अधूरे ख्वाब


"सुनी जो मैंने आने की आहट गरीबखाना सजाया हमने "


डायरी के फाड़ दिए गए पन्नो में भी सांस ले रही होती है अधबनी कृतियाँ, फड़फडाते है कई शब्द और उपमाएं

विस्मृत नहीं हो पाती सारी स्मृतियाँ, "डायरी के फटे पन्नों पर" प्रतीक्षारत अधूरी कृतियाँ जिन्हें ब्लॉग के मध्यम से पूर्ण करने कि एक लघु चेष्टा ....

Thursday, February 20, 2014

"मन के फागुन से लाइव "

बसंत नाई सा 
छांट रहा है 
पेड़ों से ज़र्द पत्ते 
टेसू नाईन सी 
कुल्ल्हड़ में 
घोल रही है 
महावर 

आम के माथे 
बंध चूका है मऊर 
गेंदें ने दुआर पर 
सजा दी है, रंगोली 
बेला-चमेली ने 
इत्रदानों से 
छिड़क दिया है सुगंध 

कोयल,पपीहे गा रहे है 
स्वागत में
मधुर गान 
बंसवारी में 
पवन मुग्ध मगन 
छेड़ चूका है 
बांसुरी की तान 

फाग के इस राग़ में 
मन का ढोल-मजीरा 
जोह रहा हैं 
उस जोगी को 
जो गायेगा 
अबके फागुन 

"अहो जोगिनिया अईली हम छोड़ के सहरिया के नवकरिया तोहरे कारन"
जोगीरा सा रा रा रा रा !!!!

~स-रोज़~

4 comments:

  1. बहुत सुन्दर लाइव टेलीकास्ट है जी ...

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  2. बहुत शुक्रिया उपासना जी

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  3. बहुत खूबसूरत रचना...

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    1. हार्दिक आभार वाण भट्ट जी

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