अधूरे ख्वाब


"सुनी जो मैंने आने की आहट गरीबखाना सजाया हमने "


डायरी के फाड़ दिए गए पन्नो में भी सांस ले रही होती है अधबनी कृतियाँ, फड़फडाते है कई शब्द और उपमाएं

विस्मृत नहीं हो पाती सारी स्मृतियाँ, "डायरी के फटे पन्नों पर" प्रतीक्षारत अधूरी कृतियाँ जिन्हें ब्लॉग के मध्यम से पूर्ण करने कि एक लघु चेष्टा ....

Sunday, October 17, 2010

"यह 'जीवन"एक 'नाव

"यह 'जीवन"एक 'नाव
'खेवूँ किस 'ठावँ '
मन"पीड़ा का 'गावँ '
उल्टा पड़ा हर 'दावँ '
कड़ी धुप,जैसे आवँ '
तपते मेरे पावँ 'पाव '
भ्रम मात्र है 'छावँ '
यह 'जीवन"एक 'नाव '

4 comments:

  1. जीवन एक नान...बढ़िया अभिव्यक्ति.

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  2. सरोज जी,

    संदर उपमाओं से सुसज्जित है ये रचना .....बहुत खूब...."ठांव".....का मतलब किनारा ही है न ? और "आंव" ....का मतलब आँच ही है न?

    अगर मैं गलत हूँ तो सही अर्थ बताएं......

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  3. आपके कविता को पढ़ कर मुझे कवि वॄंद का
    यह दोहा स्मरण हो आया-
    "सरस कविन के चित्त को, बेधत हैं द्वै कौन।
    असमझदार सराहिबो, समझदार को मौन॥
    सराहनीय रचना।
    सद्भावी-डॉ० डंडा लखनवी

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  4. ठावं - ठाँव
    गावं - गाँव
    दावं - दाँव
    आवं - आँव
    पावं - पाँव
    छावं - छाँव

    सुन्दर कविता। लेकिन कुछ जल्दीबाजी कर गईं। इसे और निखारिए।
    - जीवन नाव है तो नदी, सागर क्या हैं?
    - पाँव जमीं पर पड़ते हैं।
    - नदी में छाया नाव की ही पड़ती है।
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