अधूरे ख्वाब


"सुनी जो मैंने आने की आहट गरीबखाना सजाया हमने "


डायरी के फाड़ दिए गए पन्नो में भी सांस ले रही होती है अधबनी कृतियाँ, फड़फडाते है कई शब्द और उपमाएं

विस्मृत नहीं हो पाती सारी स्मृतियाँ, "डायरी के फटे पन्नों पर" प्रतीक्षारत अधूरी कृतियाँ जिन्हें ब्लॉग के मध्यम से पूर्ण करने कि एक लघु चेष्टा ....

Thursday, December 16, 2010

क्षणिकाए

‎"ज्यों ही ये दिन............ बीतता है ...
न जाने मुझमे....... ?.
'क्या... 'भरता' है क्या...........'रीतता' है ..."
मेरे भावों के आगे ..हर बार
मेरा अहम् ही... क्यूँ ....... 'जीतता' है
चाहती हूँ जाना उस पार ..पर कुछ तो है
जो मुझे इस पार ........... 'खींचता' है "
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"जेहेन में ख्वाब बन दीये सा,कोई 'जल' रहा है
आहिस्ता आहिस्ता ये दिल 'संभल' रहा है
क्यूँ मेरी तन्हाई को वो ,इतना 'खल' रहा है
दरख़्त सी जिंदगी में बस,यही शाख' संदल'रहा है "
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"उम्र गुजारी 'खुद' को जानने में
फिर भी 'रूह' मेरी अजनबी सी लगती है"
सब कुछ पा लिया इस 'जहाँ' से
फिर भी कहीं कुछ 'कमी' सी लगती है "
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"आज,अपने बच्चो से हूँ बेहद.. खफा'
पढने से ' जी चुराते' हैं.
मै उनसे कहती हूँ देखो ! दीमकों' को ,....
पढना नहीं आता, फिर भी
कर जाते है पूरी की पूरी 'किताब..'सफा' ....:-))

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 ‎"दोस्तों!!
इस जमीं से आजिज़  आके
कभी 'चाँद' पर कदम ना रखना ..
वहां तन्हाई की गहरी खाईयों के सिवा कुछ नहीं
गो की, उसके पास उसका अपना कुछ भी नहीं
वो तो अपने हिस्से की रौशनी भी औरों पर लुटाता  है ".....
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"ऐ "जिंदगी".......
अब भी दिलकश है
तेरा हुस्न' .....मगर...
दिवानो' की कतार में
हम खड़े हैं........
...
सबसे 'आखिर' में "
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"दोस्त" अब ना रहे वो...'तवज्जो' देने वाले .......
फिर भी हर एक शब् ....मुझको आती है "हिचकियाँ ", ....
मेरे "दुश्मनों" से कह दे कोई... इतना याद न किया करें
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2 comments:

  1. सरोज जी,


    बहुत सुन्दर लगी ये क्षणिकाएं |

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  2. जीवन से साक्षात्कार कराती बहुत-बहुत सुंदर क्षणिकाएं - बधाई. नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं

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