अधूरे ख्वाब


"सुनी जो मैंने आने की आहट गरीबखाना सजाया हमने "


डायरी के फाड़ दिए गए पन्नो में भी सांस ले रही होती है अधबनी कृतियाँ, फड़फडाते है कई शब्द और उपमाएं

विस्मृत नहीं हो पाती सारी स्मृतियाँ, "डायरी के फटे पन्नों पर" प्रतीक्षारत अधूरी कृतियाँ जिन्हें ब्लॉग के मध्यम से पूर्ण करने कि एक लघु चेष्टा ....

Friday, May 16, 2014

प्रतिध्वनित स्वर

प्रतीक्षा की शिला पर 
खड़ी हो
बारम्बार 
पुकारती रही तुम्हे 
वेदना की घाटियों से 
विरह स्वर का 
लौटना 
नियति है 
किन्तु, तुम 
उन स्वरों को 
शब्दों में पिरो कर 
काव्य से .....
महाकाव्य रचते रहे 
मैं मूक होती गयी 
और तुम्हारी कवितायें 
वाचाल 
मैं अब भी अबोध सी 
खड़ी हूँ 
उसी शिला पर 
कि कभी तो 
प्रतिध्वनित स्वर 
मेरे मौन को 
मुखरित करने 
पुन: आवेंगे
!!!
~s-roz~

4 comments:

  1. सुन्दर बोध रचना...

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  2. सादर शुक्रिया आपका वाण भट्ट जी

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    1. Jis tarha geeta me shreekrishna arjun ko margdarsan karte the theek aap jindagi me kuch karne wale students KA marg darsan karte hai aapko koti koti pranam

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