अधूरे ख्वाब


"सुनी जो मैंने आने की आहट गरीबखाना सजाया हमने "


डायरी के फाड़ दिए गए पन्नो में भी सांस ले रही होती है अधबनी कृतियाँ, फड़फडाते है कई शब्द और उपमाएं

विस्मृत नहीं हो पाती सारी स्मृतियाँ, "डायरी के फटे पन्नों पर" प्रतीक्षारत अधूरी कृतियाँ जिन्हें ब्लॉग के मध्यम से पूर्ण करने कि एक लघु चेष्टा ....

Friday, November 26, 2010

बेटे !!! मै 'माँ' हूँ .(जीवन की राह में कुछ दूर अभी और चलना है )............

पहली बार जब' तुम' मेरी गोद में आये थे
वो छवि आज भी  आईने की तरह साफ है
दोनों मुट्ठी   भीचें ,आँखे अधखुली सी
गुलाबी होठ, ओह !!देवतुल्य छवि !!!
तभी हमने  तुम्हारा नाम 'देवांश' रखने का सोचा  
मुझे याद है ..तोतली जबान में तुम्हारा कहना
मम्मी "थुनो तो!! प्लीज दोडी  लेलो न !.....(गोदी)
और मटकते हुए मेरे सीने  से चिपट जाते
मेरे गोद की गर्मी  तुम्हे आराम देती थी
दोनों बाहें  गले में डाल तुम ऐसे सोते की
अक्सर मेरी सारी रात एक ही करवट गुजरती
तुम्हारा,आंचल खीच  और गलबाही डाल कर
अपनी जिद मनवाना,मुझे  खूब भाता  था ..
फिर, खिलौनों ,तितलियों और हमजोलियों का 
तुम्हारे जीवन में शामिल होना ....
मेरी ऊँगली छुड़ाकर उनके पीछे भागना  
और फिर सपनो भरा  बस्ता लिए स्कुल जाना
याद है सब!,!!शायद वो पहला कदम था ........
मेरे अंग का मेरे ही अंग से अलग  होने का
किसी हरकत पर मेरा 'डांटना'
तुमपर नागवार गुजरता है ,पर बेटे !!
मै अब केवल "माँ" ही नहीं बलके
एक मार्गदर्शक एक संस्‍कार,एक संवेदना भी हूँ   
धीरे धीर मै तुमसे पीछे होती जा रही हूँ
'जीवन  की  राह'  में साथ  कुछ  दूर और  चलना  है
फिर  तुम्हारे संग और भी कई रिश्ते जुड़ेंगे  
मुझे वो जगह अब धीरे धीरे खाली करनी होगी
मेरी'ममता की छांव'तुम्हारे लिए तब  काफी न होगी
कोई 'खुश लम्स' हमसफ़र के हाथों  नरमी
तुम्हारे 'जीवन' को खुशरंग फूलों सा संजों देगा
मेरा दिल !!! !!शायद तुमको खो देगा
मेरी आँखें तेरा रास्ता तकती रहेंगी
बेटे! मै माँ हूँ!! और 'मेरी किस्मत' 'जुदाई " है ...
 
 

2 comments:

  1. सरोज जी,

    वाह....एक माँ की के दिल के भावों को बखूबी कविता का रूप दिया है आपने....ये आपके अपने जज़्बात हैं......सरोज जी ये तो संसार का नियम है परिवर्तन......कुछ भी सदा के लिए नहीं होता.....

    ReplyDelete
  2. AAPKA BAHUT BAHUT SHUKRIA IMRAAN JI ...

    ReplyDelete