क्योंकि इतिहास ने ऐसी कई महिलाओं को अपने अंक में शरण नहीं दी है तो आइये जाने कौन थी लुफ्त-उन-निसा  ?

१७४० में अलीवर्दी खान बंगाल के नवाब बने। जिन्होने १७५६ तक बंगाल की कमान संभाली । उनकी दो बेटियाँ हुईं अमीना बेगम एवं घसीटी बेगम ।सिराजुद्दोला अमीना बेगम के पुत्र थे ।सन १७५६ में अलीवर्दी खान की मृत्यु के बाद सिराजुद्दोला बंगाल बिहार और उड़ीसा के अंतिम स्वाधीन नवाब नवाब बने।

 लुफ्त-उन-निसा  सिराजुद्दोला की दूसरी  बेगम थीं । जिनके बारे में कहा जाता है कि वो गरीब हिन्दू परिवार की बेटी थी। जिसका जन्म के सिराजुद्दोला नाना अलीवर्दी खान के जानना महल में हुआ था। जो बाद में सिराजुद्दोला की माँ अमीना बेगम की परिचारिका बनी। जिसे राजकंवर के नाम से पुकारा जाता था ।मुर्शिदाबाद के हजारदुआरी राजप्रासाद में वो अमीना बेगम की सेवा किया करती थी । लुफ्त-उन- निसा  बहुत ही रूपवान गुणी व मृदुभाषी थी। उसने अपने नम्र व्यवहार से  अमीना बेगम का दिल जीत लिया था ।अमीना बेगम भी उनसे अगाध स्नेह करती थी ।उस वक़्त सिराजुद्दोला का विवाह अभिजात्य वर्ग के इराज खान की पुत्री उम्दत-उन-निसा से १७४६ में १३ वर्ष की आयु में हो चुका था ।किन्तु वह अपनी शादी शुदा ज़िंदगी से संतुष्ट नहीं थे कारण उनकी कोई संतान नहीं थी ।उसी वक़्त अमीना बेगम ने राजकंवर को सिराजुदौला की सेवा में लगा दिया । सिराजुद्दोला राजकंवर के सौंदर्य व गुण पर मोहित हो चुके थे ।और राजकंवर भी सिराज के व्यक्तित्व व पराक्रम से प्रभावित थी ।  उससे आकृष्ट होकर सिराज ने  अपनी माँ के समक्ष राजकंवर से विवाह का प्रस्ताव रक्खा जिसे अमीना बेगम ने सहर्ष स्वीकार कर लिया ।१७५० में निकाह के समय राजकंवर को इस्लाम की दीक्षा देकर लुफ्त-उन-निसा नाम दिया गया जिसे सिराज प्यार से लुत्फ़ा बुलाया करते । लुफ्त-उन-निसा  से सिराज को एक पुत्री का जन्म हुआ ।जिसका नाम रक्खा गया ज़ोहरा बेगम उर्फ कुदिसा बेगम । १७४८ में सिराज के पिता जोइनूद्दीन अहमद खान अफगानी विद्रोहियों द्वारा मारे गए उसके पश्चात सिराज के नाना अलीवर्दी खान  ने सिराजुद्दोला को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया । सिराज के नवाब बनते ही बंगाल का दरबार पारिवारिक षड्यंत्रों का अखाड़ा बन गया।  सिराजुद्दोला मात्र १५ महीने सत्तारूढ़ रहे उनके अपनों ने ही उनका साथ नहीं दिया रिश्तेदारों द्वारा ही सिराज को गद्दी से उतारने के लिए कई षड्यन्त्र रचे गए  ऐसे में एकमात्र सिराज की प्रियतमा पत्नी  लुफ्त-उन-निसा उनके साथ खड़ी रहीं। सिराज के साथ सबसे बड़ा विश्वासघात हुआ प्लासी के युद्ध में सन् 1757 में प्लासी के मैदान में बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला और इस्ट ईंडिया कंपनी के कप्तान राबर्ट क्लाईव के बीच हुई सिराज की विशाल १८०० सेना के समक्ष लॉर्ड क्लाइव की मात्र ६००० सेना थी ।क्लाइव को हराना बेहद आसान था किन्तु सिराज के सेनापति मिरजाफ़र लॉर्ड क्लाइव के साथ मिलकर भीषण गद्दारी की और सिराज की सेना युद्ध हार गयी ।हार के पश्चात सिराज ने बहुतों से मदत मांगी मगर अपनों में से किसी ने भी उनकी मदद नहीं की यहाँ तक की सिराज के ससुर इराज खान ने भी मदत नहीं की ।साथ थी तो बस लुफ्त-उन-निसा व उनकी तीन साल  की बेटी तीनों वेश बदलकर पटना में छिपने की कोशिश की मगर दुर्भाग्य  से सिराज पकड़े गए उन्हे बंदी बनाकर मिरजाफ़र के आवास पर लाया गया जो मुर्शिदाबाद में है जिसे अब "नमक हराम की ड्योढ़ी" कहा जाता है । २ जुलाई १७५७ को मिजाफ़र के पुत्र मिरन के कहने पर अलिबेग ने सरे आम गोली मारकर  सिराज की हत्या कर दी और उनके शव को हाथी पर लादकर पूरे नगर में घुमाया गया ताकि लोगों में ईस्ट इंडिया कंपनी के नाम का डर बैठ  जाये । मिरजाफ़र के भय से सिराज के शव को कोई हाथ भी नहीं लगा रहा था बाद में मिर्ज़ा ज़एन ने अपनी जान कि परवाह न करते हुये सिराज के शव को भागीरथी नदी  के पास खुशबाग में जंहा उनके नाना  अली वर्दी खान को दफनाया गया था उन्ही के पास दफना दिया ।प्लासी के युद्ध को भारत के लिए बहुत दुर्भाग्यपूर्ण माना जाता है। इस युद्ध से ही भारत की दासता की कहानी शुरू होती है ।

सिराज की मृत्यु के बाद लॉर्ड कलाइव ने मिरजाफ़र को बंगाल का नवाब बना दिया ।नवाब बनने के बाद उसने सिराज के जानना महल में संदेश भिजवाया कि सभी औरतें उसकी हरम में रह सकती हैं ।मिरजाफ़र और उसका पुत्र मिरन दोनों लुफ्त-उन-निसा के सौंदर्य पर मोहित थे व उससे निकाह करना चाहते थे ।मिरजाफ़र ने लुफ्त-उन-निसा को कई बार निकाह के संदेश भेजे हर बार लुफ़्तूनिसा ने मना कर दिया आखिर तंग आकार उत्तरसने एक पत्र के मार्फत संदेश भिजवाया कि" जो  ताजिंदगी आलीशान  हाथी सवार (सिराजुद्दोला )की सज्जा संगनी रह  चुकी हो वो गधे की पीठ पर सवार होने वाले(मिरजाफ़र )की अंकसायनी कतई नहीं हो सकती)" उसके बाद मिरजाफ़र ने लुफ्त-उन-निसा उसकी बेटी एवं जानना महल की सभी औरतों को बंदी बनाकर ढाका के  जिंजीरा महल जो कि जीर्ण शीर्ण हो चुका था उसमे 7 साल तक कड़े पहरे में  नज़रबंद रखा ।उसके बाद उन्हे मुर्शिदाबाद लाया गया जहां आने के बाद लुफ्त-उन-निसा सिराज की विधवा ही बनकर रही व खुशबाग में अपने नाना  ससुर व सिराज की समाधि की  देखभाल करती रही जिसके लिये ईस्ट इंडिया कंपनी उन्हे 301 रुपये सालाना भत्ता देती व उनके खर्चे के लिए 1000 रुयए सालाना व्यक्तिगत भत्ता  मिलता । व सिराज की पहली पत्नी उम्दत-उन-निसा को 500 रुपये व्यक्तिगत भत्ता मिलता था बाद में उन्होने दूसरी शादी कर ली किन्तु लुत्फ-उन-निसा ताजिंदगी सिराज के प्रति समर्पित रहीं ।वो प्रतिदिन  दिन सिराज की  समाधि आतीं व सारा दिन वहीं रहती धूप बत्ती  करने के बाद ही जातीं

 आर्थिक दृष्टि से कमजोर होते हुये भी उसने अपनी बेटी की शादी बड़े साधारण तरीके से की उनकी  चार लड़कियां हुई कुछ वर्ष बाद लुफ्त-उन-निसा की बेटी व दामाद भी चल बसे अब चारों बच्चियों की पालन पोषण व ब्याह की ज़िम्मेदारी भी लुफ़्त-उन-निसा ने निभाई ।लुफ्त-उन-निसा यदि चाहती तो मिरजाफ़र के महल में विलासी जीवन जी सकती थीं मगर वो उस रास्ते गईं नहीं आत्मसमर्पण नहीं किया । सिराज के साथ  दुःख में सुख में आपदा में विदा में सकल दुःसमय में इस गरिमामय नारी से सिराज को सांत्वना व संबल दिया ! सिराज के जीवन काल में जैसी वो संगिनी रही मृत्यु पर्यंत भी वो सिराज की समाधि के पास अपने शेष दिन काटे व उनकी समाधि पर ही मरी पायी  गईं ।1766  से लेकर 1786 तक दीर्घ 21वर्ष तक वो संघर्षमय जीवन व्यतीत करती रही मात्र एक अपनी कन्या के अवलंबन पर एवं सिराज की स्मृति में ।

तो ये थी लुफ्त-उन-निसा की कहानी जो मात्र कहानी नहीं यथार्त है ! नमन है ऐसी विभूति को !!सरोज


Monday, April 20, 2020

कादम्बरी देवी का सुसाइड नोट


कादम्बरी देवी का सुसाइड नोट
----------------------------
21अप्रैल एक ऐसी विदुषी महिला की पुण्य तिथि है जो मात्र पच्चीस बसंत ही देख पायीं और जिनकी ज़िंदगी अधिकतर दुःख,एकाकीपन और तिरस्कार में बीता । मैं बात कर रही हूँ अपने युग के महान कवि दार्शनिक और चित्रकार रवीन्द्र नाथ टैगोर की नयी भाभी श्रीमति कादम्बरी देवी की जो उनका पहला प्रेम थीं ।
19वीं सदी में टैगोर परिवार बंगाल के सबसे उच्च अभिजात्य और समृद्ध परिवार में से एक था । कुलीन पिराली ब्राह्मण परिवार।भारतीय समाज के हिसाब से समय से कहीं आगे की जीवनशैली जीने वाला परिवार।रवीन्द्रनाथ कुल 11 भाई बहन थे । सभी बहुवें सुशिक्षित थी । रविन्द्र नाथ टैगोर की बड़ी भाभी ज्ञाननंदनी देवी(सत्येन्द्र नाथ जो पहले आई सी एस परीक्षा पास करने वाले भारतीय की पत्नी ) उच्च शिक्षित व आधुनिक महिला थीं ।जो अकेले पानी वाले जहाज से इंगलेंड घूम चुकी थीं ।कादम्बरी देवी के पति ज्योतीन्द्र नाथ जो गायक ,नाटकार ,संगीतकार थे वो भी अपने भाभी के प्रति आकर्षित थे और कई महिला रंगकर्मी से भी उनके संबंध रहे । कादम्बरी देवी बहुत साधारण परिवार की थीं उनके पिताजी श्याम गंगोपाध्याय रवीन्द्र नाथ के घर का बाजार हाट करते थे । रवीन्द्र नाथ के पिताजी देवेन्द्र नाथ के कहने पर यतीन्द्र नाथ जो कि कादम्बरी देवी से दस साल बड़े थे उनसे विवाह हुआ मगर न तो गरीब बाप और न ही उनकी बेटी को इस विशिष्ट परिवार में सम्मानित जगह मिल पाया ।और तो और उनकर जेठानी कादम्बरी देवी को अपमानित व तिरस्कारित करने में कोई कोर कसर न छोड़तीं। कादम्बरी देवी के कोई संतान नहीं हुई जिसकी वजह से उनको बांझ होने का भी लांछन भी सहना पड़ा ।सीरत की राजनीति,वर्ग की राजनीति व प्रजनन की राजनीति –अगर कादम्बरी देवी पर विश्वास किया जाये तो संपन्न, सुसंस्कृत और आधुनिक नज़र रखने वाला टैगोर परिवार द्वारा कादम्बरी देवी को अपूर्ण ,असुरक्षित और अकेला करने में इन तीनों स्तरों पर कोई कसर नहीं छोड़ी गयी ।
रविंद्रनाथ टैगोर तब आठ वर्ष के थे ।जब उनके बड़े भाई यतींद्नाथ का ब्याह उनसे 10 साल छोटी कादम्बरी देवी से हुआ ।रवीन्द्रनाथ उस वक़्त 8 वर्ष के थे ।टैगोर परिवार में ब्याह के आते ही कादंबरी की दोस्ती पति से कहीं अधिक देवर रविंद्र नाथ से हो गई ।कादम्बरी देवी समझदार एवं खूब प्रतिभाशाली थीं। ससुराल में आने के बाद अपनी पढ़ाई पूरी की ।अभिनय की बात हो या साहित्य व काव्य चर्चा या फिर हॉर्स राइडिंग जैसी साहसिक कार्य हो वो ... हर जगह आगे रहती। ज्योतींद्रनाथ भी उच्च शिक्षा प्राप्त विद्वान थे जिनका पूरा समय नाटक और थिएटर मे बीतता ।कादंबरी को वो सम्मान और प्रेम न दे पाये जो कि एक पत्नी होने के नाते कादम्बरी को मिलनी चाहिए थी । घर की औरतों से अनादर और पति की उपेक्षा कादंबरी और रविंद्र के बीच पनपता लगाव समय के साथ एक दूसरे को समीप लाता गया ।
जब रविंद्रनाथ टैगोर की माँ का निधन हुआ तब कादंबरी अपने दोस्त सरीखे देवर की संरक्षिका बन गई यही वो समय था जब कादम्बरी देवी ने रवीन्द्र को सँभाला और माँ समान देख भाल की और बाद मे यही सानिध्य प्रेम मे परिणत हुआ । हमउम्र होने के नाते कादम्बरी और रविंद्र के बीच ऐसी दोस्ती पनपी , जो दिन ब दिन दोनों को बहुत नजदीक ले आई ।मगर जब ठाकुर परिवार में इस संबंध को लेकर बातें बनने लगीं तब पिता देवेन्द्र्नाथ के आग्रह पर रवीन्द्रनाथ विवाह हो गया । कादम्बरी देवी यह सह न पाई और शादी के 4 माह बाद 19 अप्रैल 1884 को अफीम की अधिक मात्रा में सेवन कर ली । दो दिन उनको बचाने की कोशिश की गई मगर 21 अप्रैल को वो चल बसी । उनके जाने के बाद कुल परिवार समुद्री जात्रा पर निकल गया ।
कोलकाता के लेखक -पत्रकार रंजन बंद्योपाध्याय के किताब "कांदबरी देबीर सुसाइड नोट " जब
छपी तब ब्लॉकबस्टर साबित हुई ।रंजन बंद्योपाध्याय की किताब "कादंबरीर देबीर सुसाइड नोट"128 पृष्ट की औपन्यासिक कृति है जो कि कुछ स्थापित तथ्यों पर आधारित है । रवींद्रनाथ तब 23 वर्ष के थे , उनकी 'नोतून बाऊथान' (नयी भाभी )कादम्बरी 25 वर्ष की थीं ।उनके जाने के उपरांत रवींद्रनाथ अपने अधूरे प्रेम को आधार बना कर " नष्टो नीड़" नाम का उपन्यास लिखा ।सत्यजित राय की सुप्रसिद्ध फिल्म "चारुलता" इसी उपन्यास पर आधारित है ।
टैगोर अपनी ज़िंदगी में ज्यादातर जितनी भी रोमांटिक कवितायेँ लिखीं या महिलाओं की जितनी भी पेंटिंग बनाई वो कादम्बरी को ही केन्द्र में रख कर तैयार की गई हैं
रंजन बंद्योपाध्याय के किताब के अनुसार -
रवींद्रनाथ के पिताजी 'महर्षि' देवेंद्रनाथ कादम्बरी देवी की मृत्यु से सबंधित सारे सबूत को जला देने का आदेश क्यूँ दिया ? क्यों उन सब लोगों को जो इस बारे में कुछ भी जानते थे घूस देकर चुप करा दिया गया ? आनन फानन में मृत शरीर को शवगृह न भेज कर अपने घर के बागान में उनका अंतिम संस्कार कर दिया गया।
सभी सबूत जला दिये गए संपादकों को घूस दे कर मुह बंद करा दिया गया ।जिस वजह से उस वक़्त किसी भी अख़बार में उनकी आत्महत्या की खबर नहीं छपी ।
बंद्योपाध्याय खुद से या संभवत: पाठक से सवाल करते हैं – क्या
कादंबरी देवी आत्महत्या के बारे में कुछ लिख कर छोड़ गईं थी ?
अपने हृदय सम्राट या भविष्य के लिए कोई पत्र?
संभवत: वो कुछ लिखी होंगी और यदि ऐसा था तो
निश्चय ही वो पत्र को भी परिवार के मुखिया के आदेश पर आग को भेंट कर दिया गया होगा।
पाठक को संबोधित करते हुये बंद्योपाध्याय लिखते हैं : ये असल में सुसाइड नोट(आत्मघात से पहले लिखी गई टिप्पणी) नहीं है बल्कि लंबा पत्र है , ऐसा पत्र जो कि पूरा का पूरा जला है । इसको आग से किसने निकाला होगा ?क्या वो रवीन्द्रनाथ थे ?इस घटना के 127 साल बाद पाठक सिसकी, कानाफूसी और ऐसे संबंध, जिसका नाम लेना भी वर्जित है उसी गलियारे से गुजरता है । इसके मूल में एक बदनसीब स्त्री का क्रंदन है जो अपनी बात के सुनाने पुकार करती है।
पत्र के कुछ महत्वपूर्ण अंश -
आमार प्राणेर रोबि (मेरे प्राणप्रिय रवि)
मेरी अंतिम घड़ी आ चुकी है ।मैं पूर्बी आकाश की ओर ताक रही हूँ जो लाल हो चुका है ।पहले तो तुम्हारे नींद से उठने और सूरज के उगने के पूर्व ही मेरी नींद खुलती थी तुम्हारे भोर गान से ।आजकल तुम्हें सो कर उठने में काफी देर होती है!ये तो स्वाभाविक ही है , मात्र चार माह ही तो हुये हैं ब्याह को ।इस ज़िंदगी के शेष महूरत मे जाने से पहले मैंने लिख दिया है सब हताशा सब दुख सब यंत्रणा इसमे कोई झूठ बात नहीं है रबी, हमने बाते बनाना कभी नहीं सीखा केवल तुम्हें सिर्फ तुम्हें प्रेम किया है ।
मेरे जन्मदिन के दिन तुम्हारे नोतुन दादा के संग मेरा
ब्याह हुआ ।वो था मेरा 9 वाँ जनमदिन। मेरी माँ ने कहा था "जनम दिन के दिन ब्याह करना अशुभ होता है"
मगर तुमलोग ठहरे उच्च ब्राह्मण उच्च विचारों वाले इस तरह के विचार तुमलोग नहीं मानते ।ठाकुर परिवार की बहू बन कर आई थी मैं ।मेरा परिचय बना नोतुन दादार बो(नतून दादा की बहू ) और तुमने मुझे प्यार से बुलाया नोतुन बौउठान(नयी भाभी )।
ठाकुर पो,एक दिन ,मझली भाभी के कमरे के पास मैंने सुना मझले दादा सत्येन्द्रनाथ ठाकुर की आवाज..जो अपनी पत्नी से कह रहे थे कि"ये किसको ले आई घर? ये लड़की किस खयाल से हमारे ज्योति के लिए उपयुक्त है ?ये कोई शादी हुई भला ?"
ठाकुर पो,मुझे खूब भय लगा बात सुन के और दुःख भी हुआ । भय इस वजह से कि कहीं वो लोग मुझे घर से न भागा दें तब मैं क्या करूंगी ?
"ठाकुर पो, वो बातें आज भी मेरे कानो में गूँजती है "इस शादी से किसी का कल्याण नहीं होगा। "तुमलोग के संसार का सबसे बड़ा श्राप हूँ मैं ।, मैं पापी तुमसे प्रेम कर बैठी ।आज उसी अमंगल पापी की बिदाइ है ।मैं चली जाऊँ तभी तुमलोग के संसार में फिर से सुख शांति लौटेगी ।तुम्हारे नतून दादा मुझे अपनी स्त्री के रूप में पाकर कभी सुखी नहीं हुये ।हमलोगो का कभी मन का मेल नहीं हो पाया ।सच मैं उनके योग्य स्त्री कभी हो ही नहीं पायी। ,वो सारी ज़िंदगी मुझसे दूर रहे ।
ठाकुर पो, तुमने मुझे इतना माना ,मानते कवि बिहारीलाल चक्रवर्ती भी थे ।मेरे प्रति उनकी भक्ति व अनुराग से मैं शर्मा जाती थी । किन्तु तुम्हारे नोतून दादा का प्रेम... ना किसी दिन न पा सकी ।
ठाकुर पो, तुमसे कुछ भी ढका छिपा नहीं है ।अंतत: तुमने अनुभव किया है कि मेरे और तुम्हारे दादा का संबंध बेहद दिखावटी था । हमारे संपर्क की कोई प्राण प्रतिष्ट्ठा नहीं हुई ।
रोबी, मेरे प्राण प्रिय रोबी, मेरा सब दुःख, सब पराजय और अपमान एक तरफ और एक तरफ सिर्फ तुम ।ठाकुर बाड़ी में मेरे एकमात्र हासिल तुम ही थे सिर्फ तुम । 9 वर्ष की आयु में इस घर में आकार अपने संगी साथी के रूप में तुमको पाया ।छुटपन से जब जवानी की दहलीज़ पर कदम रक्खा तब देह व मन अलग तरीके से बदलने लगा ।जब बदला मेरे चाहत का रंग तब तुम्हें ही एकमात्र बंधु पाया । मेरे प्रति ठाकुर बाड़ी की समस्त उपेक्षा ,घृणा ,अवहेलना का प्रतिशोध लिया तुमने । मेरे परम पुरुष थे तुम । यदि कोई समझ सकता था मेरे हृदय का दहन तो वो तुम थे।
मुझे याद है नन्दन कानन (चन्दन नगर)में रात के अंधेरे में तुमने मुझे गले लगा कर कहा था "नोतुन बउठान तुम्हारे भीतर क्या जल रहा है मैं जानता हूँ तुम्हारी तरह मीठे बोल इस घर में कोई नहीं बोलता।" तुम्हारी बात सुन कर तुम्हारे हृदय के आश्रय के बीच मुझे प्रतीत हुआ कि मेरे भीतर के सभी दुःख व तकलीफ तुम्हारे प्रेम कि बारिश में बह गए ।मुझे एहसास हुआ कि तुम मेरे चिरकाल के संगी हो ।
ठाकुर पो, तुम्हारा वो मन जो अनुभव करता रहा मेरा अपमान मेरा एकाकीपन जो मन सब समय छूता था मेरा मन ।उस मन को हमने चिरकाल तक पाया है ,किन्तु उस मन पर अब मेरा कोई अधिकार नहीं है इसी आस पर मैं अबतक बची रही । ठाकुर पो, मेरा मन फिर से बिखरता जा रहा है उसपर मेरा कोई वश नहीं ।अब इस दोपहर में अपने घर कि खिड़की से देख रही हूँ कि बामन ठाकुर (रसोइया) तुम्हारे घर मे खाना दे जा रहा है ।आजकल तुम अपनी नयी पत्नी के साथ अपनी कोठरी में ही खाना खाते हो गत चार माह ने तुम्हें एकदम बदल कर रख दिया है । इसके पहले तो तुम्हें मेरे हाथ के सिवा किसी और का खाना खाना पसंद भी नहीं था। मुझे बाधित होकर तुम्हारी पसंद का खाना बनाना पड़ता था। अब तुम बामन ठाकुर के खाने से संतुष्ट हो । तुम्हारे ज्योति दादा भी तो हमारे हाथ का बना नहीं खाते ।वो रहते ही कब हैं जो खाते अब तो मैं भूल चुकी हूँ कि कब उन्हे देखा था। उनको तो मझली भाभी की कोठरी में ही आराम मिलता है उनकी रसोई की साहबी(कॉन्टिनेन्टल) डिश हो उन्हे तृप्ति देती है ।
ठाकुर पो,फिर से जीवन के इस शेष प्रहर में मेरा विद्रोही मन रास्ता खोकर बन चुका है एक नया मन ।तब तुम थे एकदम अलग आदमी, मेरे प्राणप्रिय आदमी तब तुम सिर्फ मेरे थे ।
तुम्हारे बिना जीना असंभव है ,जब तुम दूसरी बार विलायत गए थे तब भी मैंने आत्महत्या करने की कोशिश की थी मगर कामयाब न हो सकी किन्तु उसके बाद तैयार हुई मेरी बदनामी मेरी वजह से ठाकुर बाड़ी का माहौल असहनीय हो उठा था ।मैं तुम्हारे नतून दादा को लेकर चन्दन नगर आ गयी वहाँ नील व्यवसायी मोरान साहब की विशाल कोठी को किराये पर लिया गया । वहाँ मैं इनके साथ ये सोच कर गयी थी कि दो लोग मिलकर एक हो सकते हैं मगर हम साथ रहकर भी अजनबी ही बने रहे । तुम्हारे नतून दादा रहा करते अपनी ही दुनिया में और मैं तुम्हारे लिए सारा समय दुखी मन लिए अपनी व्यथा और अपमान बोध के साथ निर्वासित बसी अपनी दुनिया मे ।मैं स्वयं को इस निर्वासन मे जीने के लिए तैयार करने लगी । तुम्हारा जहाज चला तुम्हें लेकर मद्रास जहां से शुरू होती तुम्हारी दूसरी बार की विलायत यात्रा ।किन्तु तुम विलायत नहीं गये मद्रास से जहाज से उतर कर चले आए मेरे पास।
ठाकुर पो, जब तुम आए मेरे देह मन में ज्वार उठा लगा कि सारी कायनात कितनी खूबसूरत है? मेरे मन का घर निर्वासन से लौट आया मगर तुम विलायत क्यों नहीं गए ठाकुर पो ? तुम्हारे पीछे महिला महल के विषाक्त परिवेश में अकेले यह यंत्रणा मैं सह न पाती और आत्महत्या की कोशिश करती इसीलिए न ?तुम लौट आए मेरे आश्रय में मगर क्या तुम मुझे बचा पाये?मेरा प्रेम ही मेरी नियति है तुम किस तरह मुझे बचा पाओगे ?ठाकुर पो, यदि मैं कहूँ कि तुम्हारे विलायत यात्रा से लौट आने में ही निहित था मेरा मरण बीज तो क्या तुम यह बात सह पाओगे ?
ना मेरे जाने के बाद किसी तरह का अपराध बोध में अपने को कष्ट मत देना ,एक रत्ती कष्ट मत देना अपनी नयी बहू को ।ये मेरा भाग्य है । तुम्हारी कोई गलती नहीं । तुम्हारा प्रेम ही तो खींच ले आया मेरे पास, बाकी तो तुम्हारे मेरे वश में कुछ भी नहीं था ।
ठाकुर पो, आज मैंने व्रत रक्खा है । रसोई मे पहले से ही कहा दिया है ।आज मेरा दरवाजा बंद है दुनिया की खातिर आज मैंने इसे बंद कर दिया है । मेरे मरने के बाद जब तुम दरवाजा खोलोगे और मुझे मरा पाओगे तब शायद तुम प्रेरित हो कुछ लिखने के लिए क्या पता उन पंक्तियों के पीछे मैं बसूँ।
मैंने मेज पर रख दी है अपनी सिलाई बॉक्स ।मेरी खिड़की के पास जो फूल का पौधा था उसमे अंतिम बार पानी डाल दिया है ।मेरा नाम लिखा हाथ पंखा ?उसे तकिया के ऊपर रख दिया है ।
कहानी की किताब जिसे कई दिनों से पढ़ रही थी उसे समाप्त नहीं कर पाई ।अपने जुड़े के कांटे को बूकमार्क बना कर उसे वहीं छोडना पड़ा ।तुम्हारे और मेरे जितने लिखे हुये पत्र थे वो सब बिखरे पड़े है पूरे कमरे में ।और कुछ छिपाने को बचा नहीं ठाकुर पो,उन सभी को मेरे चिता के संग जलने देना ।हमारे संबंध के सभी प्रमाण मिटा देना।
ठाकुर पो , अब और कुछ लिख नहीं पा रही फिर भी लिख कर जा रही हूँ । मेरी मृत्यु के लिए कोई उत्तरदायी नहीं है ।दायी नहीं हैं बाबा मोशाय स्वयं बाबू देवेन्द्र्नाथ ठाकुर जिंहोने जबरन तुम्हारा विवाह करा कर मुझसे तुम्हें दूर कर दिया ।कसूरवार नहीं हैं मेरी मझली जेठानी ज्ञानन्दनंदनी देवी जिन्होंने मुझे तुम्हारे नतून दादा के योग्य नहीं समझा ,ना ही दिया कभी लेशमात्र को सम्मान
।तुम्हारे नतून दादा ठाकुर ज्योतीन्द्र नाथ भी दायी नहीं हैं जिनके पॉकेट से एक दिन मुझे मिला था प्रसिद्ध रंगकर्मी का प्रेम पत्र जिसके नीचे कोई नाम न था ।
ठाकुर पो , तुम भी दायी नहीं हो ,तुम्हारी ज़िंदगी की अब नयी पारी शुरू हुई है मैं तो तुम्हारी पुरानी खेल की संगनी हूँ ये जगह तो नए के लिए मुझे छोडनी ही होगी ।तुमने ही तो लिखा था .....
"ढको तब ढको मुख
लेते जाओ दुःख औ सुख
पीछे झांकों मत, झाँको मत तीरे तीरे
यहाँ उजास नहीं अनंत आकाश में
अँधियारे में मिल जा धीरे धीरे "
तब ऐसा ही हो ठाकुर पो, मैं अंधेरे में गुम हो जाऊँ, किन्तु किसी भी रूप में तुम उत्तरदायी नहीं ठाकुर पो, मेरी मृत्यु के लिए दायी है मेरी अमोघ, निर्बोध नियति ।अब मुझे कोई पाप छू नहीं सकता मैं इन सब से दूर जा चुकी हूँ जहां पुण्य है।
मैं तुमसे कभी नहीं कहूँगी कि तुम मुझे याद करो मैं सबकुछ खो चुकी हूँ।बस एक चीज जो नहीं खोया है वह है तुम्हारे प्रति मेरा प्रेम ।अब भी मैं तुमसे बहुत प्रेम करती हूँ मेरा विश्वास करना रबी !
तुम्हारी
नोतून बउठान
.......................
संदर्भ-Ranjan Bandhyopadhya's novel "kadambari devi's suicide note"
Some Youtube bangla videos
सरोज सिंह

Thursday, July 4, 2019

"मैं वीरांगना बोल रही हूँ "

वीरांगना का मतलब बहादुर महिला होता है। बांग्लादेश सरकार ने उन महिलाओं को वीरांगना की संज्ञा दी है जिनसे 1971 में मुक्ति युद्ध के दौरान पाकिस्तानी सैनिकों ने बलात्कार किया। बांग्लादेश की आजादी के लिए लड़ने वाले लोगों का कहना है कि पाकिस्तान सेना ने दो लाख से ज्यादा महिलाओं से बलात्कार किया। बलात्कार की शिकार कई महिलाएं भारत चली गईं तो बहुत-सी महिलाएं ऐसी थीं जिन्हें उनके परिवार ने स्वीकार नहीं किया और उन्होंने आत्महत्या कर ली।
बांग्लादेश की सुप्रसिद्ध साहित्यकार शिक्षाविद समाजसेवी डॉ नीलिमा इब्राहीम ने ऐसी कई महिलाओं की भोगी गयी त्रासद को एकत्रित कर "आमी वीरांगना बोल्छी (As a War heroine, I Speak),"किताब के रूप में बंगला में प्रकाशित करवाया ! इसी किताब की एक कहानी का हिंदी अनुवाद मैंने किया है ...ताकि आमजन भी इसे पढ़कर समझ सकें कि उन वीरांगनाओं ने क्या भोगा है ?
मैं वीरांगना बोल रही हूँ कहानी संख्या -6
---------

मेरा परिचय ?नही देने जैसा परिचय आज और कोई बचा नहीं I मोहल्ले के लड़के लड़कियां आदर से "खोती पागली" बोलते हैं I सच बोलू तो मैं बिलकुल पागल नहीं I जो मुझे पागल बोलते हैं असल में वही पागल है I ये सच्चाई वो जानते नहीं हैं I
बाबा-माँ ने नाम रखा था फातिमा I मैं अपने जन्मदाता की पहली कन्या संतान थी I दादी ने बड़े आदर से कहा था "देखना ये लड़की हमारे वशं का मुख उज्जवल करेगी, हजरत की तो कन्या है बीबी फातिमा I" कुछ बड़े होने पर अपने नाम का महत्व सीखा था I इस बात का गर्व भी था I हमारा घर था खुरना शहर के मुहाने पर वर्तमान शिल्प शर खालिसपुर के पास सोनाडंगा I पक्का दालान नहीं था ईट गारे और टिन का चाल था I कई आम, एक कटहल एक चालता और एक आमड़ा का पेड़ था I वो सब जगह मैं अभी भी दिखा सकती हूँ अरे देखिये, ये मैं क्या बोल रही हूँ वहां तो अब कई तल्लों की इमारत है जो भी हो घर में लाइ, कुमडा, शिम ,पोई शाक सब होता I बाबा किसान थे पर दुसरो के खेतों में काम नहीं करते अपने जमीन के धान से ही परिवार का बसर हो जाता I जमीन था शहर से 5/6 मील दूर I बाबा खूब परिश्रमी थे I 
हमलोग पांच भाई बहन थे मैं सबसे बड़ी उसके बाद तीन भाई फिर सबसे छोटी एक बहन I सब उसे बुलाते आदुरी क्यूंकि भाई लोग के गोदी में वो बड़ी हुई, और सबके सर के ऊपर दादी I दादा को मैंने नहीं देखा वो मेरे जन्म के पूर्व ही चल बसे थे I बाबा एकलौती संतान थे उनके कोई भाई-बहन नहीं था I एक छोटा मोटा सुखी परिवार था I अदुरी को छोड़कर हम सभी स्कूल जाते I स्कूल से लौटकर हम सभी दूध-भात खाते I उसके बाद खेलने चले जाते I मोहल्ले की लड़कियां मिलकर दौड़-भाग करती I छुट्टी के दिन सब शर्त लगा कर तालाब के इस पार उस पार करते I उह मेरी आँख में पानी , वो सब बातें याद कर के वास्तव में आँख में पानी खुद ही आ जाता है,रोकने पर भी नहीं रुकता बीच-बीच में बाबा हम सभी को सिनेमा दिखाने शहर ले जाते I
इस तरह ही जीवन चल रहा था I मैं जिस वर्ष मेट्रिक परीक्षा देती उसी वर्ष शुरू हुआ गोलमाल I हम मिट गए I "पाकिस्तानी गुलामी अब और नहीं करेंगे, हमारे देश से दस्यु सब कुछ लिए जा रहे हैं, हमारा हिस्सा बेचकर वो सब इस्लामाबाद में स्वर्गपुरी बना रहे हैं ,और हम सब दिन ब दिन गरीब होते जा रहे हैं" I ये सब बात बोलने के लिए ही शेख मुजीब को जेल में डाल दिया गया I बोला गया शेख मुजीब पकिस्तान ध्वंश करना चाहता था I मामले का नाम हुआ "आगोरतोला षड्यंत्र मामला" , बाब्बा !!! कितना मीटिंग जुलुस ,पत्रिका ,स्लोगन सब भूल गयी I बाबा तक भी बीच-बीच में खेत नहीं जाते और बोलते "फातिमा की माँ यदि शेख मुजीब को फांसी हुई तो हम लोग के बचे रहने से लाभ क्या I" ढाका के छात्र सब कुछ उल्टा-पलटा कर चुके थे, उसके बाद एक दिन.. ओह क्या आनंद.. क्या आनंद शेख मुजीब छुट चुके हैं, सभी ने उन्हें गले में फूलो की माला पहनाई है I खुरना शहर में क्या आनंद का उत्सव है I पुलिस दूर से खड़ी देखती रही है नजदीक नहीं आई लगा जैसे उन्हें भी ख़ुशी हुई है I मोहल्ले के दो चार लोग बोलते "फातिमा जरा संभल के चलो लड़की जात को इतना उच्श्रखल होना उचित नहीं जिस दिन पुलीस,मिलेटरी पकड़ेगी उस दिन पता चलेगा I "दोनों हाथो के अंगूठे को दिखाते हुए मैं बोलती "बीबी फातिमा को पकड़ना इतना आसान नहीं आपलोग ठीक से रहें तभी होगा " I 
मेरे बाद वाले भाई की उम्र१४ वर्ष है उसका नाम सोना उसके बाद मोना और अंत में पोना सभी में दो वर्षों का अंतर हैI वो सब भी हम लोग की तरह क्लास नहीं गए I सोना और मोना बड़े-बड़े लडको के पीछे दौड़ते I उसके बाद आस्ते-आस्ते सब शांत हुआ ,उसके बाद हमने पढ़ाई शुरू की I हमलोग हर वक़्त कुछ सशंकित रहते I पास में ही खालिसपुर में बिहारी भरती थे जो सब समय दाम्भिक व्यवहार करते इसलिए हमलोगों को जरा सावधान रहना होता I फिर आया निर्वाचन.. वह खुशी का समय था I अब वो मात्र शेख मुजीब नहीं रहे थे बंगबोंधू शेख मुजीब-ओ-रहमान थे I मीटिंग करने के लिए खुरना आये हुए थे I उनको एक नज़र देखने के लिए हम सब निकल पड़े थे गाँधी पार्क के दिवार के ऊपर चढ़ के, एक नज़र देखा था उन्हें I उफ़ वो मैं भूल नहीं सकती I चारो तरफ से चिल्लाने वाली लड़कियां, गुंडा लड़कियां चिल्ला रहे हैं लोग I सुन रही हूँ पर बंगबोंधू को बिना देखे उतर नहीं रही हूँ I कूदने पर किसी न किसी के गर्दन पर ही गिरूंगी I ओह कितनी उत्तेजना है ? याद है मुझे माँ ने कहा था "क्या हुआ आज भात खायी नहीं ?" हँसते हुए मैंने कहा "माँ आज ख़ुशी से पेट भर गया है,तुम्हारे लिए दुःख हो रहा है माँ तुमने बोंगबोंधू को नाही देखा I" रहने दो बस हो गया उठो अब I हो चूका निरवाचन बंगबोंधू होंगे इस बार समग्र पाकिस्तान के प्रधान मंत्री... उंह देखूंगी फिर इन बिहारियों को ..वो नासिर अली बात-बात में बोलता है "बंगाली कुत्ता" देखती हूँ इस बार "कौन किसका कुत्ता "किन्तु अब सब्र नहीं हो रहा कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा I परीक्षा भी अब सामने है I मैं जानती हूँ बंगबंधू के प्रधान मंत्री होते ही आनंद ही आनंद है I किन्तु पार्लियामेंट बैठ नहीं रहा परिस्थिथि भी अनुकूल नहीं है I कई जगह गोली चली है I बंगबोंधू ने असयोग आन्दोलन घोषणा कर दिया है I सब बंद अस्पताल, पानी, बिजली. बैंक सब बंद I बंगबोंधू बोले है उनलोगों को हम भात से मारेंगे पानी से मारेंगे I
२५ मार्च पाकिस्तान के सब बन्दुक कमान टैंक सब गरज उठे बंगालियों की हत्या के लिए I जबतक ढाका से टेलीफोन का संपर्क रहा सब जानकारी मिलती रही उसके बाद केवल अफवाह और अफवाह I बाद में पता चला जो घटित हुआ है ..अफवाह उसके आगे तुच्छ है I बंगबोंधू बंदी हुए उन्हें पश्चिम पकिस्तान ले गए उनपर विचार होगा I
दांत किड-मिड करके याहिया खान ने बेतार भाषण दिया, बिहारी सब चिल्ला उठे "मिलेटरी आ रहा ए मिलेटरी आ रहा है "हम सब घर छोड़ के भागने की तयारी में जुट गए I हाटात एक दिन सुना बिहारी सब स्लोगन दे रहे हैं "नाराय तकबीर अल्लाह हो अकबर "सामने जो मिला उसे ही लेकर ग्राममुखी हुई I किन्तु नासिर अली के हाथ से मुक्त नहीं हो पाई, मैं और पोना ..पोना को गोदी में लेकर दौड़ रही थी इसलिए सबसे पीछे थी I पकड़ लिया मुझे मेरे शरीर में भी जोर कम नहीं था उसके साथ धक्का-धुक्की करते देख हटात उसने पोना को उठाकर नीचे पटक दिया I उसका माथा फटा और मगज बाहर आगया I मैं चीखते हुए रो पड़ी I नासिर दो तीन लोगों के साथ मुझे घसीटते हुए अपने घर की ओर ले गया I सब वहां खड़े-खड़े तमाशा देख रहे हैं I कोई कोई शाबाशी दे रहा है I मैं बस नम आँखों से सब देख रही हूँ फातिमा उसी दिन मर गयी उसी दिन उस बिहारी बस्ती में I बाप बेटा एक ही लड़की के साथ बलात्कार किये सुना है आपलोगों ने ?उन पिसाचों ने वही सब किया I मैं अकेली नहीं हूँ सोनाडंगा ग्राम से माँ बेटी को साथ लाये हैं एक साथ दोनों जनो के साथ एक दुसरे के परस्पर बलात्कार किये सब I "हाय रे पाकिस्तानी सेना" उन सभी से मिलने के बाद हम सब अवशिष्ट हो चुके थे I "चार पांच दिन बाद हमलोगों को एक खुले ट्रक में जशोर ले आये I हम सब दोनों हाथों से मुख ढक् के बैठे थे I जनता हर्ष ध्वनि दे रही थी I आँखों से देखा नहीं किन्तु औरतों के गले की भी आवाज भी सुनाई दे रही थी I जानती हूँ आपलोग विश्वास नहीं करेंगे और क्यूँ करे भी आपके अपने तो इस विपत्ति में पड़े नहीं है I सारा दिन-रात अल्लाह को पुकारा है, क्या लाभ हुआ उससे ?आज मेरा खिताब है खोती पागली I जशोर में हमलोग नाममात्र मूल्य में बिक्री हो गए I हम दैहिक उत्पीडन सह कर आये थे I पाकिस्तानी सेना देखते ही भय होता था 
बाद में सुना गया की सोनार दा और उसके मुक्ति योद्धाओं ने नासिर अली को टुकड़े-टुकड़े कर दिए किन्तु उनका दुःख कि वो कुत्ते पकड़ कर ले याये मगर कुत्तों ने भी उनका गोश्त नहीं खाया आखिर कुत्तों का भी तो कोई जात विचार होता है ? 
यहाँ खाना देते दाल-रोटी, जो देते खाती I माँ का दिया दूध-भात छोड़ दिया था किन्तु शत्रु का दिया हुआ जघन्य खाना पेट भर कर खाया था कारण मैंने निश्चय किया था कि मैं बचूंगी , मुझे बचना ही होगा और पोना के हत्या का प्रतिशोध लेना होगा मेरा तो सब कुछ ही चला गया है तो बस एक जान इसे ही मैं पोना के लिए बचा के रखूंगी I यदि कभी मैं छुट पाई तो मैं उस नासिर को देख लुंगी I मुझे पता नहीं क्यों ये यकीन था कि बांग्लादेश एक दिन आज़ाद होगा, बंग बोंधू एक दिन लौट आयेंगे ,किन्तु जब सोचती हूँ मैं और उनके बीच नहीं जा पाउंगी ,विजयी बंगबोंधू को देख नहीं पाउंगी तब आँख से पानी गिरता, दिल टूट जाता I
जशोर में हमलोगों को बैरकनुमा लम्बे घर में रखा गया I अनेक लड़कियाँ लगभर २०/२५ से कम उम्र थी I सब किन्तु खुरना से नहीं थी परिशाल, फरीदपुर ,इन सब जगहों से थीं I ज्यादातर मुझसे बड़ी थी I एक बच्ची जैसी लड़की थी १४ /५१ वर्ष की जो मुझसे छोटी थी I फिश-फिश करके बोलती I दोनो दरवाजे के पास पहरेदार थे और शकुनी जैसे जमादारनी तो थीं ही पर मैं सोचती हूँ ये सब नासिरअली से तो बेहतर थे I नासिर अली के लोगों ने लगातार जो मुझे पीटा है देखकर दांत बाहर निकाल कर हंसा है पानी-पानी चिल्लाने पर मुह में पेशाब कर दिया है मैं कभी ये सोच भी नहीं सकती कि मनुष्य नाम का जीव इतना जघन्य भी हो सकता है I बाद में जरुर समझ पाई कि आग से तपते कड़ाही में पड़ गयी हूँ I एक साथ इतनी औरतों के साथ इतने वीभत्स तरीके से उनका विकृत उपभोग हो सकता है ये मनोवैज्ञानिक भी नहीं बता सकते I ऐसा प्रतीत होता जैसे हमने लज्जा, घृणा, भय पर विजय पा लिया हो I एक दिन ऐसी कुतिस्त घटना घटी जिसे मैं आप सभी से किस तरह बोलू सोच भी नहीं पा रही I तब भी बोलना होगा I कारण इंसान नहीं जान पायेगा की ये पगली ने उनके देश के लिए कितना उत्पीडन सहा है I एक होंसक सिपाही था सभी के साथ ख़राब व्यवहार करता और मेरे साथ कुछ ज्यादा ही ख़राब व्यवहार करता इसका कारण मुझे भी नहीं पता हो सकता है मेरी आँखों उसके प्रति गघृणा थी या और कुछ I पास में जाते ही एक लाठी मारता या माथे पर एक चांटी मारता फिर भी सहन कर चुप कर के सोना होता क्यूंकि इस का कोई प्रतिकार नहीं था !
एक दिन उस आदमी को देखकर लगा कि खूब नशा कर के आया है !इस्लाम मे तो मद्द्य पान निषिद्ध है? ये सब क़ानून मेहरा बंगाली मुसलामानों के लिए ही उपयुक्त है I उनमे से अनेक को मैंने माताल अवस्था में देखा है I
एक दिन नशे में धुत्त होकर वो मेरे ऊपर कूद पड़ा और मुझे पकड़ कर नग्न करते हुए काटते हुए भी उसकी भूख नहीं मिटी तो उसने अपना पुरुषांग जबर्दस्ती मेरे मुहं के भीतर डाल दिया मैं निरुपाय सी अपना सारा दांत उसके लिंग पर गड़ा दिया I यंत्रणा में वो आदमी पशु की भाँती वीभत्स चीखता हुआ मुझे धक्का देते हुए धकेल दिया मैं जानती हूँ ,आज ही मेरा शेष दिन है I वो मुझको खीचते हुए मेरी पहनी हुई लुंगी खोलकर उससे मेरे बालों को बाँध कर कुर्सी के ऊपर खड़ा कर पंखे से लटका कर स्विथ्च ओन कर दिया I कितना चीखी चिल्लाइ थी मैं उसके बाद मुझे कुछ मालूम नहीं अन्य लड़कियों ने बताया कि, पहले ये जानवर सब हंसने लगे फिर जब लडकियां डर से चीखने चिल्लाने लगी तो बाहर से एक सूबेदार आकर पंखा बंद किया I वो मुझे अस्पताल लेकर गया I यह खबर हर तरफ फ़ैल गयी उसका कोर्टमार्शल हो गया उसके बाद मैंने उसे देखा नहीं I 7/8 दिन अस्पताल में रही I सर में असह्य यंत्रणा, ज्वर .. 
बाहर की कोई खबर हमलोगों को नहीं मिलती किचेन से एक लड़का हमलोगों के लिए खाना दे जाता I बीस साल का रहा होगा I बोलता आपामोनी आपलोग कुछ दिन और ठीक से रहिये ये जिस माँ का खा रहे हैं ये ज्यादा दिन नहीं टिकने वाले हम सब उम्मीद पर ही रहते खूब उम्मीद से रहते किन्तु हमलोग पर अत्याचार थोड़ा भी कम नहीं हो रहा था I वे हमपे हमला करते पैशाचिक तांडव लीला होती हमलोगों के साथ I उसके बाद अधमरा छोड़ कर फिर चले जाते I यहाँ एक छोटी सी लड़की थी पोरिसल की ,नाम था चांपा... संभवत हिन्दू लड़की थी दीवार में कान लगाकर उनकी बाते सुनती और मुझे बताती I वो प्राय सब समय खिड़की के नीचे चुप कर के खड़ी रहती एक दिन उसने बोला हमारे यहाँ खूब लोग आ रहे हैं शीघ्र ही मुक्ति वाहिनी जशोर हमला बोलेंगे I जशोर के पास जितना अष्त्र है उससे मुकाबला करना संभव नहीं है ,जोशोर के आक्रांत होने से ही वो आत्मसमर्पण करेंगे ,मुझे अंत में यही समझ आता कि ये सब बाते चांपा ने सुना नहीं है कारण इतनी मोटी दीवार से कुछ भी सुन पाना कठिन काम है और उसके ऊपर ये सब बाते वो सब इतनी जोर से क्यूँ बोलेंगे ?मन में यही लगा कि दिन रात यही सब बाते सोचने से मन में उसके ये सिधांत आया है I अंत में मुझे भय सा होने लगा ,ओह पागल हो जाउंगी लगता है एक तो सर की यंत्रणा और चांपा की अजिबोगरिब कहानी मुझे अस्थिर बना दिया मैंने चांपा से पूछा तुम इतना सब कैसे जानती हो ??हसते हुए चांपा ने कहा " जाना कैसे ?"फिर कुछ देर चुप रहने के बाद उसने बोला " 
भाषा आन्दोलन से लेकर इस युद्ध पर्यंत तक मेरे बाबा 8/9 साल जेल में थे " अभी कहाँ है ?मैंने प्रश्न किया 
चांपा मुह उठा कर उपर देखा और बोली "बाबा स्वर्ग गए है दीदी जिसको बोला जाता है शहीद हुए हैं" बाबा-माँ मेरे छोटे भाई को मार कर मुझे खीच कर यहाँ ले आये और भी तीन भाई है पता नहीं वे मुक्ति वाहिनी में है या वो भी शहीद हुए हैं ?'जल्दी से उसके मुह पर हाथ रख कर मैंने कहा "ना ना वो सब है तुम्हारे जाने पर तुम उम्हे पाओगी "उत्तर में चांपा ने कहा "झूठी सांत्वना न दो फातिमा दीदी मैं हिन्दू घर की लड़की हूँ मुझे जब स्पर्श किया है वो भी पाकिस्तानी सेना ने ,मैं फिर किस तरह घर लौट सकती हूँ "तब ..तुम क्या करोगी ?"
"करुँगी तो जरुर कुछ ही मगर मरूंगी नहीं ,मैं नहीं खोउंगी स्वाधीन बांग्लादेश में मैं स्वाधीन होकर बचूंगी I एक दिन चांपा उत्तेजित होकर आकर बोली फातिमा दी फातिमा दी अनेक सोलजर आये हैं ,मैं कई ट्रक की आवाज सुन पा रही हूँ कान लगाकर सुना तो मुझे भी सुनाई दिया I कुछ देर बाद अनेक लोगों का चलना फिरना सुनाइ दिया I धुब-धाब शब्द सुन पा रही थी I ऐसा लगा की दूर बहुत दूर से "जय बांगला" ध्वनि सुनाइ दे रहा है I युद्ध के कमान बोंधू की आवाज आ रही है मैं भी चांपा की तरह व्याधिग्रस्त हो गयी हूँ?किन्तु चांपा ने भी वो आवाजें सुनी I सच में गाडी आई मुक्तियोद्धा भारतीय वाहिनी की I इन सभी ने आत्म समर्पण किया I हमलोगों को एक ट्रक में बैठाया गया I मैं और चांपा आस-पास बैठ गए I "चांपा मेरे साथ मेरे घर चलोगी ?मगर हमलोग मुसलमान हैं" चांपा बोली "मेरा कोई जात नहीं रहा फातिमा दी "मैं तो मृत हूँ, मैं चांपा की लाश हूँ ,जो मुझे जगह देगा मैं उसी के पास जाउंगी "नारी पुनर्वासन से मैं और चांपा बाहर आये I मुझे देखकर बाबा हाउ-माऊ हो कर रो पडे .मैंने बोला "बाबा ओ बाबा मैं पोना को तो बचा नहीं पाई मगर उसके बदले आपके लिए और एक लड़की लाइ हूँ I बाबा से मैं सब सच बता नहीं पाई मैंने कहा " बाबा बिहारी नासिर अली के चंगुल से छूटकर मैं दूर एक गाँव में चली गयी थी I वही तो थी देखो अच्छी ही हूँ "बाबा मेरे सर पर प्यार से हाथ फिराया, मैं जान गयी थी कि उन्होंने मेरे किसी बात पर विश्वास नहीं किया I मां को देख कर मैं अवाक हो उन्हें देखती रह गयी ,माँ के शरीर का रंग एकदम काला हो गया था मात्र हड्डी के ऊपर चमड़े से ढकी देह रह गयी थी I मुझे ह्रदय से लगा कर रोते हुए आकुल हो गयीं "पेट की जलन बड़ी भयंकर"माँ उठी ...जो हो दाल भात आलू पका कर सबको खिलाई खुद भी लगबग 10 महीने बाद भात मुह में डाला तथा I कुछ भात बगल में सरका के रख दिया लगा जैसे पोना का भात रखा हो .असल में ये सर्वनाश जिन परिवार का हुआ है वही इसकी वेदना की गंभीरता को समझ सकता है औरों की ये क्षमता नहीं है इस दुस्साहस यंत्रणा की उपलब्धि सहे I हमलोग धीरे-धीरे स्वाभाविक होना शुरू किये I चांपा की एक व्यवस्था हुई I वो ढाका चली गयी नर्सिंग की ट्रेनिंग करने I मैंने प्राइवेट परीक्षा देकर बी ए पास किया किन्तु कई जगह गयी नौकरी की आशा में मगर वीरांगना को जगह देकर कोई झंझट मोल लेने को राजी नहीं I स्कूल में नौकरी नहीं मिलेगी लड़कियों के सामने एक चरित्रहीन नष्ट लड़की को आदर्श नहीं बना सकते न I मैं पागल होने की अवस्था में आ गयी .अंत में बाबा ने ठीक कहा मेरी शादी करेंगे I मेरी शादी हुई है मैं सुखी हु,ई I ताहीर खूब ऊँचे विचारों वाले आदमी थे 
मैंने उनसे कुछ छिपाया नहीं सब सुनकर भी उन्होंने कहा "फातिमा हम तुम्हारी रक्षा नहीं कर पाए, अपना कर्तव्य नहीं निभा पाए, और उसके लिए सजा देंगे तुम्हे ?" ऐसा नहीं होगा हमलोग तुम्हे सर पर बिठा के रखेंगे I मैं गाँव के स्कूल में नौकरी करती हूँ किन्तु आजकल प्राय वही सर में यंत्रणा होती है इतना कि मैं रोते चीखते अस्थिर हो जाती हूँ I अच्छे डॉक्टर को दिखाया सर का एक्सरे हुआ मगर इस रोग का तो पुराना इतिहास है ? जो मैं किसी से बोल नहीं पाई डॉक्टर बड़े चिंतित हुए बोले में बड़े डॉक्टर को दिखाओ I चांपा एक दिन मुझे ढाका में बड़े डॉक्टर के पास ले गयी I सब देख सुनकर डॉक्टर ने कहा सर का एक ओपरेशन करना होगा I जो बात ताहिर भी नहीं जाते वो बात मैंने डॉक्टर को बताई उन्होंने झुक कर मुझे प्रणाम किया "दीदी आप सराहनीय रहेंगी ,आश्चर्य है इतना त्याग स्वीकार करके बंगालियों ने देश स्वाधीन किया और माँ-बहन के किये त्याग का मूल्य भी नहीं चूका पाए दुर्भाग्य है इस देश का I"

मुझे बीच-बीच में कुछ याद भी नहीं रहता मैं पागलों की तरह इधर-उधर भटकती रहती I पोना को खोजती लोग मुझे पगली बुलाने लगे कभी ताहिर कभी सोना मुझे घर ले आते बीच में कई बरस बीत गए ओप्रेशन के बाद सर की यंत्रणा फिर नहीं हुई I मेरी लड़की उसका नाम भी चांपा है वो आई एस सी में पढ़ती है वो अपनी मौसी माँ अथार्त चांपा की तरह बनना चाहती है और बेटा होना चाहता है साम्यवादी मैं भी अनेक सामाजिक मूल्यों वाले कार्य करती हूँ I अब मुझे अपने लिए भान होता है कि मैं सच में महिमामाय गरिमामय फातिमा हूँ और बोंग्बोंधू बांगला की वीरांगना हूँ

मूल लेखन -नीलिमा इब्राहीम 
अनुवाद -सरोज सिंह

  

Wednesday, July 20, 2016

सुपर-मैन

कहानी -सरोज सिंह

_______________

थर्ड पीरियड के ओवर होते ही वैभव सुपर-मैन टॉय बैग से निकालकर अमन को दिखाते हुए बोला,

"अमन, ये देखो"

"वाओ सुपरमैन!!! किसने दिया? सुपरमैन उससे लेते हुए अमन ने पूछा

वैभव इतराते हुए बोला "मेरे पापा ने गिफ्ट किया है"

मैथ्स टीचर मिसेज मेथ्यु को क्लास में घुसते देख,वैभव ने तुरंत सुपरमैन अमन से छीनकर बैग में रख लिया!

मिसेज मेथ्यु प्राइमरी सेक्शन की हेड-मिस्ट्रेस थी,बच्चे उनसे थर्राते थे,यदि वो गेलरी में निकल जायं तो मजाल है कोई बच्चा दिख जाए उन्हें? लम्बी नाक, गोल फ्रेम के बाइफोकल चश्मे से तरेरती आँखे, अक्सर हाथ में उनके छड़ी होती! याने यूँ कहें के दहशत का दूसरा नाम था,मिसेज मेथ्यु!

 रजिस्टर और बैग टेबल पर रखते हुए मिसेज मेथ्यु ने बुलंद आवाज़ में कहा,

"ओपन योर होम-वर्क चिल्ड्रेन"

झटपट सबकी होमवर्क कॉपी खुल गई,एक-एक करके मिसेज मेथ्यु सबकी कॉपी जांचने लगीं! किसी को डांट पड़ती, किसी को शाबाशी तो किसी को रिवर्क करने को कहते हुए वो अमन के पास आ पहुची,अमन ने झट खड़े होकर कॉपी मिस को थमा दी!  

"उम्ह..हं अमन नीटनेस लाओ", कहते हुए मिसेज मेथ्यु ने अमन की चेक की हुई कॉपी लौटा दी  

 बगल में वैभव कॉपी बंद किये सर झुकाए बैठा था,मिसेज मैथ्यू को माज़रा समझते देर न लगी,

आवाज़ में सख्ती लाते हुए बोलीं

 "वैभव, शो मी योर कॉपी"

"सॉरी..... मैम, होमवर्क नहीं किया" खड़े हुए वैभव की टाँगे अब भी काँप रही थी

वायsssss? मिस के पूछने पर सहम गया वैभव

"मैम, मम्मी हॉस्पिटल में..."

"अच्छा? आज मम्मी हॉस्पिटल में कल पापा हॉस्पिटल में, झूठे बहाने हैं सब,तुम्हे पता है न होम-वर्क नहीं करने पर, क्या सजा मिलती है? सारे दिन डेस्क पर कान पकड़कर खड़े रहोगे"

 वैभव को गुस्से में डपटते हुए मिस मेथ्यु ने कहा!

कान पकड़ते हुए वैभव ने कहा, "सॉरी मैम"

"हम्म,तुम नए हो इसलिए एक्सक्यूज करती हूँ,कल दोनों दिन का होमवर्क कर के लाओगे और ये बाल हिप्पियों की तरह क्यूँ बढ़ा रखे हैं? कल हेअरकट नहीं हुआ तो पूरे क्लास के सामने पोनी बना दूंगी समझे"

"यss यस मैम", सहमते हुए वैभव ने कहा

मिसेज मैथ्यू पिछली बेंच के बच्चों की कॉपी चेक करने लगी! अमन और वैभव को लगा जैसे अभी-अभी गॉडज़िला उन्हें सूंघ के आगे बढ़ा हो!

अमन हैरत से वैभव की कॉपी खोलकर देखता रहा कि कोई कैसे मिसेज मेथ्यु का होम-वर्क मिस कर सकता है?

 "वैभव,कल होमवर्क जरुर कर लेना, तुम्हे पता नहीं, रोहित को मैम ने इत्ता डांटा था कि, उसकी पैंट गीली हो गई थी, बच्चे आजतक उसे चिढाते हैं"

अमन धीरे से वैभव को ताक़ीद करते हुए बोला!

अमन इंदिरापुरम के महागुन-मेंशन में रहता था और वैभव उसकी सोसाईटी से कुछ दूर गौर-ग्रीन सिटी  में! दोनों एक ही स्कूल-बस से आते-जाते इसलिए दोनों में दोस्ती हो गई थी!

स्कूल से लौटते वक़्त बस में अमन ने वैभव से पूछा "सच्ची बताओ, मम्मी होस्पिटल में हैं?

"हाँ" कहते हुए वैभव और उदास हो गया,

बात बदलते हुए अमन ने कहा "अच्छा वैभव, अपना सुपरमैन दिखाओ"

वैभव ने झट बैग से सुपरमैन निकाला, दोनों उसे हवा में सुपरमैन की तरह उड़ाने लगे  

 अमन का स्टोपेज आते ही,

गले में वाटर बोतल और बैग पीछे टांगता हुआ अमन वैभव को बाय बोलता हुआ उतर गया!

"हाय मम्मा.." अमन ने इठलाते हुए गेट पर खड़ी मम्मी की ऊँगली पकड़ ली

मम्मी उसका बैग और बोतल उससे लेकर चलते हुए पूछने लगी

"तो कैसा रहा आज का दिन?

"अच्छा था मम्मी, इंग्लिश मैम ने गुड दिया,साईंस टीचर ने "आवर एनवायरनमेंट' पढाया,मैथ्स टीचर ने नीटनेस के लिए डांटा"

"पता है मम्मा, आज ना वैभव को मैथ्स पिरियड में खूब डांट पड़ी,होम वर्क करके नहीं लाया था"

कौन वैभव? वही तुम्हारा नया दोस्त जो "गौर-ग्रीन" में रहता है?

हाँ मम्मा,उसकी मम्मी हॉस्पिटल में एडमिट है!

"ओह ये तो बुरा हुआ, कोई बात नहीं जल्दी ही ठीक हो जायेंगी"

"मम्मा,उसके पास ना, छोटा सा सुपरमैन भी है"

अच्छा!! कहते हुए ममता,अमन के साथ लिफ्ट में दाखिल होगईं

फोर्थ फ्लोर पर लिफ्ट के खुलते ही निक्की की जोर-जोर से रोने की आवाज सुनाई देने लगी! अमन का हाथ छुड़ाकर ममता ने तेजी से फ्लैट का दरवाजा खोला, मेड परेशान सी छे महीने की निक्की को कंधे पर थपकियाँ देते हुए इधर-उधर घूम रही थी!

"ओह्ह, आज फिर जग गई"कहते हुए ममता ने निक्की को गोद में ले लिया,  गोद में आते ही निक्की एकदम चुप हो गई!

 "मम्मा ये आपकी गोदी में आने के लिए जान बूझकर रोती है,अब मुझे ड्रेस खुद ही चेंज करना होगा   "झल्लाते हुए अमन ने कहा!  

उसकी मासूमियत पर हंसती हुई ममता ने मेड से कहा "शांति अमन का ड्रेस चेंज कर के खाना खिला दे तबतक मैं निक्की को खिला दूँ"

रोज की तरह अमन खाना खाकर होमवर्क करने बैठ गया क्यूंकि उसे शाम को अपनी सोसाईटी के बच्चों के साथ खेलना होता फिर अपना फेवरेट कार्टून शो देखता उसके बाद थोड़ी देर निक्की के साथ खेलता फिर डिनर करके सोने जाता!

मम्मा, ये सम नहीं समझ आ रहा"

"रुको, आती हूँ" कहते हुए निक्की को प्रैम में डालकर, अमन के पास आ गई! उसके सम्स स्लोव करवाने  में मदद की!

 और उसका कल का टाइम-टेबल सेट करने लगी,तभी उनकी एक कॉपी पर नज़र गई जिसपर वैभव गुप्ता  3rd-B, मैथ्स होमवर्क कॉपी लिखा था!

 "अमन, वैभव की कॉपी तुम्हारे पास कैसे आगई?

"नहीं तो, मैंने कोई कॉपी नहीं ली उससे" कहते हुए मम्मी के हाथ से कॉपी ले कर देखने लगा,उसे याद आया जब उसकी कॉपी खोलकर देख रहा था तभी इंटरवेल की घंटी बज गई थी जल्दीबाजी में वैभव की कॉपी अपने बैग में रख ली होगी शायद!

"ओह मम्मी अब क्या होगा? उसकी कॉपी में होम-वर्क नहीं होगा तो उसे कल पनिशमेंट मिल जायेगी" अमन बेहद घबराया हुआ था!

ये तो वाकई बुरा हुआ अमन, उसका फोन नंबर है तुम्हारे पास?

"नहीं, मम्मा चलो न उसे कॉपी देकर आयें

 "उसके घर का पता है?"

 गौर-ग्रीन में रहता है, उसने कहा था उसकी बालकनी से स्विमिंग-पूल दीखता है

"अरे ऐसे-कैसे चल दें अमन, नंबर,पता कुछ नहीं मालूम तुम्हे"

तबतक बगल वाले वाले फ्लैट से मिसेस सिन्हा आ गई गपशप करने

"उफ़ अब ये आंटी जल्दी जाने वाली नहीं,इनकी गोसिप ख़तम नहीं होगी"

अमन ने धीरे से चिढ़ते हुए कहा

"अब वैभव कैसे होमवर्क करेगा? वो भी दो दिन का पूरा काम, उफ़ इत्ता सारा होम-वर्क, मैं भी नहीं कर  पाऊंगा, इससे अच्छा है कि, मैं उसे कॉपी खुद ही दे आऊँ,रास्ता तो पता ही है! मम्मा को बताऊंगा तो जायेंगी भी नहीं और न जाने देंगी" मैं झट से उसे देकर आजाता हूँ",

सोचते हुए अमन,वैभव की कॉपी शर्ट के अन्दर डालकर बाहर जाने लगा

अमन को जाते देख मम्मी ने टोका कहाँ जा रहे हो?

"पार्क में"

ठीक है 6 बजे तक आ जाना"

"ओके मम्मा, बाय"

कहते हुए अमन तेजी से घर से निकल कर नीचे पार्क में आ गया! पार्क में उसे उसके दोस्त खेलते हुए दिखे, उन्हें खेलता देखकर, अमन का एकबार मन हुआ कि वैभव को कॉपी देना छोड़ उन सबके साथ खेल ले ...फिर मिस मैथ्यू का भयानक चेहरा अमन के आँखों के सामने घूम गया!

इसके पहले अमन अकेले अपनी सोसाईटी गेट से बाहर भी नहीं गया था, गार्ड भी उसे अकेले जाने नहीं देगा यही सोचते हुए, वो गेट पर पंहुचा ही था कि, उसे अपने ब्लाक के रोहित भईया दिख गए जो अपना बैग लिए गेट के बाहर जा रहे थे!

"रोहित भईया, आप कहाँ जा रहे हो?

हाय अमन, मैं कोचिंग जा रहा हूँ क्यूँ?

मुझे "गौर-ग्रीन" जाना है, क्या आप छोड़ देंगे?,"पास आते हुए अमन ने रोहित की ऊँगली पकड़ ली और साथ चलने लगा!

"पर मैं तो दूसरी तरफ जाऊँगा" रोहित ने कहा

कोई बात नहीं आप मुझे गेट के बाहर छोड़ देना, फिर मैं चला जाऊँगा, रास्ता देखा है मैंने

ओके,फिर चलो ...कहते हुए रोहित उसे गेट के बाहर ले आया....

"थैंक यु रोहित भईया" मुस्कुराते हुए अमन ने कहा और गौर-ग्रीन सिटी की तरफ चलने लगा

खुद को आज बहुत मैच्योर समझ रहा था, उसे लगा वो अकेला बाहर जा सकता है, मम्मा बेकार ही मना करती हैं!

दोनों हाथों से वैभव की कॉपी छाती से चिपकाये पुरजोर हौसले के साथ चला जा रहा था, दुसरो को ये जताना नहीं चाहता था कि, अकेले बाहर की दुनिया में उसका पहला क़दम है,

घनी आबादी वाले इस एरिया में गाड़ियों के कतारें कभी बंद नहीं होती, लोग भी आ जा रहे थे,कुछ दूरी तय करने के बाद उसे गौर-ग्रीन की बिल्डिंग्स दिखाई देने लगी,उसका हौसला और बढ़ गया और तेजी से चलने लगा! 

अब रोड के उसपर  गौरग्रीन का गेट दिखाई दे रहा था, जहाँ से वैभव रोज स्कूल के लिए चढ़ता था,वो खुश हो गया ..सड़क पार करने के लिए इधर-उधर कुछ देखता रहा फिर सामने पान की दूकान के पास खड़े एक आदमी से उसने पूछा,

"अंकल यहाँ ज़ेबरा क्रासिंग किधर है? मुझे रोड क्रोस करनी है"

बच्चे के  इस मासूम सवाल पर दूकानदार और वो शख्स दोनों हंस पड़े

"गुटके का पाउच फाड़ कर गुटका फांकते हुए उस आदमी ने कहा "बेटे यहाँ ज़ेबरा क्रासिंग नहीं है "हंह वैसे भी यहाँ इतना नियम कानून कौन मानता है? मैं रोड पार करा दूँ?"

"थैंकयु अंकल....पर आप ये बताइए के आपके पीछे ही डस्टबिन है फिर भी आपने पाउच ज़मीन पर क्यूँ फेंका?" और पान वाले अंकल आपकी शॉप के आगे कितनी गन्दगी है? आपलोग मेरे स्कूल में होते ना,तो पनिशमेंट मिल जाती"

इतने छोटे बच्चे के मुहं से ऐसी बात सुनकर दोनों सन्न थे, उस आदमी ने तुरंत पाउच उठाकर डस्टबिन में डाल दिया और पानवाला दोनों कान पकड़ कर बोला गलती हो गई बच्चे हम भी स्कूल गए हैं मगर तुम्हारी तरह हमने सबक याद नहीं किया,आगे से साफ़ रखूँगा"

तबतक अमन ने एक औरत को ठेले से सब्जी खरीदकर रोड क्रोस करने के लिए दायें बाएं नज़रे घुमाते देखा,दौड़ कर उसके पास जाकर इशारा करते हुए पूछा "आंटी आप वहां रहती हैं?

"हाँ बेटे"

"मुझे भी वहीँ जाना है क्या आप ले चलेंगी मुझे?

स्योर,कहते हुए उसे रोड क्रोस कर गेट के अन्दर ले आई  

बेटे,आप भी यहीं रहते हो?

"नहीं, मेरा दोस्त यहाँ रहता है उसकी कॉपी देने आया हूँ" अमन ने उस औरत से कहा

ओह, उसका फ्लैट नंबर पता है?

नहीं,उसका नाम वैभव गुप्ता है, स्वीमिंग पूल से उसकी बालकनी दिखती है, प्लीज़ आप स्वीमिंग पूल   बता देंगी किधर है?

"सामने जो पार्क दिख रहा है ना, उसी के लेफ्ट साइड है, मैं सामान घर में रखकर आती हूँ, फिर साथ खोजतें हैं तुम्हारे दोस्त को"

"ओके, थैंकयू आंटी" 

 अमन सीधे पार्क में चला गया वहां खेलते हुए बच्चों में वैभव को खोजने लगा, मगर वैभव उसे कहीं नज़र नहीं आया अलबत्ते स्वीमिंग पूल दिख गया! तेज़ कदमों से चलता हुआ पूल के पास से सभी बालकनियों को देखने लगा! सर चकरा सा गया उसका इतनी सारी बालकनी देखकर, तभी सामने वाले ब्लाक की एक बालकनी में उसके स्कूल की शर्ट तार पर टंगी दिखी,वो खुश होगया यही वैभव का फ्लैट है,तेज़ क़दमो से उस ब्लाक की तरफ बढ़ने लगा के तभी उस बालकनी पर एक लड़की को खड़े देख रुक गया!

"ये तो 5th क्लास वाली दीदी है,"

अमन फिर उदास होगया "जाने कौन सी बालकनी है वैभव की?"

कहते हुए थक कर पूल की सीढ़ी पर बैठ गया! आंटी भी कहीं नज़र नहीं आ रही थी!

सूरज के जाते ही अँधेरे ने भी दस्तक देनी शुरू कर दी थी....अब अमन को डर लगने लगा, अँधेरा होने के पहले घर पहुच जाना चाहिए अभी सोच ही रहा था तबतक उसे मम्मी की चीखती हुई आवाज़ सुनाई दी.... अ..म..न...... सर उठाकर देखा तो मम्मी उसी की तरफ बदहवास भागी आरही थी और पीछे-पीछे सिक्युरिटी गार्डस भी!

अमन को ममता ने सीने से ऐसे चिपटाया जैसे वो अभी-अभी किडनेपर की चंगुलसे  बचकर आया हो

"तुम्हे मना किया था ना...ख़बरदार जो बिना बोले गेट से बाहर क़दम रखा तो,तुम्हे मालूम है मैं कितना डर गई थी? घर चलो"

"मगर मम्मा, वैभव की कॉपी"

कोई बात नहीं उससे सॉरी बोल देना अभी चलो....

अमन उदास मन से घर लौट आया इतनी मेहनत बेकार गई और डांट पड़ी वो अलग....

आज निक्की के साथ खेलने का भी मन नहीं किया

बेमन से खाना खाकर, आँखे बंद किये सोने की कोशिश करने लगा,मगर आँखे बंद करते ही, हाथ में छड़ी लिए मिसेज मेथ्यु और वैभव की सहमी हुई शक्ल कौंध गई,हड़बड़ा कर अमन उठ बैठा!

कमरे की बत्ती जलाई और वैभव की मैथ्स कॉपी निकाल कर होमवर्क करने लगा....

देर रात तक रूमलाइट जलता देख ममता ने चुपके से झाँका  उसे लिखते देख समझ गई...उसका जी चाहा कि उसे खूब प्यार करे पर उसे डिस्टर्ब किये बिना वहां से चली गई!

सुबह मम्मी ने माथा चूमकर जगाया तो अमन झट से उठ गया, आज बहुत खुश था! अपने दोस्त के चेहरे पर ख़ुशी देखने की जल्दी थी उसे!

 अमन इस उम्मीद में था की वैभव आज डरा-सहमा हुआ आएगा मगर वो तो चहकता हुआ बस में चढ़ा, बाल भी कटे संवरे थे आज!

 अमन के बगल में बैठते ही वैभव बोल उठा  

"पता है अमन, मम्मी हॉस्पिटल से आगईं और साथ में मेरी छोटी सी प्यारी सी बहन भी आई है"

अच्छा! अमन भी खुश होते हुए बोला!  

अमन, आओगे घर मेरी बहन को देखने?

 "आऊंगा तब न, जब तुम अपना एड्रेस दोगे,और कल शाम तुम कहाँ थे?" थोड़े शिकायती अंदाज़ में अमन ने कहा! 

बी-ब्लाक, 201 एड्रेस है, और मैं शाम को मम्मी को लेने गया था?

"ओके"

क्लास में दाखिल होते ही वैभव के चेहरे पर हलकी घबराहट दिखने लगी थी

पहला... दुसरा... तीसरा...चौथे  पीरियड की घंटी बजते ही वैभव की शक्ल पर हवाइयां उड़नी शुरू हो गई थी!  आज तो उसे सबके सामने बेंचपर खड़ा होना पड़ेगा! अमन कनखियों से उसके हाव-भाव देखकर खुश हो रहा था! इसीबीच उसने मौका देख वैभव की कॉपी उसके बैग में डाल दी!

 मिस मैथ्यू के क्लास में घुसते ही, सारे क्लास में पिनड्राप साइलेंस छा गया...

 "ओपन योर होम-वर्क चिल्ड्रेन"

बोलने भर की देर थी, कि सभीकी कॉपियां डेस्क पर खुल गईं, वैभव ने भी कॉपी निकाल कर डेस्क पर रख दिया, मगर कॉपी खोलने की हिम्मत नहीं हुई!

जैसे-जैसे मिस मेथ्यु कॉपी चेक करती जा रही थी, वैभव की धडकनें उतनी ही तेज़ होती जा रही थी

अमन की बारी आते ही उसने अपनी कॉपी मिस को थमा दी.

"गुड वर्क अमन" कहते हुए मिस ने अमन को कॉपी लौटाइ और वैभव की ओर घूरते हुए कहा!

"वैभव कॉपी दिखाओ,"

 मिस की तेज़ आवाज़ सुनकर काँपता हुआ वैभव खड़ा हो गया मगर कॉपी देने की हिम्मत नहीं हुई, अमन ने झट उसकी कॉपी खोलकर मिस को पकड़ा दी!

मिस मैथ्यू, कभी कॉपी को देखती, कभी वैभव को

"गुड वैभव, तुमने दोनों होमवर्क नीटली कम्प्लीट किया है"

एक स्टार देकर कॉपी देते हुए वैभव की हेयर-कटिंग पर नज़र डाली और आगे बढ़ गई!

वैभव को लगा जैसे कोई सपना हो, आँखें फाड़े कॉपी खोलकर देखने लगा....तसल्ली होने के बाद उसने एक नज़र अमन को देखा, हैंडराइटिंग और उसके चेहरे की मुस्कुराहट देखकर सब समझ गया!

"थैंक यू अमन,तुमने मुझे पनिशमेंट से बचा लिया" वैभव प्यार से अमन के कंधे पर हाथ रखते हुए बोला!

इस वक़्त अमन को हीरो वाली फीलिंग हो रही थी!

इंटरवेल में वैभव बैग से सुपरमैन निकालकर अमन को देते हुए बोला" लो अमन ये सुपरमैन अब तुम्हारा है"

वाओ सच्ची? पर ये तो तुम्हारा है ना? अमन ने कहा                       

"मेरा सुपरमैन तो तुम हो अमन"

दोनों अपने सुपरमैन को पाकर आज बहुत खुश थे!

                                                  

 

 

 

 

  

 

 

 

 

 

 

 

 

Wednesday, July 6, 2016

"आयतें "

मेरी बेपनाह परस्तिश 
गढ़ने लगी है अब 
ऊँची दर ऊँची 
शीशे की इबादतगाह 
जहाँ न कोई बुत है

न कोई मौलवी..... न कोई पंडित 
सिर्फ औ सिर्फ ...'हम' और 'तुम' 
जिनकी दीवारों,छत,खिडकियों से आर-पार 
मैं तुम्हे औ तुम मुझे शफ्फाफ देख पाओ 
हमारे दरमियां कोई राज़ न रहे 
जो कभी गुम भी हो जाओ 
तो मैं.... तुम्हे 
बंद आँखों की रौशनी में भी ढूंढ लूं 
गोया इस बात से बेखबर 
कि हक़ीकत की आंधी में 
ऊँची इमारतें खतरे में रहती हैं 
किसी रोज ऐसा होने पर 
ज़मीं पे बिखरी मुक़द्दस कीरचें 
जिन्हें बुहारना लाज़िम नहीं 
उन्हें जब उँगलियों से चुनती हूँ 
तो उन पोरों पर रिस आतीं है तमाम बूँदें 
जो ज़मीं पे टपके ....उसके पहले ही 
मेरे लब..... उसे चूम कर सोख लेते हैं 
जो भीतर कहीं गहरे जाकर 
रौशनाई बन ...
रूह कि सतह पर 
आयतें बन उभर आती हैं ..................!!!!!!!!

~S-roz~
शफ्फाफ=clear
रौशनाई = ink
परस्तिश=worship
आयत =holy sentence or mark

Monday, June 27, 2016

ग़ज़ल

बरसा तो खूब जम कर शब भर पानी
फिर भी तिश्नगी लब पर छोड़ गया है

गुल पत्ते बूटे शाख शजर हैरां हैरां से
ये कौन हमें बे मौसम झिंझोड़ गया है

बिछड़े पत्ते फिर न बैठ पायेंगे शाखों पे
ठीकरा इसका गैरों के सर फोड़ गया है 

दिल के गर्द-ओ-गुबार यूँ उड़ते नहीं देखे
गोया कारवां भी रुख अपना मोड़ गया है
s-roz

Sunday, June 26, 2016

पंपोर हमले में शहीद हुए वीर सपूतों को नम आँखों से भावभीनी श्रद्धांजलि ...

साथी ......
जब मुझको घर ले जाओगे 
जाहिर है 
माँ का सीना छलनी होगा 
मेरी वर्दी से उसका सीना ढक देना

जब वो 
अपना सिन्दूर पोछेगी 
मेरे खत 
उसके हाथों पर धर देना

वो नन्हा 
हौले से मेरी ताबूत खोलेगा 
'पापा को नींद जगाओ मम्मी' वो बोलेगा 
उस नन्हे के सर पे 
मेरी टोपी रख देना

देखना उनको 
फिर इतनी हिम्मत आ जाएगी 
इक माँ फिर अपने बच्चे को 
वीर सैनिक बना पायेगी !!!
....s-roz