अधूरे ख्वाब


"सुनी जो मैंने आने की आहट गरीबखाना सजाया हमने "


डायरी के फाड़ दिए गए पन्नो में भी सांस ले रही होती है अधबनी कृतियाँ, फड़फडाते है कई शब्द और उपमाएं

विस्मृत नहीं हो पाती सारी स्मृतियाँ, "डायरी के फटे पन्नों पर" प्रतीक्षारत अधूरी कृतियाँ जिन्हें ब्लॉग के मध्यम से पूर्ण करने कि एक लघु चेष्टा ....

Thursday, January 23, 2014

"तनहाई"(नज्म)

शाम बारिशों में
तो रात बूंदों में
किसी तूल कट ही गयी 
आज फिर सहर ने 
कोहरे की लिहाफ से 
ज़बरन दिन को जगाया है 
गूंगे दिन ने फिर 
भीड़ में ..........
तनहाई दोहराई है !

~s-roz~

4 comments:

  1. हर तरफ हर जगह बेशुमार आदमी
    फिर भी तन्हाइयों का शिकार आदमी...

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया @वाणभट्ट जी

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