अधूरे ख्वाब


"सुनी जो मैंने आने की आहट गरीबखाना सजाया हमने "


डायरी के फाड़ दिए गए पन्नो में भी सांस ले रही होती है अधबनी कृतियाँ, फड़फडाते है कई शब्द और उपमाएं

विस्मृत नहीं हो पाती सारी स्मृतियाँ, "डायरी के फटे पन्नों पर" प्रतीक्षारत अधूरी कृतियाँ जिन्हें ब्लॉग के मध्यम से पूर्ण करने कि एक लघु चेष्टा ....

Monday, May 23, 2011

"इक ख्वाब संजोया है मैंने ,कभी वक़्त मिले तो सुन लेना"

परिंदों से पूछा है मैंने
ठौर ठिकाना तिनकों का
प्यार का आशियाँ बनाने को
कुछ तिनके तुम ले आना
इक ख्वाब संजोया है मैंने ,कभी वक़्त मिले तो सुन लेना
सच्ची है या झूठी है ,तुम खुद ही इसे गुन लेना.....
जिसमे नेह की निवाड़ होगी
प्रेम की किवाड़ होगी
होगी विश्वास की इक खिड़की
और होगी मीठी तकरार की झिडकी
इक ख्वाब संजोया है मैंने,कभी वक़्त मिले तो सुन लेना
सच्ची है या झूठी है,तुम खुद ही इसे गुन लेना.....
घर में उजाला करने को
सूरज की रेज़े ले आउंगी
चंदा की चिरौरी करके तुम
चांदनी को घर ले आना
इक ख्वाब संजोया है मैंने,कभी वक़्त मिले तो सुन लेना
सच्ची है या झूठी है,तुम खुद ही इसे गुन लेना
घर को और सजाने को
अरमानो के झालर लटकाऊंगी
आँगन की तारीकी मिटाने को
तुम बन से जुगनू ले आना
इक ख्वाब संजोया है मैंने,कभी वक़्त मिले तो सुन लेना
सच्ची है या झूठी है,तुम खुद ही इसे गुन लेना.....

~~~S -ROZ ~~~

7 comments:

  1. बहुत ही बढ़िया और मज़ेदार

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  2. बहुत सुन्‍दर भावाभिव्‍यक्ति है इन कविताओं में सरोज जी.

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  3. नेह की निवाड, प्रेम की किवाड़, विश्वास की खिड़की, तकरार की झिड़की, घर को फिर से सजाने को .......तुम बन से जुगुनू ले आना - अनूठे बिम्ब - अति सुंदर - हार्दिक बधाई

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  4. जन्माष्टमी की शुभ कामनाएँ।

    कल 23/08/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  5. bhaut hi khubsurat khwab sajaya hai aapne...

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  6. बहुत ही सुन्दर रचना....

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  7. बहुत सुन्दर प्रस्तुति ...

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